परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 49 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हिन्दुस्तान के मशहूर शायर जनाब इब्राहिम 'अश्क' साहब की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा-ए-तरह
"ख़ामोश रहेंगे और तुम्हें हम अपनी कहानी कह देंगे"
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फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन फेलुन
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(बह्रे मुतदारिक की मुजाहिफ सूरत)
मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 25 जुलाई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 26 जुलाई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.
नियम एवं शर्तें:-
विशेष अनुरोध:-
सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन से पूर्व किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | ग़ज़लों में संशोधन संकलन आने के बाद भी संभव है | सदस्य गण ध्यान रखें कि संशोधन एक सुविधा की तरह है न कि उनका अधिकार ।
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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मिल जाए अगर वो राहों में, हो गहरा प्रेम निगाहों में,
इस बार हमें प्रिय दे जाओ, कुछ नेह-निशानी, कह देंगे। वाह !!!अच्छी कल्पना !!
बहुत धन्यवाद आदरणीय अविनाश जी
बहुत खूब, बढ़िया ग़ज़ल हुई हैं. हार्दिक बधाई स्वीकारें.
आपको गज़ल पसंद आई, कुछ संतोष हुआ। हार्दिक धन्यवाद आदरणीय योगराज जी
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अमित जी
बड़ी सुंदर ग़ज़ल है बहुत बहुत बधाई आपको
हार्दिक धन्यवाद आपका अदरणीय शिज्जु जी
मिल जाए अगर वो राहों में, हो गहरा प्रेम निगाहों में,
इस बार हमें प्रिय दे जाओ, कुछ नेह-निशानी, कह देंगे। ------ आदरणीय कल्पना जी , सुन्दर गज़ल के इस सुन्दर शे र के लिये आपको बधाई ॥
गज़ल की सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद अदरणीय गिरिराज जी
दिखते हैं ऐसे लोग बहुत, अपना मतलब पड़ जाने पर,
जो अनदेखी सूरत को भी, जानी पहचानी कह देंगे।
क्या बात है-क्या बात है।
खूबसूरत ग़ज़ल
प्रोत्साहित करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तिलकराज जी
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1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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