For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल - हमें ही वोट दो कहकर वो पास आने लगे - इमरान

जो पाँच साल दहाड़े थे गिड़गिड़ाने लगे,
हमें ही वोट दो कहकर करीब आने लगे।

तुम्हारी ज़ात के नेता हैं हम तुम्हारे हैं,
ग़रीबों को ये बताकर गले लगाने लगे।

तुम्हारा हाल बदल देंगे एक मौका दो,
गली गली उसी ढपली को फिर बजाने लगे।

जो भीड़ आई है रैली में, है किराये की,
वो जिसके ज़ोर पे क़द को बड़ा दिखाने लगे।

बहा के ख़ून के दरिया सभी सियासतदां,
हर एक ख़ून के क़तरे से फ़ैज़ उठाने लगे।

ये देस लूट रहे हैं हमारे नेता जी,
जिसे आज़ाद कराने में थे ज़माने लगे।

हमारा मुल्क अभी भी जहाँ से बेहतर है,
जो लूट की है सियासत अगर ठिकाने लगे।


"मौलिक एवं अप्रकाशित"

Views: 755

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by इमरान खान on April 3, 2014 at 2:14pm
जनाब वीनस साहब हौसला अफज़ाई का शुक्रिया।

मैंने ख़ामोश वगैरा को 121 पर बँधे देखे हैं उसी तर्ज़ पर आज़ादी को भी बाँधा है।

'अभी' के साथ 'भी' का इस्तेमाल आम बोलचाल और समाचार पत्र पत्रिकाओं में तो होता ही है, हिंदी काव्य में भी किये जाने के उदाहरण हैं। यहाँ भी भर्ती का है मुझे अंदाज़ा भी नहीं था।

दोनों प्रयोग अगर ग़लत हैं तो बताइयेगा मैं सुधार कर लूँगा।

सादर
Comment by इमरान खान on April 3, 2014 at 1:45pm
मोहतरमा प्राची साहिबा आगे से हर गज़ल की बह्र भी साझा करने का वादा करता हूँ, शुक्रिया आपका।
Comment by इमरान खान on April 3, 2014 at 1:43pm
सराहना के लिए धन्यवाद सौरभ भाई, सटीक टिप्पणियाँ ही तो रचनाओं के गहने होती हैं :-)

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on March 26, 2014 at 7:24pm

बात तो सही है आपकी. बढिया ग़ज़ल हुई है. लेकिन इस ग़ज़ल पर कुछ सटीक टिप्पणियाँ भी आयी हैं. .. :-)))

शुभ-शुभ


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on March 24, 2014 at 11:16am
ग़ज़ल के साथ बह्र भी अवश्य ही सांझा किया करें आ० इमरान खान जी नहीं तो कभी कभी बहर जान पाना मुझे सुडोकु हल करने जैसा लगने लगता है :))

सियासती रंगों को सशक्तता से प्रस्तुत किया है, सभी अशआर पसंद आये..

हार्दिक बधाई
Comment by वीनस केसरी on March 24, 2014 at 1:44am

अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई जी बधाई स्वीकारें

आजाद को १२१ मात्रा में बाँधना कितना उचित है ?
अभी भी ,,,, में भी भर्ती का दिखता है

Comment by इमरान खान on March 18, 2014 at 12:45am

तहे दिल से आपका शुक्रिया राजेश कुमारी साहिबा ग़ज़ल को पसंद फरमाने के लिए.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on March 14, 2014 at 8:28pm

बहुत बढ़िया जबरदस्त कटाक्ष किया है ग़ज़ल में इमरान भाई जी ,बहुत खूब तहे दिल से दाद कबूलें. 

Comment by इमरान खान on March 13, 2014 at 10:43pm

जनाब जीतेन्द्र गीत साहब पुरखुलूस शुक्रिया.

Comment by इमरान खान on March 13, 2014 at 10:30pm

जनाब भाई शिज्जू शकूर साहब आपको ग़ज़ल पसंद आई, तहे दिल से शुक्रिया.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service