For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल -निलेश 'नूर'-जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है

२१२२/२१२२/२१२ 
.
जब कि हर इक फ़ैसला मंज़ूर है,
फिर भी वो कहता हमें मगरूर है.
.

दोष है फ़ितरत का, ज़ख्मों का नहीं,
ज़ख्म जो प्यारा है वो नासूर है.   
.

ख़ासियत कुछ भी नहीं उसमे, फ़क़त,
वो मेरा क़ातिल है सो मशहूर है.
.

नब्ज़ मेरी थम गयी तो क्या हुआ,
जान मुझ में आज भी भरपूर है.
.

जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,
पास है, लेकिन अभी हम दूर है.
.

बात अब उनसे मुहब्बत की न कर,
लोग समझेंगे, नशे में चूर है.
.

बर्फ़ से रिश्ते हुए इस दौर में,
दिल सुलगता सा कोई तंदूर है.    
.   

दिल से पढ़, ये आँख के बस की नहीं,
“नूर” की ये भी ग़ज़ल पुरनूर है.
...............................................
मौलिक व अप्रकाशित 
निलेश 'नूर'

Views: 1040

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 12:37pm

शुक्रिया 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 12, 2014 at 12:07pm

कमाल आदरणीय कमाल !

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 11:50am

आ.  Saurabh Pandey ..आ. Dr.Prachi Singh जी 
.
दूरियाँ बाक़ी नहीं कुछ दरमियाँ,
दिल से दिल लेकिन अभी तक दूर है. ..
.
क्या ऐसा करने से शेर का ऐब दुरुस्त होगा ..कृपया मार्गदर्शन करें. 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on July 12, 2014 at 11:45am

जी कोशिश रहेगी 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2014 at 9:16pm

आपका सादर स्वागत है, आदरणीय नीलेशजी.

मैं मराठी भाषा और हिन्दी भाषा के बीच शब्दों की अक्षरी (हिज्जे) के अन्तर को खूब समझता हूँ. महाराष्ट्र (मुम्बई) से मेरा गहरा ताल्लुक है. लेकिन हिन्दी आखिर हिन्दी है. और इसका अपना संसार और विस्तार है.
आपकी ग़ज़लों के कथ्य की ऊँचाइयों के हम सदा से मुरीद रहे हैं. आपकी उन्नत ग़ज़लों का इन्तज़ार है.
सादर

Comment by Nilesh Shevgaonkar on May 28, 2014 at 12:08pm

@Dr.Prachi Singh जी & Saurabh Pandey सर ..
मराठी भाषी होने के चलते हैं और है में अक्सर उलझ जाता हूँ ...
आपके मार्गदर्शन में ये कमीं भी दूर होगी ...
आपके मार्गदर्शन और सभी साथियों की हौसला अफज़ाई का शुक्रिया 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 27, 2013 at 11:30am

आ० निलेश जी 

बहुत शानदार ग़ज़ल हुई है..हर शेर दिल से लिखा गया है..बहुत सुन्दर 

जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,
पास है, लेकिन अभी हम दूर है.............. इस शेर में कुछ ऐब है शायद शुतुर्गुर्बा ..

............................पास है, लेकिन वो हमसे दूर है...... अब, है को (हैं ) करने से बचा जा सकता है

हर शेर पर सादर बधाई स्वीकारे. 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 11:34pm

आदरणीय नूर साहब, रिवायती तौर पर उसी उदारता से कहूँ तो एक-एक शेर सवा लाख का !
हर शेर पर दिल से ढेरों दाद हैं. .. सिवा निम्नलिखित शेर के जिसमें रदीफ़ गच्चा खा गया है.  है की जगह वास्तविक रूप से हैं अपरिहार्य है -
जिस्म है बाक़ी हमारे दरमियाँ,
पास है, लेकिन अभी हम दूर है... .. रदीफ़ के है को हैं करें और इस ग़ज़ल से इस शेर को अलग कर दें. या रदीफ़ को ठीक करने की क़वायद करें.
सादर बधाइयाँ

Comment by coontee mukerji on December 24, 2013 at 10:53pm

क्या बात है...

Comment by vijay nikore on December 24, 2013 at 6:34pm

//बर्फ़ से रिश्ते हुए इस दौर में,
दिल सुलगता सा कोई तंदूर है.  //

खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई।

 

 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर नज़र ए करम का देखिये आदरणीय तीसरे शे'र में सुधार…"
4 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय भंडारी जी बहुत बहुत शुक्रिया ग़ज़ल पर ज़र्रा नवाज़ी का सादर"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"  आदरणीय सुशील सरनाजी, कई तरह के भावों को शाब्दिक करती हुई दोहावली प्रस्तुत हुई…"
7 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . . .

कुंडलिया. . .चमकी चाँदी  केश  में, कहे उमर  का खेल ।स्याह केश  लौटें  नहीं, खूब   लगाओ  तेल ।खूब …See More
8 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय निलेश सर ग़ज़ल पर इस्लाह करने के लिए सहृदय धन्यवाद और बेहतर हो गये अशआर…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"धन्यवाद आ. आज़ी तमाम भाई "
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आ. आज़ी भाई मतले के सानी को लयभंग नहीं कहूँगा लेकिन थोडा अटकाव है . चार पहर कट जाएँ अगर जो…"
9 hours ago
Aazi Tamaam commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"बेहद ख़ूबसुरत ग़ज़ल हुई है आदरणीय निलेश सर मतला बेहद पसंद आया बधाई स्वीकारें"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आ. आज़ी तमाम भाई,अच्छी ग़ज़ल हुई है .. कुछ शेर और बेहतर हो सकते हैं.जैसे  इल्म का अब हाल ये है…"
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आ. सुरेन्द्र भाई अच्छी ग़ज़ल हुई है बोझ भारी में वाक्य रचना बेढ़ब है ..ऐसे प्रयोग से…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेंदर भाई , अच्छी ग़ज़ल हुई है , हार्दिक बधाई आपको , गुनी जन की बातों का ख्याल कीजियेगा "
10 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service