सुधिजनो !
दिनांक 16 मार्च 2014 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 36 जोकि होली विशेषांक था, समुचित सफलता के साथ सम्पन्न हुआ. ओबीओ के आयोजनों की अघोषित परम्परा के अनुसार सम्पन्न हुए आयोजनों की समस्त स्वीकार्य प्रविष्टियों का संकलन प्रस्तुत होता है. किन्तु, इस बार कुछ बातें जोकि सक्रिय सदस्यों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन अधिक, कोई रपटनुमा चर्चा कहीं पीछे है.
होली का प्रादुर्भाव न केवल ऋतुजन्य संक्रमण का द्योतक है बल्कि प्रकृति के समस्त जीवों के लिए शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक परिवर्तन का मुखर प्रतीक है. ऐसी वातावरणीय-अवस्था प्रकृति के सबसे संवेदनशील प्राणि मनुष्य, जोकि सामाजिकतः समस्त पहलुओं के सापेक्ष जीता है, के लिए अत्यंत प्रभावी हुआ करती है. यह समझ में आनेवाली बात भी है. सभी जन मानों वर्जनाहीनता को सापेक्ष जीते हुए अनुमन्य उच्छृंखलता को सचेत हो कर अनुशासित ढंग से बरतते हैं ! सद्यः समाप्त छंदोत्सव इस मानवीय-व्यवहार का सुन्दर उदाहरण साबित हुआ.
किसी मंच के ऐसे आयोजनों से यदि आत्मीय सदस्यों का भावनात्मक रूप से जुड़ाव बन जाये तो आश्चर्य नहीं है. ई-पत्रिका ओबीओ के प्रधान सम्पादक आदरणीय श्री योगराज प्रभाकरजी का मंच के आयोजनों से हुआ व्यक्तिगत जुड़ाव इसी रूप में देखा जाना चाहिए. आप शारीरिक और मानसिक ही नहीं, भावनात्मक रूप से भी पिछले साल यानि 2013 में जिस विकट अवस्था से गुजर रहे थे, वह सोचकर ही रीढ़ सिहर उठती है. सारे कुछ को एक शब्द में समेटा जाय तो वह अकल्पनीय था. एवं, इसकी बार-बार चर्चा उत्साहजनक परिणाम का कारण तो कत्तई नहीं हो सकती. परमपिता परमेश्वर के महती आशीष और अपनी व्यक्तिगत जीवनीशक्ति की सान्द्रता के कारण आप न केवल स्वस्थ हुए, बल्कि पिछले वर्ष की सारी कसर निकालते हुए जिस तरीके से आपने अपनी भागीदारी दर्ज़ की वह हमसभी के लिए निर्मल आनन्द का कारण बन गयी.
फिर तो, सद्यः सम्पन्न हुए आयोजन में प्रस्तुतियों पर प्रस्तुतियों और प्रतिक्रियाओं पर प्रतिक्रियाओं का जो आनन्ददायक दौर चला कि दो-दिवसीय आयोजन की समस्त टिप्पणियों की कुल संख्या एक हजार के पार हो गयी. टिप्पणियाँ भी छंद में ! यह सारा कुछ किसी अंतर्जालीय मंच के लिए रिकॉर्ड हो सकता है.
इस बार के छंदोत्सव में छंद के तौर पर सार छंद के विशिष्ट प्रारूप छन्न पकैया तथा कह-मुकरी को लिया गया था. अपनी सहजता और अपने अंतर्निहित लालित्य के कारण ये दोनों छंद सभी प्रतिभागियों के लिए उत्प्रेरक साबित हुए. होली त्यौहार की सनातन विशेषता मस्ती, उल्लास, उच्छृंखलता और पारम्परिक वर्जनाहीनता को स्वयं में समेटे यह आयोजन मंच के अभीतक के इतिहास में एक स्तम्भ की तरह अपना स्थान बना गया.
इस बार सभी रचनाओं को समेट कर प्रस्तुत करने का अर्थ होगा उस अलमस्त वातावरण से उन पाठकों को महरूम करना जो उस जीवंत वातावरण को कतिपय कारणों से जी नहीं पाये. अतः, इस बार न रचनाओं का संकलन, न विधाजन्य कोई बाध्यता या सलाह ! यानि, जो है जैसा है की तर्ज़ पर उस माहौल को जब चाहिए सभी जीयें और उसका बार-बार आनन्द लें.
http://www.openbooksonline.com/group/pop/forum/topics/cskt36?groupU...
चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के अगले अंक तक के लिए शुभ विदा.
सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव
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आदरणीय सौरभ जी आपका अभिप्राय समझ गयी थी , आपके फैसले का स्वागत है , मन में जो ख्याल था उसे व्यक्त किया। पर उस आयोजन का आनंद २ बार ले चुके है।
आपकी बात से सहमत हूँ रचनाये असंख्य है समेटना नामुमकिन है पर कहते है न लालच बुरी बला ………। :) पुराने सभी आयोजन जिसमे शामिल नहीं हो सकी थी , तो सभी की रचनाये पढ़ना शुरू है , सबको एक साथ पढ़ना बहुत सुखद प्रतीत हो रहा है। ....... सभी रचनाकारो को पुनः बधाई।
सादर
आदरणीया शशिजी, आपको मैं पुनः धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ.
आदरणीया, रुटीनी आयोजनों और विशेषांक आयोजनों में यही तो अंतर होता है. .. :-))))
इसके बावज़ूद पिछले विशेषांकों के संकलन आये हैं. किन्तु, इस बार हुए छंदोत्सव आयोजन को पन्ने दर पन्ने देख जाइये, वाकई प्रतीत होगा कि संकलन के क्रम में अगला कितना किंकर्तव्यविमूढ़ हो सकता है. और संकलन का कार्य यदि कहीं हो भी गया तो उस माहौल को कैसे पुनर्प्रस्तुत कर पायेगा जो रचनाओं और प्रतिक्रियाओं के समानान्तर आग्रही हो गया था ! उसे कैसे विस्मृत कर सकते हैं हम ?
सादर
आदरणीय सौरभ सर कुछ निजी व्यस्तता के कारण मैं आयोजन में थोड़ी देर से सम्मिलित हुआ । इस बार रंग कुछ ऐसा जमा कि मैं अपने आप को रोक नहीं सका और काम समय पर न करने के लिये अपने बॉस की डाँट भी सुननी पड़ी कोई बात नही ये आयोजन इतना खास था कि ऐसी कई डाँटें मंज़ूर है। सही मायनों में ये इतना यादगार बन गया कि हर होली में ये याद आयेगा। कम्प्यूटर के सामने बैठ कर हँसते देख थोड़ी देर के लिये मेरी पौनांगिनी अर्थात मेरी धर्मपत्नि कुछ देर के लिये परेशान हो गई थी कि इन्हें क्या हो गया।वाकई में ये छंदोत्सव अनुपम था।
भाई शिज्जूजी,
आपने जिस आत्मीय अंदाज़ में अपनी बातें .. ना ना व्यक्तिगत बातें.. साझा की हैं वह उक्त आयोजन के प्रति बन गयी आपकी प्रगाढ़ संलग्नता का परिचायक है. मैं आपकी इस पवित्र और उदार अभिव्यक्ति के प्रति सम्मान व्यक्त करता हूँ.
बॉस की डाँट का ज़िक्र भला कोई योंही नहीं करता और उसके बावज़ूद आयोजन में मस्त रहना ! वाकई गुदगुदी हो रही है मुझे. :-))
यही अनवरत बचपना उत्फुल्ल जीवन का पर्याय है. इसी दर्शन का होली जैसे त्यौहार उद्घोषणा करते हैं.
भाईजी, ’पौनांगिनी’ शब्द मेरे मन में बस गया है ! हा हा हा... . इसे मैं बड़े दुलार से ले रहा हूँ. सही कहूँ तो यह शब्द ही आपके रुमानी हृदय का आईना है. तो, दूसरी तरफ़ ये शब्द यह भी बताता है कि आप इस बार के होली-आयोजन की मस्ती में कितने गहरे डूब गये थे.
आप जैसे पाठकों और रचनाकारों के कारण ही शब्दों की दुनिया चलायमान रहती है, शिज्जू भाईजी. और आप जैसों के कारण ही इस दुनिया में जीनेवाले अन्य पाठक और रचनाकार ऊर्जस्वी बने रहते हैं.
पुनः आपको धन्यवाद तथा चैत्र मास से प्रारम्भ हुए नये साल की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएँ.
शुभ-शुभ
परम आदरणीय सौरभ जी, होली विशेषांक आधारित चित्र से काव्य तक’ छंदोत्सव अंक- 36 के सफल आयोजन हेतु, आपको, आ. योगराज जी के साथ साथ आदरणीया डॉ. प्राची जी को एवँ समस्त प्रतिभागियों को बहुत बहुत बधाइयाँ ॥ माइल्ड हार्ट अटैक के कारण दिनांक ११ से २३ मार्च तक अस्पताल में भर्ती था. अतएव इस आयोजन का आनंद उठाने से वंचित रहा जिसका मुझे खेद है. आप एवं मंच परिवार के शुभ चिंतको के सदिच्छाओं की वजह से आज मैं घर में स्वास्थ्य लाभ ले रहा हूँ एवं आप से संवाद स्थापित कर पा रहा हूँ. आयोजन में सम्मिलित हर रचना का एवं रचना पर प्राप्त प्रतिक्रियाओं का यथावकाश आनंद उठाने का पूरा प्रयास करूंगा. शेष कुशल
सादर धन्यवाद.
आदरणीय सत्यनारायणभाईजी, आपकी स्वास्थ्य सम्बन्धी इस सूचना से ओबीओ-परिवार के सभी सदस्य दुखी हैं और आपके लिए सदा मंगलकामना करते हैं. आदरणीय, आपकी गरिमामय उपस्थिति और काव्य-संलग्नता से इस मंच का हर सदस्य अभिभूत है.
आदरणीय, जबभी मौका मिले, आप होली के अवसर पर आयोजित चित्र से काव्य तक छंदोत्सव के पृष्ठ-दर-पृष्ठ उलटियेगा. हल्के-फुल्के माहौल में निर्मल आनन्द का निश्छल एकसार प्रवाह वस्तुतः सुखकर लगेगा. इस प्रवाह के संग बहने में आपको वाकई बहुत आनन्द आयेगा ! मुम्बई के एस्सेल-वर्ल्ड के वाटर पार्क में मंथर-मंथर बहती ’नदी’ में पड़े-पड़े अनायास बहने का आनन्द ! हँसी कर रहा हूँ, आदरणीय ! आप वर्तमान में अपने शरीर को आप भरपूर आराम दें.
ईश्वर करे, आप दिन दूना स्वास्थ्य लाभ करें.
शुभ-शुभ
आदरणीय सौरभ भाई जी
इस आयोजन का शुमार उन ख़ास लम्हों में होता है जिन्हे मैंने दिल से जिया है. मैं जिस तरह मुग़ल-ए-आज़म, तीसरी कसम या पाकीज़ा आदि फ़िल्में हर रोज़ देख सकता हूँ वैसे ही इस आयोजन को भी हर रोज़ पढ़ सकता हूँ, और कई दर्जन दफा पढ़ भी चुका हूँ. यह आयोजन कई मायनो में विलक्षण रहा ; एक तो इसमें जिन दो छंदों को लिया गया वे दोनों मेरे दिल के बेहद क़रीब थे ; दूसरे (सोने पर सुहागा) माहौल होली का था. एक तो छंद चुलबुले ऊपर से माहौल हुड़दंगी, तो परमान्द अपने चरम पर रहा. ऐसा नहीं कि उस दौरान सिर्फ मस्ती का ही आलम रहा, सच तो यह है कि इन दोनों छंदों पर अप्रत्याशित रूप में ऐसी रचनाएं भी देखने को मिलीं जिन्होंने इस आयोजन को नई ऊंचाई प्रदान की. उदहारण बहुत हैं, लेकिन मैं यहाँ केवल दो रचनायों की ही बात करना चाहूँगा । पहली रचना आ० अरुण निगम जी की है, रचना की परिष्कृत भाषा, अनुपम शैली और उच्चस्तरीय भावसम्प्रेषण का अवलोकन करें:
छन्न पकैया छन्न पकैया, शब्द पाँखुरी कोमल
ऐसा लागे चुन-चुन लाये, नर्म नर्म-सी कोंपल
छन्न पकैया छन्न पकैया,वाह प्रकृति का चित्रण
मोर कोकिला भ्रमर वृंद का, मनुहारी आमंत्रण
छन्न पकैया छन्न पकैया, दूर्बादल जल कणिका
प्रात फाल्गुनी दिखती मानों , वैशाली की गणिका
दूसरी रचना आ० मनोज कुमार सिंह "मयंक" जी की है, कवि की काव्य प्रतिभा और लालित्यपूर्ण अभिव्यक्ति देख कौन झूम न उठेगा?
छन्न पकैया, छन्न पकैया, शाश्वत सत्य सनातन |
मात्राच्युत लवलेश नहीं है, बिम्ब दिखे अधुनातन ||
छन्न पकैया, छन्न पकैया, द्रव्य गिने जनु वणिका |
गुंठित है मधुमय भावों से, छन्नमालिका मणिका ||
छन्न पकैया, छन्न पकैया, मृदुल सुकोमल कविता|
अहोभाग्य इस मंच खिला है, सुमन सरिस नव सविता |
मज़े की बात यह है कि यह दोनों छंद प्रतिक्रिया-सवरूप कहे गए हैं. आ० चौथमल जैन जी की कह-मुकरी विधा पर पहली कोशिश देखकर आनंद आ जाता है:
मन का मधुर ऐसा है बंधन ,
प्यार का ज्यों मादक चुम्बन ,
महका जीवन , रे सखी मोरी ,
ए सखी साजन ? ना सखी होरी !
पावन प्रकृति का ये पूजन ,
बैर घृणा का हुआ संकुचन ,
ख़ुशी हुई यों ,रे सखी मोरी ,
ए सखी साजन ? ना सखी होरी !
हम सब मुसलसल के बारे में तो भली-भांति परिचित हैं, लेकिन क्या कभी मुसलसल कह-मुकरी के बारे में भी सुना है ? धन्य हे ओबीओ !! मेरे अजीज़ इमरान खान की मुसलसल कह-मुकरी देखें:
सारे घर को सर पै धर लैं,
घर वालों की रोज़ ख़बर लैं,
बदले से है उनके सुर जी,
ऐ सखि साजन? नहीं ससुर जी।
डर तो लागा रुकी न पाई,
रंग लगा कर उनको आई।
कहा मुझे तू भाग यहाँ सू,
ऐ सखि साजन? न सखि सासू।
कोई उन पर रंग न डाले,
बिल्कुल उनसे ना पंगा ले।
होली में भी स्वच्छ सेठ जी,
ऐ सखि साजन? नहीं जेठ जी।
उनकी आदत मुझको प्यारी,
मैं भी उनकी बड़ी दुलारी।
दोनों को हैं रंग पसंद जी,
ऐ सखि साजन? नहीं ननंद जी।
सारी मायूसी टरका दें,
जब वो आवें खुशी लुटा दें,
रंग चढ़ा तो ढीले तेवर,
ऐ सखि साजन? नहीं रे देवर।
भाई इमरान खान जी और आ० मनोज कुमार सिंह मयंक जी को पूरे आयोजन के दौरान बड़ी तन्मयता से सक्रिय देखना बेहद सुखकर रहा. ९० प्रतिशत से ज़यादा प्रतिक्रियायों का छंद में आना सचमुच एक गर्व का विषय है जोकि ओबीओ की भारतीय सनातनी छंदों के प्रति श्रध्दा और प्रतिबद्धता को दर्शाता है. इस सफल आयोजन के लिए सभी प्रतिभागियों को हार्दिक साधुवाद, तथा कुशल मंचन के लिए आ० सौरभ पाण्डेय जी को हार्दिक बधाई।
सादर
योगराज प्रभाकर
आदरणीय योगराजभाईजी, जिस तन्मयता और उत्तरदायित्व की भावना के साथ आपने अपनी बातें रखी हैं वे मात्र एक प्रधान सम्पादक की टिप्पणी नहीं है. बल्कि, उक्त आयोजन के माहौल को जीने वाला हर सदस्य उस उत्साह को समझ सकता है.
यह अवश्य है कि स्वच्छंदता के माहौल में ही अनुशासन की व्यापकता और गहराई का पता चलता है. इस बार का आयोजन इसी तथ्य की ताकीद करता हुआ लगा. जिस उत्साह से सदस्यों की आयोजन में भागीदारी हुई, वह तो अभिभूत तो करती ही है. प्रस्तुत हुई रचनाओं और, सर्वोपरि, प्रतिक्रियाओं की ऊँचाई ने हर जागरुक और सचेत काव्यप्रेमी को चकित किया. उसकी बानग़ी आपने प्रस्तुत की ही है.
मैं तो कहूँगा कि प्रस्तुतियों पर आपकी प्रतिक्रियाओं ने माहौल को समरस बनाये रखा. आपके मुखर अनुमोदन और आपकी शुभकामनाओं के लिए जहाँ मैं आयोजन का संचालक होने के कारण आभारी हूँ, एक सदस्य के तौर पर सभी सदस्यों की तरह मैं हर्षातिरेक में हूँ, मुग्ध हूँ. इस सफल आयोन के लिए आपका आभार.
सादर
इस बार का ओबीओ छान्दोत्सव का आनंद मैंने ही नहीं बल्कि सपरिवार सभी ने उठाया |छन्न पकैया पर जो सचित्र व्यंगात्मक
प्रतिक्रियाएं आ रही थी, उसको बार पढ़कर सभी सदस्यलुफ्त उठा रहे थे | मेरे चित्र को और प्रतिक्रियाओं पर तो सदस्यों की हंसी
और व्यंग चलते ही रहे | मैंने मेरे ससुराल पक्ष परिवार तक को मेरे यहाँ ही आमंत्रित कर यह निशुल्क आयोजन किया और खुश-
-नुमा माहौल बनाया | इसके लिए आदरणीय योगराज भाई जी का उल्लेखनीय योगदान, श्री सौरभ जी, डॉ प्राची जी के साथ ही
सभी रचनाकारों और प्रतिक्रियात्मक टिपण्णी करने वाले रसिक पाठकों द्वारा स्मरणीय और एतिहासिक उपलब्धि के लिए बहुत
बहुत बधाई के पात्र है | सभी की जय हो
आदरणीय सौरभ जी, यह लेख मैं आज ही देख पाई हूँ। इत्तफाक से अचानक ही नोटिफिकेशन पर नज़र पड़ गई। इस बार होली पर छंदोत्सव का आयोजन सचमुच इतना मन भावन रहा कि शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता। शारीरिक समस्याओं के कारण अधिक समय वेब पर नहीं रह पाती हूँ, एक घंटे में ही थकावट होने लगती है, इसलिए आयोजनों में दूसरे दिन अपनी ही रचना पर हुई टिप्पणियों पर धन्यवाद प्रेषित नहीं कर पाती,फिर भी बार बार आकर आनंद लेती रहती हूँ। इस दुनिया का यह अनुभव एक स्वप्न जैसा ही है जिसके सम्मोहन से कोई बाहर जा ही नहीं सकता। आपका निर्णय बिलकुल उचित है। मेरी तो आदत ही है सभी आयोजनों की रचनाएँ फिर फिर आकर पढ़ते रहने की, तो इसका भी आनंद हमेशा कायम रहेगा। इतना उत्साह, उमंग, मंच पर लगातार सदस्यों का बने रहना बहुत ही सुखदाई और रोमांचकारी अनुभव है, यह मंच परस्पर प्रेम, जुड़ाव और सद्भावना का विपुल स्रोत है। चित्रों के माध्यम से यह आयोजन मन पर जो छाप छोड़ गया वो अविस्मरणीय है। इसके लिए आदरणीय योगराज जी का हार्दिक आभार।
मैं एक मंत्रमुग्ध मूक दर्शक की भाँति आयोजन का आनंद लेती रही। इतनी ऊर्जा बनी रहे वही बहुत है। इस परिवार के सभी सदस्यों को बार बार बधाई और अनंत शुभकामनाएँ।
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