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कभी जब तुम नही रहते

कभी जब तुम नही रहते ,
तुम्हारा कोई "अहसास" रहता है
कि जैसे बंद कमरे मे
कोई आहट गुजरती हो
कि जैसे हवा के साथ कोई
ख़ुशनुमा ठंडा झोंका
मेरे कमरे में आता , जाता
पर
ठहरता नहीं है
कि जैसे किसी बंद क़िताब के पन्ने
कोई सदा देते हों
कि जैसे पुराने खतों की खुश्बू
गुदगुदाती हो
कोई पुरानी तस्वीर
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई ,
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है
कभी जब तुम नहीं रहते ,
तुम्हारा कोई " अहसास" रहता है..........

अजय कुमार शर्मा
अप्रकाशित एवं अमुद्रित
------------

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Comment

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Comment by vijay nikore on November 19, 2013 at 10:37am

इस सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीय अजय जी।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 19, 2013 at 10:37am

कोई पुरानी तस्वीर
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई ,
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है
कभी जब तुम नहीं रहते ,
तुम्हारा कोई " अहसास" रहता है...

जीवन में जो आपका प्रिय हो, अगर आपके करीब न हो तो, एक एहसास सदा आपके पास होता है, हृदयस्पर्शी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय अजय जी


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 18, 2013 at 11:08pm

किसी अपने के पास न होते हुए भी होने के एहसास को जीते हुए लिखी गयी इस अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई 

Comment by नादिर ख़ान on November 18, 2013 at 10:18pm

कोई पुरानी तस्वीर 
जैसे बोलने को बे-करार हो
कि जैसे वक़्त का टुकड़ा कोई , 
गुज़र कर भी नहीं गुज़रता है 
कभी जब तुम नहीं रहते , 

सुंदर एहसास, दिल को छूता हुआ

 बहुत खूब अजय जी ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 18, 2013 at 4:46pm

आदरनीय अजय जी बेहतरीन रचना के लिए हर्दिक 

Comment by राजेश 'मृदु' on November 18, 2013 at 3:51pm

जय हो, बहुत सुंदर प्रस्‍तुति, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 17, 2013 at 2:37pm

आदरणीय अजय भाई , एक मनः स्थिति का बहुत भाव पूर्ण प्रस्तुति  !!! आपको हार्दिक बधाई !!!!

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 17, 2013 at 2:08pm

आदरणीय अजय जी प्रयास हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें शेष आदरणीय भ्राताश्री जी ने कह दिया है उनकी बातों का सज्ञान करें.


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2013 at 12:17pm

आदरणीय अजय शर्मा जी, कथ्य को यदि शिल्प का सहारा मिल जाय तो रचना में जान आ जाया करती है, इस प्रयास पर बधाई प्रेषित है । 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 17, 2013 at 12:14pm

आपका अहसास चिरंतन है  i इस अहसास से सभी गुजरते है i पर आपके शब्दों में जो दर्द है वह इस अहसास को भाव प्रवण बनाता है i

मेरा स्नेह i

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