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ग़ज़ल - मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है

1 2 2 2      1 2 2 2       1 2 2 2

मेरे किरदार पे वो शक जताता है

बिना ही बात वो तेवर दिखाता है

 

नहीं जो जानता रिश्तों के मतलब भी

मुझे वो प्यार की पट्टी पढ़ाता है

 

बता तो दूँ उसे औकात उसकी पर

मेरा ये दिल उसे अपना बताता है

 

*निवाले फेंककर दो वक़्त के मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है  

 

मुझे वो मारता है हर घड़ी हर पल

मगर तफ़तीश में जिंदा बताता है

*सशोधित

संजू शाब्दिता मौलिक व अप्रकाशित

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Comment

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Comment by ram shiromani pathak on December 9, 2013 at 9:20am

आदरणीया संजू जी,खूबसूरत गज़ल क्या कहने बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by sanju shabdita on December 9, 2013 at 9:10am

आदरणीय बागी जी आपका बहुत-बहुत शुक्रिया


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on December 8, 2013 at 10:20pm

यथा सशोधित

Comment by sanju shabdita on December 8, 2013 at 8:31pm

आदरणीय एडमिन जी आपसे निवेदन है कि प्रस्तुत ग़ज़ल के निम्न शेर में सुधार कर दें ,आपकी महती कृपा होगी।

निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है   

      के स्थान पर

निवाले फेंककर दो वक़्त के मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है   

Comment by sanju shabdita on December 8, 2013 at 5:00pm

आदरणीय सौरभ जी आपका मेरी ग़ज़ल पर आना हुआ मैं आभारी हूँ ,प्रस्तुत ग़ज़ल पर आपके द्वारा  सकारात्मक अनुमोदन पाकर मुझे अत्यधिक संबल मिला है,मेरा मनोबल बढ़ाने हेतु मैं आपकी हृदय -तल से आभारी हूँ,आपने मेरी रचना-धर्मिता को समझा और सराहा ,मैं अभिभूत हूँ ,आगे भी आपके महत्वपूर्ण मार्गदर्शन की अपेक्षा रहेगी ;

'"एक बात:
निवाला को लेकर आपको सुझाव भी मिल चुके हैं. आपने टिप्पणियों के उत्तर तो दिये लेकिन शेर में आवश्यक सुधार नहीं करवाया. मैं नहीं समझता कोई खासा वज़ह होगी. इस उम्दा शेर को दुरुस्त करवा लें.'"

इस सम्बन्ध में भी मुझे आपके आने का इंतज़ार था,अब सारे भ्रम दूर,सुधार अवश्य ही कर लूँगी ।

                                                         सादर आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 8, 2013 at 12:08am

संजूजी, इस दफ़े आपकी ग़ज़ल कई मायनों में एक अलग सी ग़ज़ल है. यदि आपके ये तेवर आनेवाले समय के लेखन की नुमाइश हैं तो अच्छी बात है और आप एकदम सही राह पर हैं. इस मंच के लिए भी यह एक सुखद बात होगी.

मतले से लेकर आखिरी शेर तक आपने सामाजिक विसंगतियों को व्यक्तिपरक कलेवर दे कर पेश किया है. यह लेखक के तौर पर बढ़ रहे आपके विश्वास का परिचायक है.
बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें, संजूजी.


एक बात:
निवाला को लेकर आपको सुझाव भी मिल चुके हैं. आपने टिप्पणियों के उत्तर तो दिये लेकिन शेर में आवश्यक सुधार नहीं करवाया. मैं नहीं समझता कोई खासा वज़ह होगी.

इस उम्दा शेर को दुरुस्त करवा लें.  
 

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 3, 2013 at 11:18am

निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है

 में नारी व्यथा का अच्छा प्रस्तुतीकरण किया है . सादुवाद .

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:28am

सुन्दर ग़ज़ल है

ढेरो दाद

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 2, 2013 at 4:23pm

बहुत सुन्दर लिखा है आपने आदरणीया लेकिन , निवाले पुल्लिंग होने के चलते 

निवाले फेंककर दो वक़्त की मुझ पर

मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है // इस शेर में आप देख लें---- कि निवाले फेंककर दो वक्त //के// मुझपे ॥ मेरे सम्मान की धज्जी उड़ाता है।

Comment by Nilesh Shevgaonkar on December 2, 2013 at 3:17pm

क्या बात क्या बात क्या बात .... बहुत ख़ूब ग़ज़ल ...बधाई 

कृपया ध्यान दे...

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