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स्मृतियाँ और आंसू--डा० विजय शंकर

आँख में आया हरेक आंसू
तेरी वजह से हो ,जरुरी
नहीं होता है .
आँख में पड़ जाये कोई
छोटी सी किरकिरी
तो भी होता है .

दो बून्द आंसू की
एक अधखिला गुलाब,
यही स्मृतियाँ हैं तुम्हारी ,
कोई पर्वत नहीं ,
कोई सागर भी नहीं .
कि संभाल न सकूँ , छिपा न सकूँ ,
कि जिंदगी भर संजों न सकूँ .

हाँ , तुमको अपनी आँखों में जरूर
बसाया था ,और छिपाया भी था,
आंसू की तरह .
एक किरकिरी पड़ी आँख में ,
और तुम जरा भी सह न सके
और लुढक के बह गए
आँसू की तरह .

मौलिक एवं अप्रकाशित.
डा० विजय शंकर

Views: 532

Comment

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Comment by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2014 at 9:34pm
बधाइयों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद प्रिय जीतेन्द्र जी .
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 23, 2014 at 9:33pm
बधाइयों के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय गिरिराज भंडारी जी।
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 15, 2014 at 8:18pm

रचना में बहुत सुंदर भाव उमड़ कर आये है आदरणीय डा. विजय जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 15, 2014 at 12:33pm

बहुत सुन्दर  भाव , बढ़िया रचना , बधाइयाँ , आदरणीय विजय भाई |

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 11, 2014 at 11:36pm
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय डॉo गोपाल नारायण जी .
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 11, 2014 at 5:41pm

विजय सर i

बहुत सुन्दर और सार्थक i

Comment by Dr. Vijai Shanker on September 11, 2014 at 8:59am
आदरणीय विजय निकोर जी बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद.
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 11, 2014 at 8:56am
रचना को पसंद करने के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय महिमा श्री जी।
Comment by Dr. Vijai Shanker on September 11, 2014 at 8:55am
रचना को स्वीकार करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय अखंड गहमरी जी।
Comment by vijay nikore on September 10, 2014 at 11:18pm

अति सुन्दर ! हार्दिक बधाई, आदरणीय विजय जी।

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