परम आत्मीय स्वजन
सादर प्रणाम,
सैंतीसवें मुशायरे का संकलन हाज़िर है| इस बार के मुशायरे की ज़मीन लगातार पिछले कई मुशायरों के बनिस्बत आसान दी गई थी जिसके पीछे का उद्देश्य यह था की जो नए लोग इस मंच से जुड़ रहे हैं वह अपने आप को सहज महसूस कर सकें, पुराने लोग जो ग़ज़ल विधा में पारंगत हो चुके हैं यह उनका फ़र्ज़ है की नए लोगों का हाँथ थाम कर उन्हें भी अपने बराबरी में ले आयें और उस्तादों से निवेदन है कि आप हमेशा मोनिटर करते रहें अर्थात कहीं पर नए लोग कोई गलत चीज सही न मान बैठें|
चलिए अब बात करते हैं बीते मुशायरे की| एक समय था कि इसी मंच पर लोग ग़ज़ल बह्र में कहने की जद्दोजहद में लगे थे, मुशायरे में ८०% गज़लें बेबहर आती थी| आज यह स्थिति है की एक दो ग़ज़लों को जाने दें तो लगभग सभी लोग कम से कम बह्र में तो लिख ही रहे हैं, जिन एक दो लोगो की बात कर रहा हूँ वह स्वयं को पहचाने क्योंकि आपको भी इस मंच से जुड़े हुए अरसा हो चुका है और आप भी जल्दी से बह्र में आ जाएँ| बह्र से आगे बढ़ते हुए इस बार आई ग़ज़लों में जो विशेष समस्याएं चिन्हित हुई हैं उन्हें क्रमवार प्रस्तुत कर रहा हूँ|
१. भर्ती की ग़ज़ल:- मुशायरे में दो ग़ज़लें प्रस्तुत करने की छूट है इसका मतलब यह नहीं है की दो गज़लें अवश्य करके ही प्रस्तुत की जाएँ| अगर शायर के कहन में दम है तो उसकी एक ग़ज़ल ही छाप छोड़ने में कायम रहेगी| ज्यादातर केस में(गौर करें ज्यादातर) देखा गया है कि दूसरी ग़ज़ल केवल दूसरी ग़ज़ल कहने के लिए ही पेश की जाती है....मुशायरों में इसे भर्ती की ग़ज़ल कहा जाता है और ऐसे शायरों को भर्ती का शायर|
२. भर्ती के शेर:- आपने एक बहुत ही संजीदा ग़ज़ल कही पर उसमे एक दो शेर ऐसे डाल दिए जो ग़ज़ल में होने ही नहीं चाहिए थे ...उदाहरण के लिए कई बार देखा गया है की अच्छी ग़ज़ल के बीच में शायर ओ बी ओ की शान में एक दो शेर कह देता है या अपनी दिनचर्या से एक दो शेर बनाकर कह देता है ..अगर वह शेर ग़ज़ल की तासीर का है ही नहीं तो उसे ग़ज़ल में रखने का क्या मतलब ..ऐसे शेर भर्ती के शेर कहलाते हैं इनसे बचना चाहिए|
३. भर्ती के लफ्ज़:- शेर में ऐसे लफ़्ज़ों का प्रयोग जिनका कोई अर्थ ही नहीं है या महज़ शेर को वजन में फिट करने के लिए बीच में घुसाया गया हो भर्ती के शब्द कहलाते हैं| उदाहरण के लिए मिसरे के प्रारम्भ में "कि" लगा देना, अभी के साथ भी लगाकर अभी भी, क्रिया में कर लगाने के बावजूद बाद में के लगाना जैसे खाकर के आदि| इन भर्ती के शब्दों से हमेशा बचना चाहीये|
४. "ना" अथवा "न":- मिसरों में नहीं की जगह अक्सर ना का प्रयोग करते देखा गया है| दरअसल "ना" स्वीकार्य ही नहीं है सही वजन में इसे "न" लिखना और गिनना चाहिए| शायरों में देखा गया है की जहां १ वज्न लेना है "न" लिख दिया और जहां २ लेना है "ना" लिख दिया, स्थिति तब और भी गंभीर हो जाती है जब एक ही शेर में दोनों तरह से प्रयोग किया गया हो| इस बार भी जहां मिसरों में "ना" आया है उसे लाल रंग से चिन्हित किया गया है| अगली बार से सावधान रहें|
५. कि अथवा की:- यहाँ भी ऊपर वाली बात , शुद्ध रूप "कि" है अगर आप "की" लिखते हैं तो उसका अर्थ कार्य करने से हो जाएगा|
६. विकृत होती हिंदी:- आप जाओ, आप खाओ, तेरे को जाना चाहिए, आपकी जेब में देखो, आदि आदि अकसर हम रोज़मर्रा की भाषा में बोल रहे हैं| इस प्रकार के वाक्य व्याकरण के लिहाज़ से गलत हैं और ग़ज़ल में तो इनका कतई प्रयोग न करें|
७. उर्दू के अल्फ़ाज़ का बिना जाने प्रयोग:- उर्दू के जिन लफ़्ज़ों का अर्थ और प्रयोग हमें ठीक से न मालुम हो उनके प्रयोग से बचना चाहिए...अक्सर ऐसे प्रयोगों में एकवचन बहुवचन, पुल्लिंग स्त्रीलिंग जैसी व्याकरण की त्रुटियाँ हो जाती है| इसलिए इनका प्रयोग संभलकर करें| उर्दू और हिंदी के शब्दों को आपसे में इजाफत और वाव-ए-अत्फ़ के माध्यम से जोड़ना भी नहीं चाहिए उदाहरण के लिए नदिया-ए-अश्क, निशा-ए-रंज, शामो प्रभात आदि| और मेरा तो व्यक्तिगत तौर पर मानना है की एक ही शेर में शुद्ध हिंदी और उर्दू के लफ्ज़ एकसाथ आने पर बदमज़गी पैदा करते हैं|
८. रब्त:- इस बार के मुशायरे में कई शायरों के शेरो के मिसरों में रब्त की कमी साफ़ नज़र आई जिसे कई जगह इंगित भी किया गया है| रब्त अर्थात दोनों मिसरों में सामंजस्य, जुड़ाव, एक की बात को दूसरा पूरी करे| शेर के मुकम्मल होने के लिए बहुत ही महत्वपर्ण है रब्त , इसलिए इसका विशेष ध्यान दें|
९. रदीफ़:- उस्तादों का कहना है कि आप शेर में केवल रदीफ़ निभा ले जाइए शेर अपने आप अच्छा हो जाएगा...जिसने रदीफ़ को पकड़ लिया ..उसकी ग़ज़ल मुकम्मल हो गई| इस बार की रदीफ़ आसान न थी ...आपको स्वयं को केंद्र में रखकर सारे शेर कहने थे| अपनी गज़लें फिर से देखें और रदीफ़ के दोष को पहचाने|
१०. मात्रा गिराना:- अरूज़ में मात्राओं को गिराने की छूट दी गई है, परंतु अगर मात्रा गिराने से अर्थ का अनर्थ हो रहा हो तो इससे बचना चाहिए| जैसे की किसी मिसरे में लफ्ज़ आया "चारा" जिसका वजन होना चाहिए २२ पर मिसरे में जब इसे गिराकर बह्र में पढ़ा तो २१ के वज्न में चार पढ़ा जाएगा| अब दोनों अलग अलग शब्द है और दोनों के अर्थ भी अलग, जिससे मिसरे के मायने ही बदल जाते हैं| इस प्रकार के मिसरे बेबहर की श्रेणी में आते हैं| इस प्रकार से मात्रा गिराने में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए|
विशेषज्ञों से निवेदन है की कुछ छूट रहा हो तो उस पर अवश्य चर्चा करें
मिसरों को तीन रंगों से रंगा गया है, लाल अर्थात पूरी तरह से यह मिसरे बेबह्र है , हरे मिसरे भी बेबह्र हैं परन्तु वहां बह्र की चूक शब्दों के वजन को उनके तद्भव रूप में लेने से हुई है| नीले मिसरे ऐसे मिसरे हैं जिनमे कोई न कोई ऐब है| नीले मिसरों को चिन्हित करते समय जिन ऐबों को नज़र में रखा गया है वह है तनाफुर, तकाबुले रदीफ़, शुतुर्गुर्बा, ईता, काफिये के ऐब और ऐब ए ज़म| गौरतलब है की बहुत से मिसरों और भी ऐब हैं परन्तु इस मंच पर चल रही कक्षा में जिन ऐब पर चर्चा हो चुकी है उन्हें ही ध्यान में रखा गया है| कई मिसरों में ऐब ए तनाफुर भी है पर इसे छोटा ऐब मानते हुए छोड़ा गया है, यक़ीनन ऐब तो ऐब होता है और शायर को इस ऐब से बचना चाहिए|
प्रस्तुत है ग़ज़लों का संकलन :-
ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) मैं गुलशन इस लिए पछता रहा हूँ सितम को मैं सितम कहता रहा हूँ मैं मुफ़लिस का दिया टूटा हूँ लेकिन खुदा जाने वो लौटे या न लौटे तुम्ही तो थे मेरी सांसो मैं अब तक मैं शायर हूँ ज़माने की नज़र में वो जिससे फ़ैज़ मिलता है जहाँ को खिलौनों की तरह खेलो ना दिल से मुबारक हो तुम्हे अब मेरी दुनिया मिली है दौलत-ए-ग़म जब से मुझको तुम्ही तो जान-ओ-दिल ईमा हो "गुलशन" **************************** Mohd Nayab जहाने-तीरगी पे छा रहा हूँ ख़यालों में उन्ही को ला रहा हूँ मुझे देखो न तुम तिरछी नज़र से अगर चाहो तो फिर वापस बुला लो उनकी आँख का तारा था अब तक भुला कर देख लो मुझको भी दिल से खिलौनों से मैं क्या खेलूँ कि अब तक न क्यूँ "नायाब" ठहरू हर नज़र में **************************** डॉ. सूर्या बाली "सूरज" जहां की भीड़ में तन्हा रहा हूँ॥ न कोई कारवां राहें न मंज़िल, मेरी वीरानियाँ गुलज़ार कर दो, मेरी फ़ितरत में ही झुकना नहीं है, अभी ठहरो मुझे फ़ुर्सत नहीं है, शब-ए-फ़ुरकत क़यामत ढा रही है, तड़प दीवानगी फ़ुरकत मिली है, मेरे अ’शआर में तेरी कशिश है, कभी भी झूँठ से रिश्ता न रख्खा, भले कोई भी मेरा साथ ना दे, कभी होगी तेरी नज़रे इनायत, ख़बर कर दो हमारे दुश्मनों को, **************************** arun kumar nigam इसी आंगन सदा साया रहा हूँ नज़र की रोशनी जिस पर लुटाई जवानी खो गई थी परवरिश में मुझे तू भूल कर परदेश बैठा मशीनों आज का है दिन तुम्हारा ***************************** MOHD. RIZWAN मैं राहे हक़ पे बढ़ता जा रहा हूँ.. नही है तू हमारे पास तो क्या ? मिले हैं ज़ख़्म जो उलफत मे तेरी.. न करना अब किसी पर तू भरोसा जो अहले फ़न हैं मैं उनकी नज़र में कहो तो जान-ओ-दिल कुर्बान कर दूं क़यामत पास है "रिज़वान" अब तो ***************************** sanju singh हमेशा दांव में पहला रहा हूँ पते की बात मैं बतला रहा हूँ बहुत खाया मगर पतला रहा हूँ अमानत हो किसी की फिर भी यूँ ही मूझे कुछ कम मिली हर चीज़ यारों घड़ी इज़हार की आती रही जब तेरे बिन हाल कुछ बेहाल सा है ***************************** amit kumar dubey ansh तुझे पाकर के खुद खोया रहा हूँ तु मुझसे रूठकर जब से गयी है मेरे ख्वाबों में ही आये कभी वो कहा उसने तो हमने जान दे दी फ़साने याद फिर आने लगे वो अज़ब ही बात थी उसकी गली में बहुत प्यारी लगी हमको जो चीज़ें चरागाँ कर लिया हमने भी घर को ***************************** rajesh kumari ज़माने में बहुत पिसता रहा हूँ रकीबों ने मुझे कितना बुझाया रकाबत से कभी डरता नहीं मैं बिछा दूँ जब कहे दिलकश सितारे छुपा न दें तुझे दर्दें रिदाएँ बहा ना दें तेरी नूरे तबस्सुम जमाने ने मुझे परखा हमेशा ग़मे फ़ुर्कत भरा तेरा तसव्वुर निग़ल ना लें मुझे दिन के उजाले मिले धोखे मुझे यूँ जिंदगी में ***************************** Sarita Bhatia आते ही पास तेरे गा रहा हूँ तेरे नयना सुरा के हैं दो प्याले तेरा आना सबब कोई यक़ीनन मेरे ख्वाबों में जब से आप आए मेरे सजना अदा तेरी है कातिल तेरी खातिर ही हर चौखट झुका मैं **************************** गीतिका 'वेदिका' ***************************** Shijju S. मै अपनी शर्त पे जीता रहा हूँ मेरी बेचैनियाँ तनहाइयों की मुहब्बत की तेरी ये इल्तिजा थी कई बातें लिखी, औराक़ फाड़े अधूरी ख़्वाहिशें आहें दबी सी वो किस्से अनकहे कहता रहा हूँ गुजश्ता उन पलों की रौशनी में ये ख़्वाबों की अजब सी है रविश भी ***************************** मोहन बेगोवाल भरी महिफल मगर तन्हा रहा हूँ ! कहाँ तुम हो गये मुझ से पराये, हमें वो भी कभी ऐसे मिलेंगे, अभी मैं देखना अंजाम उसका, चलो दिल चल रहे सच्च को तलाशें, मिले वो तो हकीकत समझ आई , ***************************** Abhinav Arun चमक फीकी है पर ललचा रहा हूँ , जिसे पढने से पहले चूमती तुम , **************************** Kewal Prasad हसीना देख कर ललचा रहा हूं। हुआ है शोर आंगन में सुबह से, ये जालिम नीम की छाया अड़ी जो, खुशी तुलसी से मिलती है प्रभा में, अजी बस लाज आती है मचल कर, न पूछो हाल उनका हॅस-हॅसा कर, वे रातों को कॅपाते सर्द करते, बेदर्दी का गिला-शिकवा नही है। सुहानी रात में रोता-बिलखता, ****************************** vandana हकीकत है कि जो मुस्का रहा हूँ हताहत हो के रह जा श्राप मुझको सभी शामिल रहे उस कारवां में दबे पांवों चला यादों का मेला लगा चुकने न हो अब नेह साथी गुलाबों चाँद में दिखता है हर सू हवाओं पर लगे पहरे भले हों ****************************** ram shiromani pathak विरह की आग में जलता रहा हूँ! किया है कत्ल किसने क्या बताऊँ कभी कोई मुझे भी खत लिखेगा ये तेरी ही जुदाई है की हरदम! लगाकर आग बस्ती में कहे वो *********************************** Albela Khatri गयी है अपने पीहर वो ख़ुदाया पड़ोसन को यहाँ बुलवा रहा हूँ चली आओ, चली आओ पड़ोसन हज़ारों दीप दिल में जगमगाये नहीं कोई दरोगा आज घर में हुई है आज पूरी वो दुआएं न पूछो आज कोई बात यारो ये ओ बी ओ से आया है बुलावा *************************** sanju singh किसी के इश्क में खोया रहा हूँ मेरी तकदीर में जो तू नहीं है विदा के वक़्त वो मिलने का वादा ज़माने हो गये इक ख़त मिला था मेरे दिल में जो आकर बस गई वो वफ़ा की हद सनम ही अब खुदा है तमन्ना दिल की पूरी हो गई पर रवायत इश्क की भाती नहीं है हबीबी निभ गई अपनी भी यारों फ़लों की डाल हूँ झुकना तो तय था मिला कुछ इस तरह महबूब मुझसे ******************************* अरुन शर्मा 'अनन्त' जिसे अपना बनाए जा रहा हूँ, यकीं मुझपे करेगी या नहीं वो, मुहब्बत में जखम तो लाजमी है, अकेला रात की बाँहों में छुपकर, जुदाई की घडी में आज कल मैं, ************************** arun kumar nigam पिलाता ही रहा मैं जाम बन कर बनाये जब मकां तो काट डाला न बाहर घर के कोई बात आई चला भी आ कभी गुजरे जमाने *****************************
|
Albela Khatri वतन खोरी के ढब समझा रहा हूँ गरीबी किस तरह मैंने मिटाई नहीं मैं भूल पाया रंगे -दिल्ली न उसका था न इसका ही रहूँगा चुनावों में मेरा सत्कार होगा पहन उजली कड़क खादी हमेशा ये भोली भीड़ है भोजन हमारा मैं अलबेला नहीं है गम से रिश्ता ***************************** आशीष नैथानी 'सलिल' किसी की आँख का सपना रहा हूँ ये कैसा शक तुम्हारा मुझको लेकर पुरानी एलबम खोली है मैंने अजी ! मैं भी कभी बच्चा रहा हूँ । वो तन्हा घर जहाँ कोई नहीं है कभी उस घर का मैं, छज्जा रहा हूँ । मराशिम टूटते देखे हैं मैंने ये खुद्दारी नहीं तो और क्या है अकेले कमरे में ख़ुद बन्द होकर कोई आकर घड़ीभर बात कर ले मुहब्बत की सियाही चढ़ न पायी ****************************** CHANDRA SHEKHAR PANDEY जमाने से अलग दिखता रहा हूं किनारों ने मुझे हर दम डुबोया तुझे अपना न पाया मैं तभी तो मुझे हासिल कभी मय थी नहीं तो खुदाई मिल गई तो क्या हुआ जी, खिलौने सब पुराने हो गये हैं, तुझे कातिल कहूं कैसे सनम मैं? ******************************** बृजेश नीरज खुशी है, गाँव अपने जा रहा हूँ डगर पहचानती है, साथ हो ली फिज़ाओं में यहाँ रंगत अजब सी सदा सुनकर मैं इन तन्हाइयों की मधुर संगीत सा है इस हवा में नदी की धार से ले चंद बूँदें मचानों पर जो मैंने चढ़ के देखा
**************************** amit kumar dubey ansh इरादों का बड़ा पक्का रहा हूँ मेरी किस्मत में शायद तू नहीं है सितारे घर मेरे उतरे थे लेकिन मेरे घर फूल बरसाओ बहारों तिज़ारत दिल का वो करने लगे हैं मुक़म्मल हो गया आने से तेरे सज़ा दे दी मुझे मेरे खुदा ने कि रिश्तों में नहीं है बात अब वो मुरादों से भरी जब शाम आई बगावत कर लिया हमने जो घर से ये नादाँ दिल मेरा माने न माने *************************** ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) **************************** Sulabh Agnihotri व्यथा पर सान धरता जा रहा हूँ। हताशा की गुफाओं में प्रकंपित ग़ज़ल हूँ मैं, तरन्नुम है मगर तू हथेली के फफोलों को न देखो अकेलेपन में सन्नाटे से सहमा कहाँ जाता अकेले रश्मियों संग *************************** गीतिका 'वेदिका' भले ताउम्र बेगाना रहा हूँ रहूंगा तेरा पहलू बन के हमदम कि तन्हा हो के भी तन्हा नही मै नही आसान फिर से इश्क़ करना चरागों को खबर कर दो न जा के न जाने क्या लिखा किस्मत में अपनी तुझे अपनाने को आऊँगा इक दिन समझते ही नही वे, क्या करूं मै या ठुकरा दे या अपना ले मुझे तू महाभट खा गया लाखों हजारों **************************** Shijju S. मचलता और उठता जा रहा हूँ कमी है जिन्दगी में तेरी जानाँ वो तेरा अक्स मेरे सामने था मेरे टूटे हुए ख़्वाबों के रेज़े मैं खुद को ढूंढता हूँ अपने अंदर असर तेरी दुआओं का है मुझ पर ****************************** Sarita Bhatia मुहब्बत कर अभी पछता रहा हूँ अदाओं पे तेरी मैं हूँ फ़िदा क्यों? आये सैलाब तू मुझको जो छू दे मेरी तक़दीर में शायद नही तू मेरी तनहाइयों के उन पलों में ये आतिश आप ना आगोश लेना गज़ल तुम हो बना हूँ काफिया मैं समंदर हूँ अगर सरिता तू मेरी ************************* सानी करतारपुरी बना सब के लिए आइना रहा हूँ, मंज़िलों का ज़रिया सा रहा हूँ, तेरे लम्स ने अब शिनाख्त दी है, सच हूँ! कोई तारीख़ उठा देखो, रिश्तों की दावेदारी थी आखिर, बदन काँच का है शह्र पत्थरों का, कभी चिराग़ बुझा गयी थी मेरे, सरे-मकतल सर कटने तक भी, उजालों की बस्ती की तलाश में, मिरे नफ़स से रवायतें तो जलेंगी, गुमशुदा हैं मेरे खेतों की बारिशें, ********************************* CHANDRA SHEKHAR PANDEY पियादों से सदा पिटता रहा हूं। सियासत में मुझे इतना गिराया, जड़ें वो खोद के बैठे हुए हैं, कहां बैठा हुआ कातिल अभी तक, चला आ आज फिर तेरी कसम है, *************************** Arun Srivastava समन्दर से कहीं गहरा रहा हूँ तुम्हीं हो जिन्दगी पर ये भी सच है तुम्हारी मंजिलें हैं जो अलग थीं न जाने क्यों छलक जातीं हैं आँखें न छेड़ो बात अब दरियादिली की कि जाहिर हो न उरयानी वफ़ा की मैं बन्जारामिजाजी छोड़ देता जुदा होकर न तुझको भूल जाऊं ************************** अरुन शर्मा 'अनन्त' उजाले से जो मैं टकरा रहा हूँ, खता की मैंने भी तो दिल लगाकर, मुनाफा तुममें डॉलर सा हुआ है, तसव्वुर में तुझे अपना बनाकर, ग़ज़ल तुम बिन रदीफ़ों काफियों की, सवेरे शाम हर पल रात दिन अब, तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ, *************************** Dr Ashutosh Mishra दिले नादान को बहला रहा हूँ मेरे गेसू उदासी के आलम में मिला है चाँद यूं तनहा फलक पर तू ना आयी तो तेरी याद आयी मिटा दूं कैसे वो यादें तुम्हारी भुलाना तुम को चाहा पर न भूला कभी हमने न खाई रोटी तुम बिन तेरे क़दमों की आहट रोज सुनकर खिलौना खेलने की अब उम्र ना अरे क्यूँ आशु पागल इस तरह हो ****************************** Laxman Prasad Ladiwala इसी पानी से मै बढ़ता रहा हूँ जवानी खो दी यूँ ही सारी मैंने कभी था मै भी आँखों का तारा जवानी में वक्ता यूँ गँवा बैठा क़यामत आ रही नजदीक अब तो ****************************** Tilak Raj Kapoor तुम्हें मैं स्वर्ण मृग दिखता रहा हूँ सज़ा-ए-इश्क की तन्हाइयों में तेरे ख़त की इबारत को समझकर कबीरा आप कहलें या कि नीरो नसीबा था हवा के साथ उड़ना नयन के द्वार पर ठहरो सपन तुम बहारों में लदा हूँ जब फ़लों से ***************************** Rana Pratap Singh मैं भीतर से ज़रा बच्चा रहा हूँ बियाबाँ और भी हैं इस डगर में मुनासिब है नहीं अब ज़िक्र मेरा सिमट जाता है हर एक साल जो वो सितारे अब चमकना छोड़ देंगे सदा हक मांगना पड़ता है मुझको मुहब्बत, बस मुहब्बत ही मुहब्बत न देखो पाओं के इन आबलों को इलाही मुझको बस इतना बता दे मैं क्या हूँ? और क्या करता रहा हूँ? नहीं कर पाओगे तुम ख़त्म मुझको भरी महफ़िल में बैठा हूँ मगर मैं ***************************** arvind ambar ******************************
|
गज़लें मुशायरे में जिस क्रम में आई हैं उन्हें उसी क्रम में स्थान दिया गया है| किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा कहीं मिसरों को चिन्हित करने में गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
Tags:
एक जिज्ञासा थी -
//३. भर्ती के लफ्ज़:- शेर में ऐसे लफ़्ज़ों का प्रयोग जिनका कोई अर्थ ही नहीं है या महज़ शेर को वजन में फिट करने के लिए बीच में घुसाया गया हो भर्ती के शब्द कहलाते हैं| उदाहरण के लिए मिसरे के प्रारम्भ में "कि" लगा देना, अभी के साथ भी लगाकर अभी भी, क्रिया में कर लगाने के बावजूद बाद में के लगाना जैसे खाकर के आदि| इन भर्ती के शब्दों से हमेशा बचना चाहीये|//
मेरे इस मिसरे में में मैंने यही किया है ! शे'र की कहन को ध्यान में रखते हुए क्या इसेभी भरती का लफ्ज कहेंगे ? असमंजस इसलिए कि इसे रंगीन नहीं किया गया ! और मुझे भी लगता है कि ये शब्द शे'र के भाव को पुष्ट कर रहा हैं ! हालाँकि मैंने लिखा है तो मुझे तो वैसे भी कमी नहीं लगेगी ! :-)))))))
मार्गदर्शन चाहूँगा !
कि जाहिर हो न उरयानी वफ़ा की
ये मैं जो आज तक पर्दा रहा हूँ
अरुण जी
कि जाहिर हो न उरयानी वफ़ा की
इस मिसरे में आया "कि" पूरी तरह भर्ती का ही है ..क्योंकि मिसरे में इसे अगर न भी लगाएं तो उसका अर्थ नहीं बदल रहा है, आप अगर मिसरे को ऐसा कर दें तो इससे निजात पा सकते हैं
हुई ज़ाहिर न उरयानी वफ़ा की
मिसरों में रंग भरते समय किन ऐबों को ध्यान में रखा गया है मैं ऊपर ही लिख चुका हूँ, अभी भरती के अलफ़ाज़ पर मिसरों में रंग भरना प्रारंभ नहीं किया है|
इस त्वरित उत्तर के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद ! सुधार कर लूँगा ! :-))
सादर !
आदरणीय श्री राणा जी ,. गजलों के संकलन के साथ ही बहुत ही शिक्षा प्रद जानकारी उपलब्ध कराने के लिए आप का बहुत बहुत आभार
mera pahala anubhaw aapke saath.........bahut maza aaya............aap logon ka aatmik vandan!!
maine isi manch se pad pad kar gazal ko samjha ab yahan ka kuchh karz louta saka to mera aho bhagya!!
आदरणीय मंच संचालक जी
सादर नमन ,
आपकी मेहनत और आपके मार्गदर्शन को प्रणाम ,इस विद्यालय से जुड़कर विश्वास हो रहा है कि ग़ज़ल सीखी जा सकेगी बहुत बहुत आभार
bahut bada kaam .............
aapke is mahati kaary ko pranaam
और अब पेश है उस ग़ज़ल के चंद अशआर जिस पर इतना बड़ा आयोजन हुआ|
मुसलसल हंस रहा हूँ, गा रहा हूँ
तेरी यादों से दिल बहला रहा हूँ
किनारे मेरी जानिब बढ़ रहे हैं
मगर मैं हूँ कि डूबा जा रहा हूँ
यहाँ झूठों को तमगे मिल रहे हैं
मैं सच्चा हूँ तो परखा जा रहा हूँ
अज्म शाकिरी
लाजवाब! काश! पूरी गज़ल होती तो मजा आ जाता!
बहरहाल, जो मिला वह भी कम नहीं।
ये अशआर आपने साझा किए, इसके लिए आपका आभार आदरणीय!
बेहतरीन गज़लें
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |