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एक ऐसी सास -- डा० विजय शंकर

श्वसुर के निधन पर रात भर की यात्रा पूरी करके वह घर में घुसी ही थी कि एक बार फिर जोर से रोना शुरू हो गया . वह अपनी सास से लिपट के रोये जा रही थी और उन्हें सांत्वना भी देती जा रही थीं . रिश्तेदार दोनों को समझाने, चुप कराने में लगे थे . थोड़ी देर बाद सब आगे की व्यवस्था में लग गए पर उसके आंसू जैसे रुक ही नहीं रहे थे , रोते रोते बोली , " यह कल ही होना था , कल मेरा जन्मदिन था . अब मैं अपना जन्मदिन कभी नहीं मनाऊँगीं " . सास अब तक कुछ संयत हो चुकी थीं , बड़े प्यार से बहू का सर सहलाते हुए बोलीं, " नहीं , क्यों नहीं मनायेगें , हर साल मनाएंगें , पापा को याद करेंगें और तुम्हारे बहाने खुश भी हो लिया करेंगें " .

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 532

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Comment by Dr. Vijai Shanker on September 1, 2014 at 12:00pm
प्रिय जीतेन्द्र जी , आपने कथा को पसंद किया , धन्यवाद ।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 31, 2014 at 12:03pm

अच्छा लगा आपकी लघुकथा पढ़कर. बहुत सही विषय पर साझा हुई है. आदरणीय शुभ्रांशु जी व् आदरणीय डा. गोपाल जी की विचारों से पूर्ण सहमत हूँ. बहुत-२ बधाई आपको सर

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 29, 2014 at 2:49pm
आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी , आपने कथा को गंभीरता प्रदान की , धन्यवाद. आपकी टिप्पड़ी विचारणीय है , आभार .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 29, 2014 at 12:15pm

विजय सर !

आपने सच कहा  i  गम को सहेज कर बैठना जिन्दगी नहीं है  पर हमें संवेदन शून्य भी नहीं होना चाहिए I

Comment by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2014 at 10:45pm
आदरणीय महिमा श्री जी कथा को सकारामक्ता के साथ स्वीकृति प्रदान करने के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2014 at 10:42pm
आदरणीय शुभ्रांशु पाण्डेय जी कथा को एक अच्छे उदाहरण के साथ स्वीकृति प्रदान करने के लिए धन्यवाद .
Comment by Dr. Vijai Shanker on August 28, 2014 at 10:40pm
आदरणीय डॉo आशुतोष मिश्रा जी कथा को स्वीकृति प्रदान करने के लिए धन्यवाद .
Comment by MAHIMA SHREE on August 28, 2014 at 9:25pm

बहुत ही सकरात्मक कथा ..हार्दिक बधाई आपको सादर 

Comment by Shubhranshu Pandey on August 28, 2014 at 6:35pm

आदरणीय डा विजय शंकर जी,

 ग्लास के आधा भरे और आधा खाली होने के उदाहरण हम आसानी से देते हैं लकिन उसे मूर्त रुप से बताना कठिन होता है और हम वास्तविकता में ग्लास के खाली वाले भाग  को ही पकड़ कर रह जाते हैं.

बहु ने ग्लास के उसी खाली भाग को पकडा है और  सास ने ग्लास के भरे भाग को आगे कर के एक सुन्दर उदाहरण दिया है. 

सादर.

Comment by Dr Ashutosh Mishra on August 28, 2014 at 1:15pm

आदरणीय डॉ साब ..आपने बिलकुल सही कहा है सुख और दुःख तो प्राकृतिक हैं हमें कोशिस करना है की हम जितना खुश रह सकें रहे ..सार्थक सन्देश देती इस रचना के लिए तहे दिल बधाई सादर 

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