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कभी रोटी, कभी कपड़े के लिए गिड़गिड़ाना किस को कहते हैं 

किसी अनाथ बच्चे से पूछो रोना किस को कहते हैं 

कभी उसकी जगह अपने को रखो फिर जान जाओगे 

कि दुनिया भर का दुःख दिल मे समेटना किस को कहते हैं 

उसकी आँखें, उसके चेहरे को एक दिन घूर के देखो 

मगर ये मत पूछना कि वीराना किसको कहते हैं ... 

तुम्हारा दिल कभी छोड़े अगर दौलत कि खुमारी को  

तो तुम्हें मालूम हो जाएगा कि गरीबी किसको कहते हैं .... 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by डॉ. अनुराग सैनी on November 21, 2013 at 9:40pm

सही  अर्थ और भाव से भरी इस रचना पर आपको सादर बधाई 

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 21, 2013 at 8:11pm

आ0 गोपाल नारायण सर.... उत्साह बढ़ाने के लिए धन्यवाद अपना आशीर्वचन ऐसे ही बनाए रखें... मैंने गौर करा आप जो कह रहे हैं वो बिलकुल सत्य है .... मे कोशिश करूंगा... धन्यवाद ... सादर 

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 21, 2013 at 8:09pm

आ0 अरुण शर्मा जी आपका धन्यवाद ... मे आगे कोशिश करूंगा की आपको मेरी टूटी फूटी रचना पसंद आए .... बहुत बहुत आभार ... 

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 21, 2013 at 8:07pm

आ0 रमेश जी .... कम से कम मैं तो बहुत सीखता हूँ आप सभी की बातों को अवश्य ध्यान मे रखता हूँ... क्यूंकी लिखना मुझे अच्छा लगता है मगर कैसे लिखूँ ये नहीं जानता  क्या विधा हो ये नहीं जानता .... जैसा भी लिखता हूँ बस लिख देता हूँ.... आप सभी की बातों और सीख को ध्यान मे रखते  हुये  अगर कुछ लिख पाउ तो आप सभी का आशीर्वाद ही होगा... 

आपको बहुत बहुत धन्यवाद ... 

Comment by Amod Kumar Srivastava on November 21, 2013 at 8:02pm

आ0 अन्नपूर्णा जी, आ0 शिजू जी, आ0 जितेंद्र जी, आ0 विजय जी आप सभी का बहुत बहुत आभार उत्साह बढ़ाने के लिए... 

Comment by रमेश कुमार चौहान on November 21, 2013 at 7:55pm

आदरणीय इस प्रस्तुति के लिये बधाई । इस मंच के सम्मानीय गुरूजनो के सुझाव के अनुरूप अनवरत प्रयास हमे करते रहना चाहिये ।

Comment by विजय मिश्र on November 21, 2013 at 6:23pm
बहुत जागृत रचना ,बधाई अमोदजी
Comment by अरुन 'अनन्त' on November 21, 2013 at 11:47am

आदरणीय प्रयास अच्छा है मेरे मन का पाठक संतुष्ट नहीं हो सका

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 21, 2013 at 9:54am

गरीबी में जीवन की वास्तविकता को स्पष्ट करती हुयी रचना पर बधाई स्वीकारें आदरणीय आमोद जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 20, 2013 at 8:55pm

भूख दुख  दर्द और गरीबी का अच्छा चित्रण है  i आमोद जी थोडा लय  बेहतर होती तो मजा आ जाता i

फिर भी आपकी कोशिश अच्छी है  i हमें आपसे और अच्छे की उम्मीद है  i आप कर सकते है i

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