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क्या ये हमारी संस्कृति के अंग नहीं ?....

क्या आपको याद है ... आपने आखरी बार कब डुगडुगी की आवाज सुनी थी ?कब अपनी गली या घर के रास्ते में  एक छोटी सी सांवली  लड़की को दो मामूली से बांस के फट्टियों के बीच एक पतली सी रस्सी पर चलते देखा और फिर  हैरतअंगेज गुलाटी मारते, बिना किसी सुरक्षा इन्तमाजात के | सोचिये , दिमाग पर जोर डालिए !!!

       चलिए आज मैं याद दिलाती हूँ | याद है बचपन में जब स्कुल से आकर आप अपना बस्ता फेंक ,माँ के हिदायत पर हाथ मुँह धोकर ,कपडें बदल कर  अपने दोस्तों के साथ झटपट खेलने जाने के मुड में होते थे तब गली से एक चुम्बकीय आवाज आती थी,घर में बैठे हो या वहाँ से गुजर रहे हों उसके खास किस्म के जादुई  आवाज के  मोह्पास  से बंध खड़े हो जाते | सुनिए सुनिए !! गौर से सुनिए  डुगडुगी के साथ, साहेबान ,मेहरबान , कद्रदान ...हिन्दुओं को राम राम , मुसलमान भाइयों को सलाम ........ आइये आइये ऐसा जबर्दस्त   तमाशा दिखाऊंगा की  दिल थाम कर रह जायेंगे | किसी को मलाल न होगा कि क्यों देखने गए थे | इसे देखने के बाद आप राजकपूर  की “आवारा” या  शोले की गब्बर हो या बसंती सब को भूल जायेंगे | याद रहेगा तो सिर्फ और सिर्फ इस नाचीज का तमाशा |

        हाँ तो मेहरबान , कद्रदान ,साहेबान इस खेल और तमाशे का पूरा मजा लेना चाहते हैं तो अंतिम तक खड़े रहना होगा इसके बदले ना मैं पैसा मांगता हूँ ,ना ही टिकट, सिनेमा देखने जायेंगे तो टिकेट लगेगा, पैसे लगेगें पर यहाँ बिलकुल फ्री | लेकिन यहाँ  उससे ज्यादा मजा मिलेगा | घबराइए मत ,ये मदारी  आपसे न कुर्सी मांगेगा न धन ,न रोटी ,न राजपाट | कसम ऊपरवाले की ..      अगर इसके बदले कुछ मांगूँ तो थूक देना मेरे मुंह  पर | साहेबान!! मैं तो आपके जीवन में सिर्फ और सिर्फ खुशियाँ  देना चाहता हूँ ..आपके जीवन से कुछ देर के लिए तनाव को दूर कर दूंगा , ये मेरा वादा है |

लीजिये अब खेल शुरू होता है , अब सबसे पहले जोर से ताली बजाइए | अरे ये क्या बीवी ने खाना नहीं दिया |प्रेमिका ने दिल तोड़ दिया या दफ्तर में बॉस ने डाटा है  |भूल जाइए सब कुछ ,सारे रंजो गम, ताली बजाइए !!!  जोर से और जोर से, ये हुई न बात|

       उसके साथ होता एक छोटी सी लड़की , एक लड़का , एक पिटारा,और चादर| देखते, देखते पता नहीं क्या करता, लडकी गायब हो जाती ,फिर जोर से तालियाँ बजती ,लोगों की सांसे थमी रहती  और आँखें फैली .. अनहोनी होने वाली थी ..लड़के का छाती फाड़कर  लाल खून सने  उसके कलेजे को  हाथ में लेकर हौलनाक दृश्य पैदा करता, ज्यादातर  बच्चे भाग खड़े होते या घरवालों द्वारा बुला लिए जाते ..इधर तमाशा चरम पर , तालियाँ  बहुत तेज बजती, लड़का खून से लथपथ दर्द से छटपटाता रहता ..तालियाँ बजती रहती, मदारी का चेहरा गुस्से में लाल ,, कहता   बेहद बेरहम और संगदिल हैं आप सब ! आप के अंदर इंसानियत मर चुकी है| मैं आप सबको खेल दिखा  कर शर्मसार हूँ, मैंने एक बार तालियाँ बजाने को क्या  कही और आप लोगों ने हदकर दी | एक जवान लड़की दिन दहाड़े  शहर की  भीड़ से गायब हो गयी |तालियाँ बजा रहे हैं आप |सरेआम एक मासूम  बच्चे का कत्ल हो गया तब भी आप तालियाँ पिट रहें हैं आप | हैरान हूँ मैं !!!

       क्या आप नहीं चाहते हैं की लड़की वापस लौटे , बच्चा जिन्दा हो जाए/भीड़ से आवाज आती “हम  चाहते हैं” तो इसके लिए आपको प्रायश्चित होगा ..सबको एक रूपये २ रूपये ५, १०,२०इस कटोरे में डालना होगा तभी लड़की वापस आएगी और ये बच्चा जिन्दा हो पयेगा वर्ना मैं चला | बाकी आप जाने ,आपकी इंसानियत जाने ! मेरा खेल खत्म ....कटोरा रूपये से भर जाता , लड़की वापस आ जाती ,लड़का भी जिन्दा हो जाता .. सन्देश के साथ उसका मकसद भी पूरा हो जाता |

      आपलोगों को लग रह होगा मैं क्या सुना रहीं हूँ, पर अब  तो आपको सब याद आ गया होगा |कब देखा था ये मदारी का तमाशा!!!!! ..१० साल ,२० साल ,२५ साल पहले,   याद कीजिये ...क्या पता अभी भी आपकी  गली में आता होगा पर बच्चे स्कुल से आने के बाद  टीवी पे कार्टून शो  देख  रहे होगें या अपने नए  गजेट में  खेल रहे होंगे नए गेम   और आप अपने बेडरूम के टीवी पर दुनियाभर की ख़बरें सुनने में व्यस्त होंगें .......मदारीवाले की जादुई आवाज आलिशान बड़े बड़े अट्टालिकाओं से टकराकर कर आसमान में गुम  हो गयी होगी क्योंकि ac वाले कमरेमें खिड़कियाँ नहीं होती और जिनके  यहाँ  कूलर हैं वो टीवी के साथ इतनी तेज आवाज करते हैं मदारी की  आवाज को पहुचने नहीं देंगें या उस गरीब की क्या औकात की आपके कालोनी से गुजरने भी  दिया गया हो !!!!!!!!! उसके मजमे से असुरक्षा का जो ख़तरा है....

   क्या आपके बच्चे परिचित भी हैं इस मायावी मदारी वाले से ? और अब कभी होंगे भी नहीं .... क्योंकि ये गुम हो रहे हैं ..विलुप्त जाति  के क्षेणी में आने वाले हैं ..

जी हाँ ऐसा ही है .. गलियों में प्रदर्शन करनेवाले सभी ..जादूगर , बहुरुपिया , बाजीगर , कलाबाज, बांसुरीवाला ,मदारी ( बंदरों के साथ तमाशा दिखानेवाले),सपेरा सब लुप्त होने के कगार पर हैं .... बचपन में तो  करीब  सभी लोगों ने तो देखा  ही हो होगा! जब मदारी, कोबरा को  अपने सधे  हाथों से पिटारे से निकालता और उसके फन के सामने बीन बजाता और हम दम साधे बिना पलक झपकाए देखते |या फिर बंदरों को लैला –मजनूं ,सीरी-फ़रहाद, हीर –राँझा  बनाकर नाच दिखाना , हँसाना | पर आज वे सिर्फ हमारे लिए याद भर हैं | क्योंकि अब सुरक्षा के नाम पर आपके इलाके में घुसने नहीं दिया जाता और इधर पेटावालों ने जानवरों के अत्याचार के नाम पर कानून बनाकर उनकी सदियों पुरानी रोजी रोटी छीन ली हैं ...सरकार उन्हें नए  रोजगार  दे नहीं रही और वे इसके अलावे कुछ करना जानते नहीं |

     उन्हें सरकार तो सरकार जनता भी उपेक्षित नजरों से देखती  हैं ..उन्हें भिखारी समझ कर भगा दिया जाता है ..या फिर उनके मजमें के कारण  असामाजिक तत्व ना घुस जाए इस भय से   !!

भारत के अलावे चार अन्य देशों में बसी इनकी सात जातियां  हैं, जिनका यही पेशा रहा है प्राचीनकाल से|  ज्यादातर देशों में इनके सरंक्षण के लिए पॉलिसी बनायीं गयी है, पर भारत में आधुनिकता के दौर में इन्हें भुला दिया गया है | कार पार्किंग के लिए तो जगह है पर इनके लिए आधे घंटे के लिए भी  नहीं | ये कहना है जादूगर इश्मुदीन  खान का | अब ये कौन है ? तो सुनिए !!!!!!!

     हाल में ही एक खबर पर नजर पड़ी .... गलियों में खेल तमाशे दिखानेवाले भूखे मरने की स्थिति में आ गए हैं ... इश्मुदीन खान जो स्वयम गलियों में जादू का तमाशा दिखाने वाले परिवार से हैं उन्होंने इनके सरंक्षण के लिए ISPAT,२०१३ (INDIAN STREET PERFORMER'S   ASSOCIATION TRUST  ) की स्थापना की  और सरकार पर दबाब डाला की इन्हें “कलाकार” की हैसियत से  आइडेंटिटी कार्ड देकर और इन्हें अपना हुनर दिखाने की इजाजत दी जाए नहीं तो दस सालों में ये सातों  जातियां  समाप्त हो जायेगी | खान का कहना है इन्हें सरकार ने सिर्फ अपने स्टाम्प पर ,स्कूल  की किताबों में ,और टूरिज्म पोस्टर पर तो शामिल कर लिया है |पर इनके सचमुच के सरंक्षण  के लिए कुछ नहीं कर रही | जबकि ये सदियों से हमारे सांस्कृतिक जीवन के हिस्सा हैं  | ऑस्ट्रेलिया ,सिंगापूर ,लन्दन और न्यूयार्क में इन्हें लाइसेंस दिया जाता है, उनकी योग्यता के आधार पर ..और उन्हें पूरा  मौका दिया जाता है अपने तमाशा दिखने के लिए ,उनके यहाँ  कई  संस्थाएं काम कर रही हैं, जो उनके साथ दुर्घटना होने पर उनके परिवार को आर्थिक मदद भी  देती है |

     मैं इश्मुदीन खान से पूरी तरह से सहमत हूँ| क्या आप हैं? हम हमेशा अपनी संस्कृति की बात कर गर्व महसूस करते हैं,  तो क्या ये उसका हिस्सा नहीं हैं ?  ये भी हमारी सांस्कृतिक धरोहर के महत्वपूर्ण इकाई हैं ...  क्या  हमारे  बचपन की   यादें इनके बिना खाली सी नहीं हो जायेगी ???

 

(मौलिक एवं अप्रकाशित)

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Comment by MAHIMA SHREE on September 10, 2014 at 7:56pm

आदरणीया राजेश दी .नमस्कार आलेख पर आपके विचार और सराहना पाकर मन प्रसन्न हुआ स्नेह बनाये रखे , ह्रदय तल से आभार 

Comment by MAHIMA SHREE on September 10, 2014 at 7:45pm

आदरणीया सविता मिश्रा जी ,नमस्कार आपको आलेख पसंद आया आपने अपना समय दिया , विचार दिए इसके लिए दिल से शुक्रिया 

Comment by MAHIMA SHREE on September 10, 2014 at 7:43pm

 " नव विकास में प्राचीनता नष्ट हो रही है i प्रकृति का शायद यही दस्तूर है i  कभी हाथी घोड़े और तलवार युद्ध के उपादान थे आज मिसाइलो का जमाना है i दुनिया ऐसे ही चलती है शायद i"

आदरणीय गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी ,  नमस्कार .आपने बिकुल सही कहा आदरणीय नव विकास में प्राचीनता नष्ट हो रही है ..और प्रकति का भी यही दस्तूर है पर ये इंसान है तो हमें इन्हें बचाने के प्रयास में भागीदार तो हो ही सकते हैं ..आपने आलेख को अपना बहुमूल्य समय दिया इसके लिए ह्रदय तल से आभारी हूँ सादर 

Comment by MAHIMA SHREE on September 10, 2014 at 7:38pm

आदरणीय जितेन्द्र जी सादर अभिवादन ,आपने आलेख को समय दिया उसके मंतव्य को समझा  और अपने विचार साझा किया उसके ह्रदय से आभारी हूँ ..आपने सही कहा कस्बो में तो कभी कभी दिख भी जाते हैं पर पहले जैसा इनको न सराहने वाले मिलते हैं ना कमाई ही होती है ..बहुत -२ आभार 

Comment by MAHIMA SHREE on September 9, 2014 at 6:29pm

आदरणीय  डॉ विजय शंकर जी सादंर नमस्कार आपके अनुभव के साथ  और संवेदनशील प्रतिक्रिया ने लेखनी को आगे बढाया  है .. जानकार प्रसन्नता हुयी जिसे मैंने सिर्फ पढ़ा है उन अनुभवों से आप गुजरे है ..उन कलाकारों को आपने यात्रा के दौरान देखा है .यंहा दिल्ली में भी कुछ जगहों पर समय समय इनको मौका दिया जाता है जैसे INA के पास दिल्ली हाट में पर जयादातर दस्तकार ही होते हैं ,,,मदारी वाले नहीं ..आपने सही कहा विश्व बाजार में हैंडीक्राफ्ट के वस्तुओ की बहुत डिमांड है .. बल्कि मैं तो कहूँगी इनका इस्तेमाल करना अब स्टेटस सिम्बल बनता जा रहा है .. सादर आभार 

Comment by MAHIMA SHREE on September 9, 2014 at 6:20pm

आदरणीय अभिनव जी .. लेखनी पर प्रथम टिप्पणी और  और मेरे विचारो से सहमत होने के लिए आपका ह्रदयतल से आभार स्नेह बन रहे सादर 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2014 at 2:28pm

कथानक बढिया बुना है. वाचन के क्रम में कई बार लगाकि मैं बतियाता चलूँ, प्रश्नों के उत्तर देता चलूँ. लेकिन मेरे सोचे पर हामी भरती आगे-आगे चलती पंक्तियाँ आश्वस्त करती चलीं.

बहुत सही विन्दु उठाये गये हैं, महिमा श्री जी. अच्छा लगा पढ़ कर..
शुभेच्छाएँ

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on August 31, 2014 at 8:18pm

प्रिय महिमा बहन, बहुत ही रोचक अंदाज में की गयी प्रस्तुति! पर अब ये सब याद भर रखने की चीज रह गयी है. समय के साथ परिवर्तन होते रहते हैं. अब बड़े बड़े मदारी हो गए जो पांच साल में एक बार अपनी पुकार इन गलियों, चौराहों पर लगते हैं. बाकी दिन सब कुछ अब टी वी पर उपलब्ध है. DARE To DANCE, लिटिल चैंप्स, और भी बहुत कुछ कार्टून शो आदि आदि… इश्मुद्दीन खान जैसे लोगों को अब कोई नया हुनर सीख लेना चाहिए डिजटल इन्डिया के लिये…नय खता खुलवा लेना चाहिए सामजिक आर्थिक सुरक्षा के लिये… और ज्यादा कुछ नहीं सहानुभूति इन कलाकारों के साथ आजकल तो सर्कस में भी भीड़ नहीं होती

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on August 31, 2014 at 4:16pm

आदरणीया महिमाश्री,

पेट पालने और आम आदमी का मनोरंजन करने के लिए  बंदर, भालू आदि पशुओं को पालने की इजाजत अब नहीं है क्योंकि इंग्लैंड, अमेरिका आदि देश ऐसा नहीं चाहते। लाखों मदारी / तमाशा दिखाने वाले या तो भूखों मर रहें हैं या पेट के लिए छोटे बड़े अपराध में संलग्न हो गये हैं। हमारे लिए दोनों स्थिति चिंतनीय है।

भारत में गाय को माता मानते हैं, पालते हैं, उसकी सेवा को धर्म समझते हैं लेकिन यूरोप अमेरिका गौ मांस के लिए लालायित रहते हैं। गुलामी के समय गौ मांस के लिए कत्ल खाने खोले गए थे जहाँ आज भी हजारों गायें रोज कटती हैं !!! हम बंद नहीं कर सकते क्योंकि कुछ दमदार देश नहीं चाहते और उनके खिलाफ जाने का दम भी तो हम में नहीं है !!!

 इंग्लैंड, अमेरिका में लोग कुत्ते पालना पसंद करते हैं। इसलिए  भारत के नकलची उच्च वर्ग भी कुत्ते पालने लगे। अब तो ये हाल है कि मध्यम वर्गीय भी कुत्ते पालने की दौड़ में शामिल हो गया है। भारत में आवारा कुत्तों के काटने से हर साल हजारों की संख्या में लोग मर रहे हैं या कष्टप्रद जीवन जी रहे हैं लेकिन हम कुत्तों को मार नहीं सकते क्योंकि यूरोप अमेरिका नहीं चाहते इसलिए भारत में भी कुत्तों को मारना दंडनीय अपराध माना गया है। गायें कटती रहें पर आवारा कुत्ते न मरें !!!

 

भारत में घोड़े पालना, घुड़दौड़ में उसे तेज दौड़ाना , उस पर लाखों की बाज़ी लगना अपराध नहीं है क्योंकि यह विदेशियों की नकल करने वाले “ विदेश प्रेमी उच्च वर्ग”  का शौक है लेकिन भालू , बंदर आदि का तमाशा दिखाकर पेट पालना अपराध है क्योंकि यह निम्न वर्ग की मज़बूरी है। सौ दो सौ रुपए रखकर गरीब वर्ग का ताश (जुँआ) खेलना अपराध है, कई धारायें लग जायेंगी लेकिन घुड़दौड़ में लाखों करोड़ों का दांव/ सट्टा लगाना किसी अपराध की श्रेणी में नहीं आता क्योंकि यह उच्च वर्ग के उन काले अंग्रेजों का शौक है जिनका देश का कानून बनाने में प्रमुख हाथ होता है !!!

सरांश ये कि इंग्लैंड, अमेरिका के प्रति हमारी वफादारी ही पशुओं का खेल दिखाने वालों की रोजी रोटी में, आम आदमी के मनोरंजन में और गायों का कत्ल होने से रोकने में बाधक बना हुआ है। विश्व स्तर पर जब फैसले लिए जाते हैं, कोई कानून बनाया जाता है उस समय हम अपनी  संस्कृति , परम्परा और आम आदमी की ज़रूरत का ध्यान रख अपनी बात तर्क पूर्वक नहीं रख पाते या शायद रखना ही नहीं चाहते,  जिसका परिणाम हम सब के सामने है। देखें नई सरकार क्या कहती है, क्या करती है इस संबंध में। उम्मीद अभी बाकी है।

इस लेख के लिए हार्दिक बधाई, बहुत ही सुंदर प्रयास।                                                  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 29, 2014 at 7:09pm

एक अच्छे मुद्दे पर बहुत शानदार आलेख लिखा प्रिय महिमा, सर्व प्रथम तो उसकी बधाई लो ,सच में ये खेल सिर्फ अतीत के गर्त में सिमटते जा रहे हैं जब की दुसरे देशों में उन्हें सुरक्षित रखा जा रहा है मैंने खुद देखा है काश अपने देश में भी ऐसा हो ...बहुत- बहुत बधाई आपको इस जागरूकता के प्रयास हेतु 

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