प्रस्तावना
साहित्य भाषाओं की सीमाओं के परे होता है। तमाम विधायें एक भाषा में जन्म लेकर दूसरी भाषाओं के साहित्य में स्थापित हुईं। हिन्दी भाषा साहित्य इससे परे नहीं रहा।
बात छायावाद से शुरू करते हैं। छायावाद काल के काव्य में गीत एवं प्रगीत को प्रमुखता मिली इसीलिए इस काल को प्रगीत काल भी माना जाता है। इस काल के कवियों ने पश्चिमी स्वच्छंदतावादी काव्य के प्रभाव में प्रगीत शैली को अपनाया। वे सर्वाधिक अंग्रेजी प्रगीत काव्य धारा से प्रभावित थे।
स्वरूप, पाठ्य विशेषताओं और गेयता के आधार पर अंग्रेजी प्रगीत और भारतीय गीत में काफी भिन्नता है। प्रगीत संगीत की लय में नहीं गाए जाते किंतु उनमें पर्याप्त माधुर्य और प्रवाह होता है। संगीत के विधान के अनुरूप गेय पद रचना, जिसमें काव्य एवं संगीत तत्व का संतुलन रहता है, गीत कहलाती है। पश्चिमी विद्वान पालग्रेव के अनुसार, ’प्रगीत (लिरिक) की रचना किसी एक ही विचार भावना अथवा परिस्थिति से संबंधित होती है तथा उसकी रचना शैली संक्षिप्त तथा भावरंजित होती है।’ शैली एवं आकार की दृष्टि से प्रगीत के छः स्वरूप हैं-
1. सॉनेट (चतुष्पदी)
2. ओड (संबोधन प्रगीत)
3. एलिजी (शोक प्रगीत)
4. सेटायर (व्यंग्य प्रगीत)
5. रिफ्लेक्टिव (विचारात्मक प्रगीत)
6. डाइडेक्टिव (उपदेशात्मक)
सॉनेट
सॉनेट इटैलियन शब्द sonetto का लघु रूप है। यह छोटी धुन के साथ मेण्डोलियन या ल्यूट (एक प्रकार का तार वाद्य) पर गायी जाने वाली कविता है।
जन्म
सॉनेट का जन्म कहाँ हुआ, इस पर मतभेद हैं। कुछ विशेषज्ञों का कहना है कि सॉनेट का जन्म ग्रीक सूक्तियों (epigram) से हुआ होगा। प्राचीन काल में epigram का प्रयोग एक ही विचार या भाव को व्यक्त करने के लिए होता था। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि इंग्लैण्ड और स्कॉटलैंड में प्रचलित बैले से पहले सॉनेट का अस्तित्व रहा है। यह भी मान्यता है कि यह सम्बोधिगीत (ode) का ही इटैलियन रूप है। एक मान्यता कहती है कि इस विधा का जन्म सिसली में हुआ और इसे जैतून के वृक्षों की छॅंटाई करते समय गाया जाता था।
इतिहास और स्वरूप
सॉनेट को विशेष रूप से तीन आयामों में देखा-परखा गया है-
1. आकृति की विशिष्टता
2. भाव की विशिष्टता के साथ वैयक्तिक अभिव्यक्ति।
3. सर्वांगपूर्णता, कल्पना, प्रेरणा और माधुर्य।
इटली
तेरहवीं शताब्दी के मध्य में सॉनेट का वास्तविक रूप सामने आया। फ्रॉ गुइत्तोन को सॉनेट का प्रणेता माना जाता है। इटली के कवि केपल लॉप्ट ने सॉनेट की खोज के लिए फ्रॉ गुइत्तोन को ‘काव्य साहित्य का कोलम्बस’ कहा है। फ्रॉ गुइत्तोन ने स्थापित किया कि सॉनेट की प्रत्येक पंक्ति में दस मात्रिक ध्वनियाँ होना चाहिए। गुइत्तोन के सॉनेट में कुल चौदह चरण होते हैं जो दो भागों में बॅंटे होते हैं-
1- अष्टपदी- अष्टपदी में पहली से चौथी की, चौथी से पाँचवीं की और पाँचवीं से आठवीं पंक्ति की तुक मिलायी जाती है। इसी तरह दूसरी से तीसरी की, तीसरी से छठवीं की और छठवीं से सातवीं पंक्ति की तुक मिलती है।
2- षष्ठपदी- षष्ठपदी में प्रायः पहली से चौथी की, दूसरी से पाँचवीं की और तीसरी से छठवीं पक्ति की तुक मिलायी जाती है। यह तीन-तीन चरणों में विभाजित रहती है। इसकी तुकान्त योजना में कुछ भिन्नताएँ भी हो सकती हैं।
गुइत्तोन और उसके पहले के सॉनेट रचनाकारों ने Guido Bonatti द्वारा ग्यारहवीं सदी में स्थापित सांगीतिक अनुशासन को अपनाकर सॉनेट की संरचना को गढ़ा। गुइत्तोन का मानना था कि कोई भी सॉनेट लेखक अपनी सांगीतिक पद्धति भी बना सकता है।
इसके बाद इटली के ही पेट्रार्का ने सॉनेट लिखे। पेट्रार्का की मान्यता थी कि सॉनेट का अन्त शुरूआत से अधिक लयात्मक होना चाहिए। पेट्रार्का और दान्ते ने गुइत्तोन सॉनेट में बदलाव भी किये। पेट्रार्का ने इसके लिए तीन तुकें निर्धारित की हैं। बाद में सॉनेट को तासो और अन्य कवियों ने भी अपनाया। इटली में प्रमुखतः सॉनेट के पाँच रूप मिलते हैं-
1. Twelve-syllabled lines (द्वादश मात्रिक सॉनेट)- इसमें एक पंक्ति में द्वादश मात्रिक ध्वनियाँ होती हैं। स्वर पर जोर नहीं होता, अन्त्याक्षर से तुक मिलायी जाती है।
2. Caudated or Tailed (पुच्छल सॉनेट)- इसमें दो या पाँच या इससे अधिक पंक्तियों का अनपेक्षित विस्तार होता है ।
3. Mute- यह एकाक्षरी तुकान्त वाला सॉनेट हास्य और व्यंग्य के लिए उपयुक्त होता है। इसमें दो अक्षर के तुकान्त भी होते हैं।
4. Linked or Interlaced (अन्तर्ग्रथित सॉनेट) - इसमें कोई कथा, भाव या विचार संगुम्फित होता है।
5. Conutinuous or Iterating (अविच्छिन्न सॉनेट)- इसमें ज़्यादातर एक ही तुक की सप्रवाह पुनरावृत्ति होती है। कभी दो तुकें भी मिलायी जाती हैं।
इंग्लैण्ड
सॉनेट को फ्रांस के कवियों, इंग्लैंड में सरे और स्पेन्सर तथा स्पहानी कवियों ने भी अपनाया। जर्मनी में पेट्रार्कन शैली के सॉनेट रचे गये। अंग्रेजी में इसे सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन, वर्डसवर्थ और कीट्स ने रचा।
सोलहवीं सदी में सर्वप्रथम Thomas wyat और Henry Howord (सरे) ने अँग्रेज़ी में सॉनेट लिखे। ये दोनों इटली में निवास के दौरान पेट्रार्का की कविताओं से प्रभावित हुए। Thomas wyat इटैलियन मॉडल को अपनाकर सॉनेट लिखते रहे। Henry Howord ने चौदह पंक्तियों की इतालवी शैली के साथ प्रयोग करते हुये दो तुकान्त संरचना अपनायी जो कि अँग्रेज़ी भाषा के लिए अधिक उपयुक्त थी-
A-b-A-b
C-D-C-D
F-F-F-F
G-G
स्पेन्सर, शेक्सपियर और मिल्टन तीनों के सॉनेट इतालवी स्वरूप से भिन्न हैं। इनमें अष्टपदी और षष्टपदी के बीच अन्तराल दिखाई पड़ता है, लेकिन दोनों बँटे हुए नहीं है।
स्पेन्सर ने इटैलियन और आरंभिक अँग्रेज़ी सॉनेट संरचनाओं को मिलाकर नया सॉनेट फॉर्म तैयार किया और इसी बदले रूप के साथ उन्होंने प्रेम सॉनेट ‘Amoretti’ शीर्षक से लिखे। एलिजाबेथ काल में बड़ी संख्या में लेखकों ने सॉनेट लिखे। फिलिप सिडनी ने इन्हें पूर्णता और सुन्दरता प्रदान की।
स्पेन्सर के फॉर्मेट को शेक्सपियर और मिल्टन ने नहीं अपनाया क्योंकि इसमें छांदिक स्वान्त्रय नहीं था। शेक्सपियर ने डेनियल और ड्राइटन के सॉनेट ढाँचे को अपनाया। शेक्सपियर के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बजाय तीन चतुष्पदियों और एक द्विपदी लय से बँधे हैं। शेक्सपियर की 'Sonnet 116' में से कुछ पंक्तियाँ संदर्भ के लिए प्रस्तुत हैं।
‘Let me not to the marriage of true minds (a)
Admit impediments, love is not love (b)*
Which alters when it alteration finds, (a)
Or bends with the remover to remove.’ (b)*
मिल्टन के सॉनेट अष्टपदी और षष्टपदी के बीच नैरन्तर्य के लिए जाने जाते हैं। मिल्टन की एक रचना 'On His Blindness' की कुछ पंक्तियां यहाँ उदाहरण के रूपमें प्रस्तुत हैं जिससे इतालवी प्रारूप का आभास मिलता है-
‘When I consider how my light is spent (a)
Ere half my days, in this dark world and wide, (b)
And that one talent which is death to hide, (b)
Lodged with me useless, though my soul more bent’ (a)
इस प्रकार अंग्रेजी सॉनेट रचना की चार कोटियाँ निर्धारित की जा सकती हैं-
1. पेट्रर्कन
2. स्पेन्सरियन
3. शेक्सपीरियन
4. मिल्टानिक
भारत
भारतीय उपमहाद्वीप में सॉनेट असमी, बंगाली, डोंगरी, अंग्रेजी, गुजराती, हिन्दी, कश्मीरी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, सिन्धी, उर्दू आदि सभी भाषाओं में लिखे गये।
उर्दू
ऐसा माना जाता है कि अज़मतुल्ला खान ने बीसवीं सदी के प्रारम्भ में इस विधा से उर्दू साहित्य का परिचय कराया। अख्तर जूनागढ़ी, अख्तर शीरानी, नून मीम राशिद, मेहर लाल सोनी, ज़िया फतेहबादी, सलाम मछलीशहरी, और वाज़िर आगा ने इस विधा पर हाथ आजमाए। ज़िया फतेहबादी के संग्रह ‘मेरी तस्वीर’ के एक सॉनेट, जो कि शेक्सपियर के सॉनेट के बहुत करीब है, की पंक्तियाँ देखें-
‘नज़र आई न वो सूरत, मुझे जिसकी तमन्ना थी (c)
बहुत ढूंढा किया गुलशन में, वीराने में, बस्ती में (d)
मुनव्वर शमा ऐ मेहर ओ माह से दिन रात दुनिया थी (c)
मगर चारों तरफ था घुप अंधेरा मेरी हस्ती में’ (d)
हिन्दी
हिन्दी में सॉनेट बीसवीं सदी में आया। हिन्दी के कुछ कवियों ने इसे अपनाया जरूर लेकिन इस विधा पर बहुत अधिक ध्यान केन्द्रित नहीं किया गया।
त्रिलोचन शास्त्री हिन्दी काव्य में सॉनेट के स्थापक माने जाते हैं। त्रिलोचन ने लगभग ५५० सॉनेटों की रचना की है। त्रिलोचन ने इस विधा का भारतीयकरण किया। इसके लिए उन्होंने रोला छंद को आधार बनाया तथा बोलचाल की भाषा और लय का प्रयोग करते हुए चतुष्पदी को लोकरंग में रंगने का काम किया। उनके सॉनेट में 14 पंक्तियाँ होती हैं और प्रत्येक पंक्ति में 24 मात्रायें। सॉनेट के जितने भी रूप-भेद साहित्य में किए गए हैं, उन सभी को त्रिलोचन ने आजमाया। त्रिलोचन द्वारा इस विधा पर किए गए प्रयोगों की बानगी इन उदाहरणों में देखें-
'विरोधाभास'
‘संवत पर सवत बीते, वह कहीं न टिहटा,
पाँवों में चक्कर था। द्रवित देखने वाले
थे। परास्त हो यहाँ से हटा, वहाँ से हटा,
खुश थे जलते घर से हाथ सेंकने वाले।‘
आरर-डाल
‘सचमुच, इधर तुम्हारी याद तो नहीं आयी,
झूठ क्या कहूं। पूरे दिन मशीन पर खटना,
बासे पर आकर पड़ जाना और कमाई
का हिसाब जोड़ना, बराबर चित्त उचटना।‘
बिल्ली के बच्चे
‘मेरे मन का सूनापन कुछ हर लेते हैं
ये बिल्ली के बच्चे, इनका हूं आभारी।
मेरा कमरा लगा सुरक्षित, थी लाचारी,
इनकी माँ ले आई। सब अपना देते हैं’
प्रभो, पुत्र वह माँग रही है
‘प्रभो, पुत्र वह माँग रही है।‘ ‘लिखा नहीं है।‘
फिर गोस्वामी तुलसीदास और क्या कहते।
तो भी दासी की विनयों में बहते-बहते।
तीन बार पूछा। प्रभु बोले, ‘लिखा नहीं है।‘
नामवर सिंह की एक रचना की कुछ पंक्तियाँ देखें।
‘बुरा जमाना, बुरा जमाना, बुरा जमाना
लेकिन मुझे जमाने से कुछ भी तो शिकवा
नहीं, नहीं है दुख कि क्यों हुआ मेरा आना
ऐसे युग में जिसमें ऐसी ही बही हवा’
त्रिलोचन की एक पूरी सॉनेट यहाँ उदाहरण के रूप् में प्रस्तुत है जो इसके स्वरूप, गेयता और तुकांत के लिए अच्छा उदाहरण हो सकती है-
सॉनेट का पथ
इधर त्रिलोचन सॉनेट के ही पथ पर दौड़ा;
सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट, सॉनेट; क्या कर डाला
यह उस ने भी अजब तमाशा। मन की माला
गले डाल ली। इस सॉनेट का रस्ता चौड़ा
अधिक नहीं है, कसे कसाए भाव अनूठे
ऐसे आएँ जैसे क़िला आगरा में जो
नग है, दिखलाता है पूरे ताजमहल को;
गेय रहे, एकान्विति हो। उस ने तो झूठे
ठाटबाट बाँधे हैं। चीज़ किराए की है।
स्पेंसर, सिडनी, शेक्सपियर, मिल्टन की वाणी
वर्ड्सवर्थ, कीट्स की अनवरत प्रिय कल्याणी
स्वर-धारा है, उस ने नई चीज़ क्या दी है।
सॉनेट से मजाक़ भी उसने खूब किया है,
जहाँ तहाँ कुछ रंग व्यंग्य का छिड़क दिया है।
त्रिलोचन के बाद इस विधा पर बहुत कम काम देखने को मिलता है। आज जरूरत है इस विधा को हिन्दी में स्थापित करने की।
- बृजेश नीरज
(मौलिक व अप्रकाशित)
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जी अवश्य!
इस आलेख का उद्देश्य यह था कि इस विधा के लिए हिन्दी में रास्ता बनाया जाए इसलिए अपना मन्तव्य न थोपते हुए मैंने इस विधा के हिन्दी में प्रवेश तक की बातों का जिक्र किया है। मेरा अनुरोध यह है कि इस विधा पर खुलकर चर्चा हो जिससे कि ऐसे रास्ते सुलभ हो सकें जिस पर चलकर इस विधा पर आगे कार्य किया जा सके।
सादर!
आदरणीय बृजेश जी,
सॉनेट पर जो शोधपरक कार्य आप कर रहे हैं उसमें अभी काफी परतों का एक-एक कर खुलना बाकी है.. जिसके लिए मानक स्थापित करती सॉनेट की मूल परिभाषाओं को भी आप उनके स्रोत सहित अवश्य ही शामिल कीजिये.
इटेलियन सॉनेट और इंग्लिश सॉनेट के स्ट्रक्चर पर आपने प्रकाश डाला है पर जिस तरह अंग्रेजी में अंतर्गेयता के लिए फुट या मीटर को एक इकाई मानते हैं उसी तरह हिन्दी में गण हैं जिनपर सवैया जैसे छंदों को लिखा जाता है.
जहाँ तक हायकू की बात तो जापानी में इसे 5-7-5 od पर लिखा जाता है, इंग्लिश में इसे 5-7-5 सीलेबल्स पर लिखते हैं और हिन्दी में भी उसे 5-7-5 वार्णिक गणना पर साधा जाता है.
सॉनेट के हिन्दी स्वरुप में २४ मात्रा क्यों और कैसे...ये मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा..
प्रति पंक्ति अंतर्गेयता के लिए क्या कोई भी इसमे विधान नहीं है....इस पर भी मुझे आश्चर्य है
ऐसे कुछ उत्तर हमें तलाशने होंगे..
हिन्दी में सॉनेट विधा की उत्पत्ति के प्रारंभिक प्रयासों पर हमें और जानकारी एकत्रित करनी होगी जो इन गुत्थियों को सुलझाने में मददगार होगी.
आप विधा के शिल्प पर अपना शोधपरक आलेख प्रस्तुत कीजिये हिन्दी में हे अलग अलग रचनाकारों नें सॉनेट को कैसे लिखा है ..इसका भी सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाना ज़रूरी है.
आप अपने शोध को बिल्कुल आगे बढ़ाएँ..
सादर.
आदरणीया प्राची जी,
मैं आप द्वारा उल्लिखित बिंदुओं पर जानकारी एकत्रित करने का प्रयास कर रहा हूं।
जल्द ही आपके समक्ष प्रस्तुत करूंगा।
सादर!
//इटेलियन सॉनेट और इंग्लिश सॉनेट के स्ट्रक्चर पर आपने प्रकाश डाला है पर जिस तरह अंग्रेजी में अंतर्गेयता के लिए फुट या मीटर को एक इकाई मानते हैं उसी तरह हिन्दी में गण हैं जिनपर सवैया जैसे छंदों को लिखा जाता है.//
पद रचना के लिए वर्णों के अलावे मात्रिक छंदों में प्रयुक्त सनातन ((Universal) शब्द-संयोजन विधान तो है ही.
हाइकू विचार को भाषायी इकाइयों में व्यवस्थित करने के प्रयास का नाम है। उच्चारण के हिसाब से अंग्रेजी में सिलेबल इकाई है तो हिंदी में वर्ण, इसीलिए दोनों भाषाओं में इन इकाइयों को आधार बनाकर ही हाइकु लिखे जाते हैं।
गुइत्तोन ने जब सॉनेट को लेकर आधारभूत नियम की स्थापना की तो उन्होंने इसके लिए प्रत्येक पंक्ति में 10 मात्रिक ध्वनियों का होना जरूरी समझा। अंग्रेजी में जब यह विधा आयी तो इसी आधार पर सिलेबल को इकाई मानते हुए शब्दों को व्यवस्थित करने का प्रयास किया गया। हिंदी में रूपांतरित करते समय इसके लिए 24 मात्रा का नियम रखा गया। इसका आधार जो मुझे समझ आता है वह यह कि अन्य भाषा की सॉनेट को पंक्ति को पढ़ते समय जो समय खर्च होता है, वह समय हिंदी में कितनी मात्राओं के साथ खर्च होगा, इस तथ्य को आधार बनाया गया होगा। ध्वनियाँ शब्द बहुत महत्वपूर्ण है।
आपके लिंक में उल्लिखित पंक्ति को देखें-
//he TURNED the FOURteenth GLASS and SAID, “beGIN.//
एक बार फिर मैं कहूंगा कि अंग्रेजी में कई अक्षर शब्द में होते हुए भी उच्चारण में महत्वपूर्ण स्थान नहीं बना पाते। कई अक्षर मिलकर एक ध्वनि उत्पन्न करते हैं। जब हम दूसरी भाषा में रूपांतरण करते हैं तो यह तथ्य महत्वपूर्ण हो जाता है। रूपांतरण के समय ध्वनियाँ ही महत्वपूर्ण होती हैं।
अब इसी अंग्रेजी सॉनेट की पंक्ति को हम हिंदी में लिखें-
//ही टर्न्ड द फोरतीन्थ ग्लास एंड सेड बिगिन//=24 मात्रायें
24 मात्रा पर संतुष्टि के उपरांत ही अन्य किसी बिंदु पर चर्चा करना उपयुक्त होगा।
सादर!
//he TURNED the FOURteenth GLASS and SAID, “beGIN.//
//ही टर्न्ड द फोरतीन्थ ग्लास एंड सेड बिगिन//=24 मात्रायें
वाह ! यह जानना वास्तव में बहुत रोचक है और इस तरह से इसे सुलझाने का प्रयास करने के लिए बहुत बहुत बधाई..
यदि ऐसा ही औसतन देखा जाए तो इस २४ मात्रा की गुत्थी झट ही सुलझ जाए...:))
शुभकामनाएँ
//सॉनेट के हिन्दी स्वरुप में २४ मात्रा क्यों और कैसे...ये मुझे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा..//
इस प्रश्न पर मैं आता हूँ, आदरणीया और अपनी समझ के अनुसार आप सबों से कुछ विन्दु साझा करता हूँ. कुछ त्रुटि हो तो हम मिल बैठ कर समाधान निकाल लेंगे.
//प्रति पंक्ति अंतर्गेयता के लिए क्या कोई भी इसमे विधान नहीं है....इस पर भी मुझे आश्चर्य है //
ऐसा प्रश्न ? अच्छा-अच्छा, त्रिलोचन, धूमिल, शेरजंग या नागार्जुन जैसों ने डरा दिया है आपको... :-))))
आप पर कोई दवाब बना रहा है क्या कि आप मात्रिकता के शब्द संयोजन को नकार दें ? नहीं न !
फिर तो कुछ कहना ही क्या ? अपना मात्रिक संसार तो है ही. गेयता उसका मनोरम रूप !!
शुभ-शुभ
आ0 बृजेश भाई जी, सादर प्रणाम! विधा विषय पर आदरणीय गुरूजन और विधा विशेषज्ञ ही स्पष्ट कर सकेगें। मेरा तो केवन यह मत है कि यदि आप सानेट के प्रचार और प्रसार में दिलचस्पी रखते हैं तो यह विधा/नियम पूर्व में क्यों नहीं उद्घाटित किया था, या फिर कोई संशय था? फिलहाल, आपके वैचारिक मत को दृढ़ करते हुए आपको हार्दिक बधाई। सादर,
आदरणीय केवल जी,
आप क्या कह जाते हैं, शायद इसका भान आपको भी नहीं होता। आपने न लेख को ध्यान से पढ़ा और न इसे समझा। आपने यह किस आधार पर कह दिया कि मैं सानेट के प्रचार-प्रसार में लगा हूँ? क्या मैंने कोई बैनर छपवाया है या किसी अखबार में विज्ञापन दिया है? आप छंद लिखते हैं या उसकी बात करते हैं तो क्या उसका प्रचार प्रसार करते हैं? या फिर आपको जिस विधा का ज्ञान नहीं है उसकी बात करना अपराध है?
//तो यह विधा/नियम पूर्व में क्यों नहीं उद्घाटित किया था//
कौन सी विधा या नियम पूर्व में उद्घाटित किया जाना चाहिए था।
//या फिर कोई संशय था?//
किस बात का संशय महोदय?
मुझे तो लगता है कि आपने सिर्फ आदरणीया प्राची जी की टिप्पणी को देखकर बिना लेख को पढ़े ही यह टिप्पणी कर दी है। महोदय, इस तरह की टिप्पणियाँ करते समय तनिक गंभीर होइए। अपने साथियों के प्रयासों को यूँ हाशिए पर डालने की कोशिश उचित नहीं।
आपकी बधाई के लिए हार्दिक आभार!
सादर!
आ0 बृजेश भाई जी! सादर प्रणाम! कृपया आप अपने गंभीर बातों में कुछ मधुरता भी घोलने का काम करें!....आपने मेरी अंतिम बात //आपके वैचारिक मत को दृढ़ करते हुए आपको हार्दिक बधाई।// को पढ़ा ही नही। मेरा आशय केवल इतना था कि जब आपने सानेट पर प्रथम कविता प्रस्तुत की थी उस समय इस लेख का अतिमहत्व होता...किन्तु आज अचानक ही इतने वृहद लेख की क्या जरूरत पड़ गयी?
दूसरी बात हर पाठक का अपना विचार होता है- उसकी टिप्पणी रास न आए तो आगे बढि़ए अथवा समुचित उत्तर प्रषित करें। किसी की टिप्पणी किसी के साथ जोड़ना कत्तई सद्गुण नही हैं।
एक प्रश्न मेरा और है- हिन्दी में सानेट का नामकरण हुआ? यदि नहीं तो क्यों ? यदि भविष्य में होगा तो क्या होगा? क्यों कि- किसी भी बाहरी छन्द को यदि किसी अन्य भाषा में अपनाया जाता है तो उसको उसी भाषा में नाम भी मिलना चाहिए। ऐसा मेरा मत है और तभी उसे अंगीकार करने में सहजता भी मिल सकेगी। और अन्त में पुनः आपको दृढ़ करते हुए सद्भावनाओं सहित शुभेच्छा। सादर,
आदरणीय केवल जी, आपके सुझावों के लिए आपका आभार!
//आज अचानक ही इतने वृहद लेख की क्या जरूरत पड़ गयी?//
क्यों भाई? आज में क्या समस्या है? इस संबंध में ओबीओ के समूह ‘सुझाव एवं शिकायत’ में आप आपत्ति उठा सकते हैं।
महोदय, इस लेख को प्रस्तुत करने का आदेश मुझे आदरणीय राणा जी से प्राप्त हुआ था। आप चाहें तो उनसे या ओबीओ प्रबंधन से इसके औचित्य पर प्रश्न कर सकते हैं।
//दूसरी बात हर पाठक का अपना विचार होता है- उसकी टिप्पणी रास न आए तो आगे बढि़ए अथवा समुचित उत्तर प्रषित करें। किसी की टिप्पणी किसी के साथ जोड़ना कत्तई सद्गुण नही हैं।//
आप अपनी पहली टिप्पणी की भाषा देख लें। आपने कोई विचार प्रस्तुत नहीं किया है।
//एक प्रश्न मेरा और है- हिन्दी में सानेट का नामकरण हुआ? यदि नहीं तो क्यों ? यदि भविष्य में होगा तो क्या होगा? क्यों कि- किसी भी बाहरी छन्द को यदि किसी अन्य भाषा में अपनाया जाता है तो उसको उसी भाषा में नाम भी मिलना चाहिए।//
आपका यह प्रश्न बहुत ही उचित है?
आपके प्रश्न का उत्तर दूं, उसके पहले मेरे कुछ प्रश्नों का आप उत्तर दें।
गज़ल उर्दू की विधा है, उसको हिंदी में क्या नाम दिया गया है?
हाइकु जापानी विधा है, उसका हिंदी में क्या नाम है?
आपने यदि इस लेख को वास्तव में पढ़ा होता तो शायद इसके हिंदी नाम की जानकारी हो गयी होती।
आपसे सादर अनुरोध है कि आपको यदि उचित लगे तो इस आलेख को कृपया एक बार देखें और इस विधा के संबंध में ही बात की जाए।
आपकी सद्भावनाओं के लिए आपका हार्दिक आभार!
सादर!
आ0 बृजेश भाई जी, नम्रता सफलता की कुंजी है। गंभीरता या ओज सदैव ही संशय प्रकट करता है। मुझे किसी सुझाव या शिकायत में विश्वास नही है। आपकी बात कि आपने एडमिन से स्वीकृति प्राप्त की है और न भी की होती तो भी आपके विचारों से मैं कम से कम असहमत तो कभी न होता। आपने जिस उद्देश्य हेतु लेख प्रस्तुत किया है, उसका प्रसार भी विनम्रता पूर्वक हो ऐसा मेरा मानना है। भाई जी! विचार और प्रश्न तो उठेगें ही और उनका उत्तर भी सहजता से देना होगा। शुभेच्छा, सादर
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