ओबीओ की त्रतीय वर्षगाँठ पर काव्य गोष्ठी /कवी सम्मलेन /मुशायरा के आयोजन में उपस्थित होने के लिए एक महीने का इन्तजार ख़त्म हो रहा था शाम को हम तीनो सखियों डॉ नूतन गैरोला ,कल्पना बहुगुणा और मुझे देहरादून से हल्द्वानी की ट्रेन पकडनी थी अतः तीनो इकठ्ठा हुए एक दूसरे के चेहरों को देख कर ही लग रहा था की कितनी उत्सुकता ,रोमांच था इस आयोजन में शामिल होने का ।
कुछ देर गप शप करके सो गए और सुबह पांच बजे उठे बाहर भोर का नजारा बहुत सुन्दर लग रहा था आसमान हल्का नीला रंग लिए आँखों को बहुत सुकून दे रहा था क्यों की अंदेशा ही नहीं था कि यही अम्बर अगले कुछ घंटों में अपने तेवर बदलने वाला था ,जन जीवन की तबाही की गाथा अपनी छाती पर लहू से लिखने वाला था इस सब से बेखबर उस पल को कैमरे में कैद किया
और कुछ देर बाद हम हल्द्वानी की देव भूमि पर कदम रख रहे थे। चूंकि नूतन जी के भाई के घर ठहरने का प्रोग्राम बनाया था सो वो हमे स्टेशन से अपने घर ले गए ,वहां से तैयार होकर हम आयोजन स्थल के लिए रवाना हुए ,आभासी दुनिया से निकलकर सबसे रूबरू मिलने का अनुभव बहुत रोमांचकारी होता है इससे पहले एक बार लखनऊ के आयोजन में शरीक होकर महसूस कर चुकी थी ,हमारे ब्लोगर मित्र प्रवीण पाण्डेय जी के शब्दों में कहूँ तो बहुत वाकू डाकी हो रहा था /बटरफ्लाई वर फ़्लाइंग इन स्टमक भी कह सकते हैं। हमारे सामने वह बिल्डिंग थी जिसमे आयोजन हो रहा था काफी सुन्दर बनी थी
हमे ऊपर हाल में जाने के लिए कहा गया। ऊपर पहुचे तो सर्व प्रथम चुलबुली प्यारी सी गीतिका जी दिखाई दी देखते ही हमने पहचान लिया उन्होंने मेरे चरण स्पर्श किये तो आकंठ स्नेह आत्मीयता की लहर दौड़ गई हमने दिल से आशीर्वाद दिया ,महिमा श्री को उनके बताने पर ही पहचान पाई क्यों की वो अपनी प्रोफाइल पिक्चर से कही ज्यादा छोटी गुडिया सी दिखाई दी बहुत प्यार से मिली ।
अचानक दूर पीछे बेंच पर आदरणीय योगराज जी अपने सुपुत्र के साथ बैठे हुए दिखाई दिए उनको मैंने तुरंत पहचान लिया अतः मिलने के लिए उनके पास गई उनकी पहले की तस्वीरों के मुकाबले में बहुत कमजोर दिखाई दिए जो स्वाभाविक था बीमारी से दो दो हाथ जो करके आये थे इस आयोजन में उनकी उपस्थति ही माँ शारदे का वरदान समझो । चित्र में गंभीर प्रकृति के दिखने वाले इतने नम्र और विनोदी स्वभाव वाले इंसान से मिलकर बहुत अच्छा लगा जब से ओबीओ से जुडी हूँ ग़ज़लों में उनका मार्गदर्शन मिलता रहा है रूबरू उनकी शुभकामनाएं /सुझाव पाकर अपने को धन्य समझा । दोनों सत्रों की अध्यक्षता का भार इन्होने बाखूबी निभाया |
वहीँ दूसरी और बैठे हुए अभिनव अरुण जी दिखाई दिए ,प्रोफाइल पिक्चर से जरा भी भिन्न नहीं लगे वही मुस्कुराती बड़ी बड़ी आँखें सो तुरंत पहचान लिया उन्होंने बहुत आत्मीयता से नमस्कार किया बहुत अच्छा लगा मिलकर । आदरणीय शास्त्री जी एक बेंच पर अपना छोटा सा लेपटोप लेकर बैठे थे उनसे मैं पहले भी तीन बार मिल चुकी थी उन्हें वहां देख कर बहुत अच्छा लगा। इसी बीच अचानक गणेश बागी जी से मुलाकात हुई या कहिये एक हंसमुख व्यक्तित्व वाले इंसान से ,अभिवादन के बाद कुछ बातें हुई बहुत अच्छा लगा मिलकर ,मंच को सजाने में गीतिका जी और महिमा जी व्यस्त थी तो मेरी नजरें डॉ प्राची जी को ढूंढ रही थी की अचानक मंच के दूसरे छोर से मेरी और आती हुई दिखाई दी
एक प्यारी सी मुस्कान अधरों पर लिए हुए अभिवादन करते हुए मिली सबसे पहला सवाल ,की आने में कोई दिक्कत तो नहीं हुई में ही उनका स्नेहिल व्यक्तित्व उभर कर आया बाद में आयोजन की सर्व पक्षीय सुव्यवस्था ने उनकी कुशलता उनकी कुशाग्रता ,और साहित्य में आस्था का परिचय दिया।
हम सबने फिर ये ग्रुप फोटो खिचवाई -------
अरुण कुमार निगम जी से और रविकर जी से लखनऊ में मिल चुकी थी सो तुरंत पहचान लिया जिनसे मिलकर लगा अपने ही परिवार के सदस्यों से बहुत दिन बाद मिल रही हूँ अरुण निगम जी का वो मुस्कुराता चेहरा वो अपना पन वो सादगी सामने वाले के दिल में जगह बनाने के लिए बहुत है वही आभास उनके परिवार से मिलकर हुआ । आदरणीय रविकर जी भी बहुत सच्चे दिल के मिलनसार इंसान हैं जिसका प्रभाव उनकी त्वरित कुंडलियों की तरह सामने वाले पर गहरा पड़ता है ।
इसी बीच एक भोला भाला प्यार सा नवयुवक मेरे पास आया जिसको देखते ही मैं पहचान गई मैंने कहा मृदु ?? शैलेन्द्र म्रदु जी ने मुस्कुराते हुए कहा हाँ । बहुत प्यारा मेरे बेटे के जैसा बच्चा है आगे जिसके कविसम्मेलन में प्रस्तुति करण को देखकर मैं दंग रह गई कविता गायन की जबरदस्त माहिरता है उनमे । काली दाढ़ी में आदरणीय अशोक रक्ताले जी को भी तुरंत पहचान लिया बहुत खुश होकर मिले उनके कोमल स्नेही स्वभाव का परिचय उनकी बातों से खुद बा खुद मिल गया ।
हाँ शुभ्रांशु पाण्डेय जी को दूर से देख कर सोच रही थी कि इस आकर्षक व्यक्तित्व के धनी इंसान को कहीं देखा है किन्तु पूर्णतः पहचानी जब उनकी हास्य रचना जो ओबिओ पर कई बार पढ़ी थी उन्ही की आवाज में मंच पर सुनी ,पहचानने पर उनसे मिली बातें की उनसे मिलकर बहुत अच्छा लगा। इसी दौरान आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,राणा जी एवं वीनस जी से मिलने की उत्सुकता बढ़ रही थी नजरें उनको ढूढ़ रही थी पता
चला कहीं जाम में फंसे हैं आने में वक़्त लगेगा ।
नाश्ता पानी करने के बाद अभिनव अरुण जी ने मंच सम्भाला और काव्य गोष्ठी का प्रथम सत्र आरम्भ हुआ । सभी ने अंतरजाल का साहित्य में योगदान विषय पर अपने अपने द्रष्टि कोण से बोला ,मुझे भी बोलने का अवसर मिला। अभिनव अरुण जी ने अपना उत्तरदायित्व बखूबी निभाया जिसको देख कर सोचा आने वाले आयोजनों के लिए एक बेहतरीन मंच संचालक ओबिओ के पास रिजर्व है ।
प्रथम सत्र के चलते हुए बीच में देखा आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ,वीनस जी और राणा प्रताप जी पीछे बैठे हैं ,प्रथम सत्र ख़त्म होते ही सबसे पहले उन तीनों से मिले ,आदरणीय सौरभ जी से एक बार फोन पर बात हुई थी चैट तो होती रहती थी पर रूबरू देख कर लगा नहीं की पहली बार मिल रहे हैं पहचानने में कोई दिक्कत नहीं हुई वही दिव्य व्यक्तित्व जो फोटों में दिखाई देता था , बहुत आत्मीयता के साथ मिले बहुत अच्छा लगा मिलकर । राणा जी और वीनस जी से भी बाते हुई लगा अपने ही परिवार के सदस्यों से मिल रही हूँ ।
बीच में थोडा वक़्त मिला तो ये फोटो खिचवाया --------
प्रथम सत्र समाप्ति के बाद भोजन की व्यवस्था थी ।
भोजन के उपरांत दूसरे सत्र का आरम्भ ,एक प्यारी सी गुडिया की मधुर आवाज में गाई गई सरस्वती वंदना से हुआ ,जो बाद में पता चला की वो आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी की सुपुत्री स्रष्टि पांडे थी उसकी झील सी नीली आँखों ने उसकी मासूमियत ने हम सब का मन मोह लिया था ह्रदय से शुभकामनाएं देती हूँ उस बच्ची को ।
दूसरे सत्र में मंच संचालन की बागडोर संभाली आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी ने जिन्होंने अपनी वाक् जाल वाक् पटुता से प्रभावी,सराहनीय बनाया ।
इसके बाद सभी ने अपनी अपनीबेहतरीन रचनाएँ प्रस्तुत की जिनका विवरण आदरणीय सौरभ जी अपनी पोस्ट में दे चुके हैं
काव्य पाठ करते हुए शलेन्द्र मृदु जी ने सबसे ज्यादा प्रभावित व् अचंभित किया ,दूसरे राजेश शर्मा जी ने जिनके प्रस्तुति करण के बीच में बार बार लोगों को तालियाँ पीटने पर मजबूर किया । अभिनव अरुण जी की जैसी उत्कृष्ट लेखनी है वैसा ही उनका लाजबाब प्रस्तुति करण ।
प्रिय प्राची जी के कलम में ही नहीं उनकी वाणी में भी माँ शारदे का वरद हस्त है ।उनके काव्य पाठ से सभी श्रोता मन्त्र मुग्ध दिखाई दिए उनकी कह मुकरिया ने भी खूब वाह वाही लूटी |
इसके अतिरिक्त अरुण निगम जी ,आदरणीय रूप चन्द्र शास्त्री जी ,रविकर जी शुभ्रांशु पाण्डेय जी सभी ने शानदार प्रस्तुतियां पेश की । आदरणीय अशोक रक्ताले जी की प्रस्तुति ने भी वाह वाही लूटी| मेरी दोनों सखियों डॉ नूतन गैरोला ,कल्पना बहु गुणा ने और प्रिय गीतिका ,महिमा जी ने भी शानदार रचनाएँ पेश की और सबकी प्रशंसा बटोरी । श्रीमती सपना निगम जी के गीत ने खूब वाह वाही लूटी । इनके आलावा कई लोगों ने शानदार प्रस्तुतियां दी। मुझे भी एक नज्म सुनाने का अवसर मिला ।
फिर ग़ज़लों और मुशायरे का दौर चला आदरणीय प्रभाकर जी ने अपनी प्रस्तुति से बहुत प्रभावित किया जिसके फलस्वरूप ढेरों दाद पाई सच में नव लेखकों शायरों के लिए वो एक प्रेरणा के स्रोत हैं इस हालत में भी मंच संभालना अपने गायन से लोगों को वाह वाह करने पर मजबूर कर देना कोई साधारण बात नहीं है , आदरणीय वीनस जी ने राणा जी ने तो अपनी ग़ज़लों से समाँ बाँध दिया हमारी लाउड दाद शायद उन तक पंहुच भी रही होगी ।
ओबीओ सदस्य आदरणीय अजय ’अज्ञात’ने अपनी ग़ज़ल से श्रोताओं को सम्मोहित कर लिया. आपकी ग़ज़ल को सामयिन की भरपूर दाद मिली.|
इसके अतिरिक्त अवनीश उनियाल जी ,और आदरणीय राज सक्सेना जी की रचनाओं की भी भूरी भूरी प्रशंसा की गई
अभिनव अरुण जी की छोटी छोटी शायरियों ने तो मंच ही लूट लिया ।
सबसे ज्यादा चकित किया तो आदरणीय सौरभ जी के गायन ने, पता नहीं था जो साहित्य शब्दों के धनी हैं वो आवाज और गायन के भी इतने धनी होंगे ,उनके काव्य पाठ ने तो झूमने पर मजबूर कर दिया सच में उनके प्रस्तुति करण ने हमारे दिलों पर अमिट छाप छोड़ी है
आदरणीय गणेश बागी जी की हास्य रचना ने सब को हंसी से लोट - पोट कर दिया उनकी रचनाओं ने गायन ने देर तक सब को बांधे रखा |
अरुण निगम जी की मिठ्ठू वाली रचना ने भी खूब प्रशंसा लूटी
दूसरे सत्र के बीच में ही वक़्त निकाल कर मैंने अपनी प्रकाशित पुस्तक "ह्रदय के उद्दगार "कुछ लोगों को भेंट स्वरुप दी देना तो सभी को चाहती थी किन्तु इतनी अधिक ला नहीं सकी भविष्य में जब भी अवसर मिलेगा बाकि मित्रों को भी अवश्य दूँगी |
अंत में चीफ गेस्ट डॉ. सुभाष वर्माजी जी ने भी अपनी प्रस्तुति से दर्शकों को बांधे रखा ।अंत में सबको ओबीओ के आयोजन के सहभागिता प्रमाणपत्र आदरणीय योगराज जी के करकमलों द्वारा प्रदान किये गए |
कुल मिलकर आयोजन अपनी अमिट छाप सबके दिलों में छोड़ने में कामयाब रहा जिन्होंने इस आयोजन में भाग नहीं लिया उनके दिलों में एक टीस जरूर रहेगी मौसम भी उस दिन मेहरबान रहा । फिर हम सब ने सभी के साथ फोटों खिचवाये
,रात का भोजन किया और दिल में सुखद यादें लेकर नम आँखों से सबसे विदा ली
और भारी क़दमों से अपने गंतव्य की और प्रस्थान किया ।
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आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, सचमुच इस सुन्दर आयोजन के हर पल का लेखा जोखा दिमाग में एक मधुर स्मृति की तरह अंकित हो गया है.सभी से व्यक्तिगत रूप से मिलकर बहुत अच्छा लगा और ये भी सच है की किसी सेभी मिलकर ऐसा नहीं लगा की पहलीबार मिल रहे हैं.सभी एक दुसरे से पूरी आत्मीयता से मिले.आदरणीय सौरभ जी को गुरुदेव कहता हूँ तो बहुत इच्छा थी एक बार उनके चरणस्पर्श करने की उनकी उपस्थिति से यह मुराद भी पूरी हुई.तब आदरणीय योगराज प्रभाकर जी से भी उनके आने के कारण आशीर्वाद प्राप्त करने का अवसर मिला ओ बी ओ प्रबंधक आदरणीय गणेश जी बागी जी का स्नेह पाकर बहुत प्रसन्नता हुई. कार्यक्रम का विस्तृत अनुभव तो आपने लिखा है है. सभी ने उतने ही उत्साह से भाग लिया और आनंद की अनुभूति की. सादर.
आदरणीय अशोक जी आपकी प्रतिक्रिया से बहुत हर्ष हुआ आपने सही कहा की सभी कितनी आत्मीयता के साथ मिले हमारा भाग्य था की आदरणीय योगराज जी स्वस्थ होकर उस आयोजन में शामिल हुए और आदरणीय सौरभ जी और बागी जी से भी मिलना हो सका । आप का हार्दिक आभार इस संस्मरण में शिरकत करने के लिए ।
आदरणीया राजेश कुमारीजी, आयोजन और सम्मिलन की घड़ियों को आपने दिल से शब्द दिये हैं. मैं अपनी बात कहने में थोड़ी देर कर गया हूँ लेकिन जिस ढंग से मैं भाग रहा हूँ उसके ठीक उलट नेट-कनेक्शन सुस्त है. वर्ना आपको बधाइयाँ और पहले देता.
सही है, कि ऐसी घड़ियाँ हृदय के कोने में सदा ज़िन्दा रहती हैं.
आपने जिस लिहाज से मेरे लिए भाव अभिव्यक्त किये हैं उनके लिए मैं सादर आभारी हूँ.
सादर
आदरणीय सौरभ जी आयोजन के संस्मरण पर आपकी उपस्थिति और उस पर अपने विचार व्यक्त करने के लिए हार्दिक आभार । सच में इस आयोजन की यादें हमेशा दिल में बसी रहेंगी |
आदरणीया, "मन में टीस " तो अवश्य है लेकिन आपके इस नये अंदाज़ की प्रस्तुति से एक बार फिर कल्पना में ही सही, आयोजन में सम्मिलित होने का अवसर मिला. हार्दिक आभार.
आदरणीय शरदेन्दु मुखर्जी जी संस्मरण पर आपकी प्रतिक्रिया ने लेखन को सार्थकता प्रदान की हार्दिक आभार आपका |
आदरणीया राजेश कुमारी जी आपकी हल्द्वानी की सचित्र रिपोर्ट पढ़ कर तो मै मानो सपनों मे ही पहुँच गई मुझे ऐसा लग रहा है मै स्वयम भी वहाँ पहुँच गई हूँ , परीक्षाओं की वजह से मै आयोजन मे न सम्मलित हो पाई मुझे आप सब से न मिल पाने का अफसोस है , मै दुआ करूंगी की जल्द ही आप लोगो से मुलाक़ात हो ।
वैसे आपको , आदरणीय सौरभ जी को , आदरणीय रविकर जी को , आदरणीय योगराज को एवं वहाँ उपस्थित सभी गण मान्यों को आयोजन की सफलता की हार्दिक बधाई ।
प्रिय अन्ना पूर्णा जी आपको संस्मरण पर देख कर हर्ष हुआ तथा सुकून मिला की आपको आयोजन का लेखा जोखा पसंद आया ,भविष्य में हम भी जरूर आपसे मिलना चाहेंगे आपका हार्दिक आभार
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