For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दोहा // प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा //

बीच बाजारे हम खड़े , पाप पुण्य ले साथ
पुण्य डगर मैं बढ़ चलूँ , छोड़यो न प्रभु हाथ


पांडव बलहीन सदा, साथ न हो जब भीम
घर सूना कन्या बिना, अंगना बिना नीम


अंगना में लगाइये, तुलसी पौधा नीम
रोग रहित जीवन सदा, राखत दूर हकीम

व्यसन बुरे सब होत हैं, जानत हैं सब कोय
दूर रहें इनसे सदा , जीवन मंगल होय

दुर्दिन कछु दिन ही भले , मिलता जीवन ज्ञान
मित्र शत्रु और नारी की, हो जाती पहचान


बंधन ऐसा हो प्रभू , टूटे न कभी डोर
माला निशदिन मै जपूँ , छूटे न कभी छोर


भले भलाई करन लगे , पकड़ प्रीत की डोर
राम राज अब आ गया, जगह जगह है शोर

मानव तू ग्यानी बड़ा , भूला शिष्टाचार
व्यभिचार में लिप्त हुआ , क्यों ऐसा व्यवहार

.

मौलिक/ अप्रकाशित
प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा
३-८-२०१४

Views: 525

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 5, 2014 at 11:17am

आदरणीय प्रदीप कुशवहा भाई , सुन्दर संदेश देते दोहों के लिये आपको बधाइयाँ ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on August 5, 2014 at 11:06am

आ० भाई प्रदीप जी इन शिक्षाप्रद दोहों के लिए हार्दिक बधाई .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:17pm

आदरणीय डा. विजय शंकर जी 

सादर 

स्नेह बनाये रखिये 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:16pm

स्नेही श्री राम शिरोमणि पाठक जी 

स्नेह हेतु आभार. प्रयास करूँगा. 

सादर 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:15pm

सादर आभार 

आदरणीय  श्री सिंह साहब जी 

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on August 4, 2014 at 2:14pm

आदरणीय अनुज श्री , सादर सस्नेह 

आप को विष्णु भगवान की तरह आना पड़ा . पर मैं ताकता आपकी ही ओर रहता हूँ नीचे  दलदल में भी जकडा हूँ. चालीस साल सत्रह दिन जिस वातावरण में रहा हूँ वहीं की भाषा का विशेषग्य रहा. साहित्य से कोसो दूर. जो कुछ भी लिख रहा हूँ आप सबके स्नेह के कारण . मैं तों छाया ग्रह हूँ आपके तेज से ही रोशन होता रहा हूँ, आप जानते ही हैं. अभी गलियों में खेल रहा हूँ, इस्टेडियम में कब खेल पाता हूँ. पता नही. अपना स्नेह जरुर देते रहिएगा उसी से भव सागर पार कर लूँगा. जय हो मंगलमय हो .

प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा 

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 3, 2014 at 8:20pm
सुविचार , अच्छी नसीहतें , बधाई .
Comment by ram shiromani pathak on August 3, 2014 at 8:06pm

(आदरणीय योगराज जी से सहमत हूँ )
सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय। । हार्दिक बधाई आपको। । सादर

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 3, 2014 at 8:01pm

शिक्षाप्रद दोहे!


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on August 3, 2014 at 6:59pm

हे कविश्रेष्ठ, क्या आपको नहीं लगता कि अब दोहे के विषयों एवं भाषा में आधुनिकता लाने का समय आ चुका है ?
आखिर कब तक हम गुज़री सदियों की भाषा और विषयों को ढोते रहेंगे ? किसका होने वाला है इस से ?
क्या भाषा और विषय की नवीनता से इस छंद की सुंदरता और नहीं बढ़ेगी ?

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"प्रस्तुति को आपने अनुमोदित किया, आपका हार्दिक आभार, आदरणीय रवि…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिंद रायपुरी जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें। सादर"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय, मैं भी पारिवारिक आयोजनों के सिलसिले में प्रवास पर हूँ. और, लगातार एक स्थान से दूसरे स्थान…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय जयहिन्द रायपुरी जी, सरसी छंदा में आपकी प्रस्तुति की अंतर्धारा तार्किक है और समाज के उस तबके…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाईजी, आपकी प्रस्तुत रचना का बहाव प्रभावी है. फिर भी, पड़े गर्मी या फटे बादल,…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, आपकी रचना से आयोजन आरम्भ हुआ है. इसकी पहली बधाई बनती…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय / आदरणीया , सपरिवार प्रातः आठ बजे भांजे के ब्याह में राजनांदगांंव प्रस्थान करना है। रात्रि…"
Sunday
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छन्द ठिठुरे बचपन की मजबूरी, किसी तरह की आग बाहर लपटें जहरीली सी, भीतर भूखा नाग फिर भी नहीं…"
Saturday
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

चित्र से काव्य तक

"ओ बी ओ चित्र से काव्य तक छंदोंत्सव" में भाग लेने हेतु सदस्य इस समूह को ज्वाइन कर ले |See More
Saturday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173 in the group चित्र से काव्य तक
"सरसी छंद +++++++++ पड़े गर्मी या फटे बादल, मानव है असहाय। ठंड बेरहम की रातों में, निर्धन हैं…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service