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भ्रष्टाचार जड़ विकट, माया-मोह-गठजांेड़।
कहे सुने बढ़ जात है, अहं-विकार-मदलोभ।।

पंडित वेद कुरान पाठ, करि सब हुए मसान।
नेता-भ्रष्टाचार-आतंक, सब बनगै श्रीमान।।

भ्रष्टाचार बन जगदगुरु, लूटे देश समूल ।
रामदेव-अन्ना हजारे, लिए हाथ मा तूल।।
,
जनता निरीह गाय-भैंस, लठैत है सरकार।
दूध दुहन को वोट बैंक, फिर पीछे मक्कार।।

नेता सब ज्रागत भये, सोवत संसद बीच ।
जनता जस जागरण करे, मारे झोंटा खींच।।

बंदर बांट-रेवड़ी बांट, बांट जो जोहे आजु
बाॅट-बाॅट से फोरि सिर, मिले न काम-काजु

भ्रष्टाचार लिप्त मनुष, बने कैंसर-ऐडस्।
कुजाति से डरे समाज, बेटी-बेटा-डैड।।

सत्यम/मौलिकएवं अप्रकाषित

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 16, 2013 at 8:17pm

यह सीखने का कौन सा तरीका है श्रीमान ?  आप विधाओं की मूलभूत जानकारी लें. 

अभी कुछ दिनो पहले आपने दोहे के श्वान प्रारूप में अपनी रचनाएँ कर इस मंच को चौंका दिया था. अचानक यह रद्दी शिल्प कैसे हावी हो गया, भाईजी ?

आप जो भी छंद प्रस्तुत करें, उसका नाम और विधा का अति संक्षिप्त विवेचन रचना के साथ अवश्य साझा करें. 

देखियेगा, इससे आपको कितना लाभ होगा.  पाठक भी समझ सकेंगे कि आपने रचना को किस आधार पर प्रस्तुत किया है.

शुभ-शुभ

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 15, 2013 at 8:06pm

आदरणीय श्री योगी सारस्वत जी, हार्दिक आभार !

Comment by Yogi Saraswat on March 15, 2013 at 11:50am

जनता निरीह गाय-भैंस, लठैत है सरकार।
दूध दुहन को वोट बैंक, फिर पीछे मक्कार।।

नेता सब ज्रागत भये, सोवत संसद बीच ।
जनता जस जागरण करे, मारे झोंटा खींच।।

बंदर बांट-रेवड़ी बांट, बांट जो जोहे आजु
बाॅट-बाॅट से फोरि सिर, मिले न काम-काजु

बहुत खूब ! सुन्दर दोहे , श्री केवल प्रसाद जी

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2013 at 7:55pm

आदरणीय श्री लक्षमणप्रसादलड़ीवाला जी, आपने सही कहा है मा0 डा0 प्राची जी ने दोहा/छन्दविधान के विषय मे ही कहा है! मैने अपनी गलती समझली है! मात्राएं सही है किन्तु शब्द बेमेल हैं! कुछ मात्रा दोष ट्रांसलेशन मे भी हो जाता हे! मैं यहां यही छोटी-छोटी बातें सीखना चाहता हूं!आप सभी का मैं हृदय से ऋणी हूं! आप सभी का बहुत बहुत आभार !

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on March 14, 2013 at 2:13pm
"हां!  मुझे व्यंग नही लिखना चाहिये था" आदरनीय प्राची जी ने व्यंग के लिए नहीं दोहे के लिए कहा है केवल प्रसाद जी,
क्योंकि शिल्प का पालन किये बगैर दोहे के रूप में, या अन्य छंद विधा में लिखना अनुचित है
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on March 14, 2013 at 1:06pm

वन्दनीया डा0 प्राची सिंह जी,  हां!  मुझे व्यंग नही लिखना चाहिये था! मुझसे गलती हुई है, जिसके लिए मैं क्षमा प्रार्थी हूं!   भविष्य में ऐसी पुनरावृत्ति नहीं होगी! आदर एवं आभार सहित   


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 14, 2013 at 11:32am

आ. केवल प्रसाद जी, 

यह रचना दोहा विधा में नहीं है...

किसी एक भी पद में दोहा शिल्प का पालन नहीं हुआ है, फिर आपने इसे दोहा का नाम क्यों दिया ?

सनातनी छंदों से ऐसा खिलवाड़ करना उचित नहीं. आप पहले शिल्प तो जान लें फिर ही ऐसे शीर्षक दें, तो बेहतर हो.

इसे सिर्फ व्यंग ही कहना चाहिए था.

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