For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कैकई के मोह को

पुष्ट करता

मंथरा की

कुटिल चाटुकारिता का पोषण

 

आसक्ति में कमजोर होते दशरथ

फिर विवश हैं

मर्यादा के निर्वासन को

 

बल के दंभ में आतुर

ताड़का नष्ट करती है

जीवन-तप  

सुरसा निगलना चाहती है

श्रम-साधना

एक बार फिर

 

धन-शक्ति के मद में चूर

रावण के सिर बढ़ते ही जा रहे हैं 

 

आसुरी प्रवृत्तियाँ

प्रजननशील हैं

 

समय हतप्रभ

धर्म ठगा सा आज है फिर

 

राम ! तुम कहाँ हो ?

‌‌‌‌‌‌‌‌‍=====================

--बृजेश नीरज

(मौलिक व अप्रकाशित)

 

Views: 724

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 6:09pm

आदरणीय सौरभ जी रचना पर आपको उपस्थिति के लिए आपका हार्दिक आभार!

आपके शब्द मुझे उत्साहित करते हैं रचनाकर्म के लिए और आपका मार्गदर्शन उस कर्म को दिशा देता है! इसके लिए आभार व्यक्त करने को मेरे पास शब्द नहीं हैं!

सादर!

Comment by बृजेश नीरज on October 17, 2013 at 6:03pm

आदरणीया प्राची जी आपका हार्दिक आभार! रचना आपको पसंद आई, यही मेरे प्रयास की सफलता है!

सादर!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 17, 2013 at 4:11pm

जाने वो कैसा समय रहा होगा जिसकी विसंगतियों से उद्धार पाने के लिए अवतारों और पराक्रमियों की परिकल्पनाएँ की गयी थीं.

क्या पता, कौन जाने, वे परिकल्पनाएँ सत्य आधारित भी थीं या मात्र गल्प ही थीं, जिनके शब्द और कथ्य हम आजतक चुभलाते जा रहे हैं ! कौन जाने क्षुब्ध जन-समाज के मन को उसकी अतिरेक परिस्थितियों और अतुकान्त विवशता से डाइवर्सन पर डालने के लिए, रचा गया गल्प !

लेकिन ये गल्प ही सही, वायव्य संसार बना कितनी राहत देता है एक उजबुजाये मन को ! जो यह मनोविज्ञान समझ सके वही कवि है. इसके प्रति समाज को कोई संशय नहीं रहा है कभी. 

या, यदि सत्य आधारित पात्र ही थे वो तो फिर ऐसे पात्रों के अवतरण की अवधारणाएँ किन परिस्थितियों में संभव हैं ?

भाई बृजेशजी, आपकी प्रस्तुत रचना समानान्तर दुर्दम्य परिस्थितियों, असहज सम्बन्धों और घोर विसंगतियों के व्याप जाने की साक्षी सदृश खड़ी है. वाह !

आपकी रचना लगातार सक्षम होते आपके शाब्दिक आग्रह और तदनुरूप रचनाकर्म को आवश्यक गहनता देती है. आप बस सतत क्रियाशील बने रहें. निर्बीज प्रतिक्रिया या भोथरे प्रतिकार के तौर पर नहीं. बल्कि रचनाधर्मिता की प्रसव-पीड़ा को मान देने के लिए.

इस सार्थक और सफल कविता के लिए हृदय से बधाई.

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 12:44pm

आदरणीय बृजेश जी 

अतीक पौराणिक बिम्बों का प्रयोग करते हुए सामयिक हालातों को बहुत सुन्दरता से अभिव्यक्ति मिली है...

आसुरी प्रवृत्तियाँ

प्रजननशील हैं

समय हतप्रभ

धर्म ठगा सा आज है फिर........................मर्मस्पर्शी पंक्ति 

राम ! तुम कहाँ हो ?

हार्दिक शुभकामनाएं 

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 9:36pm

आदरणीया गीतिका जी आपका हार्दिक आभार! आपका अनुमोदन पाकर मेरा प्रयास सार्थक हुआ!

Comment by वेदिका on October 16, 2013 at 9:20pm

आसुरी प्रवृत्तियाँ

प्रजननशील हैं

 

समय हतप्रभ

धर्म ठगा सा आज है फिर

 

राम ! तुम कहाँ हो ?

अंतर से पुकार मुखरित हुयी है | बधाई !!

Comment by बृजेश नीरज on October 16, 2013 at 1:27pm

आदरणीय बैद्यनाथ जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Saarthi Baidyanath on October 16, 2013 at 1:26pm

आसुरी प्रवृत्तियाँ

प्रजननशील हैं....... सारगर्भित पंक्तियाँ ...अत्यंत भाव पूर्ण ..! बढ़िया एवं उत्तम रचना ! बधाई बृजेश साहब :)

Comment by बृजेश नीरज on October 15, 2013 at 6:37am

आदरणीय सुशील जी आपका हार्दिक आभार!

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 4:04am

आज के वास्तविक हालात को बयाँ करती इस सुंदर प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक बधाई हो आदरणीय बृजेश जी..... सचमुच आज एक राम की आवश्यकता आन पड़ी है जो रावण के इन बढ़ते हुए सिरों को जड़ से उखाड़ने में सक्षम हो.......

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आधुनिक जीवन के परिप्रेक्ष्य में माता के दायित्व और उसके ममत्व का बखान प्रस्तुत रचना में ऊभर करा…"
8 minutes ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश भाई, पटल के आयोजनों में आपकी शारद सहभागिता सदा ही प्रभावी हुआ करती…"
13 minutes ago
Sushil Sarna replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ   .... बताओ नतुम कहाँ होमाँ दीवारों मेंस्याह रातों मेंअकेली बातों मेंआंसूओं…"
3 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"माँ की नहीं धरा कोई तुलना है  माँ तो माँ है, देवी होती है ! माँ जननी है सब कुछ देती…"
17 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय विमलेश वामनकर साहब,  आपके गीत का मुखड़ा या कहूँ, स्थायी मुझे स्पष्ट नहीं हो सका,…"
18 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय, दयावान मेठानी , गीत,  आपकी रचना नहीं हो पाई, किन्तु माँ के प्रति आपके सुन्दर भाव जरूर…"
18 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
23 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय दयाराम मैठानी जी प्रदत्त विषय पर आपने बहुत सुंदर रचना प्रस्तुत की है। इस प्रस्तुति हेतु…"
23 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी, अति सुंदर रचना के लिए बधाई स्वीकार करें।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"गीत ____ सर्वप्रथम सिरजन अनुक्रम में, संसृति ने पृथ्वी पुष्पित की। रचना अनुपम,  धन्य धरा…"
yesterday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"आदरणीय सौरभ पांडेय जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-178
"वाह !  आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त विषय पर आपने भावभीनी रचना प्रस्तुत की है.  हार्दिक बधाई…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service