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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक - 54

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 53 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह भारत के प्रसिद्ध शायर जनाब बशीर बद्र साहब की ग़ज़ल से लिया गया है| पेश है मिसरा ए- तरह 

 

"ये चाँद बहुत भटका सावन की घटाओं में "

221 1222 221 1222

मफऊलु मुफाईलुन मफऊलु मुफाईलुन
(बह्र: बहरे हज़ज़ मुसम्मन अखरब)
रदीफ़ :- में
काफिया :- आओं(घटाओं. हवाओं, दुवाओं आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 दिसंबर दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 27 दिसंबर दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 26 दिसंबर दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

आदरणीय शिज्जु भाई , गज़ल की सराहना के लिये आपका दिली शुक्रिया ।

हम जिस पे चढ़े-कूदे ,थे धूल नहाये फिर

मैं ढूँढ रहा बचपन बरगद की जटाओं में     ---वाह्ह्ह  

 

वो ख़्वाब था या सच था, कोई तो बताये कुछ

कल तितलियों को देखा बेख़ौफ़ हवाओं में-----कमाल का शेर 

हर शेर शानदार है बस बधाई कबूल कीजिये 

आज बहुत जल्दी में कमेन्ट कर रही हूँ बाद में संकलन आराम से पढूंगी 

 

आदरणीया राजेश जी , गज़ल की सराहना के लिये आपका दिली आभार ।

उम्दा ग़ज़ल हुई है
मतला से जो शानदार सफ़र शुरू हुआ वो आख़िरी शेर तक काइम रहा

अलबत्ता इस मिसरे पर बहर के हवाले से नज़रे-सानी फरमा लें ...

ग़मनाक ठंडी आहें उस तक पहुँच गईं क्या ?


आदरणीय वीनस भाई , गज़ल पर आपकी उपस्थिति से रोमांचित हूँ ,बेबहर  मिसरा मै सुधार लूंगा  । सराहना और सलाह के लिये आपका हार्दिक आभार

खोजो उसे शिद्दत से पोशीदा तुम्हीं में है  

बाहर नहीं मिलता है, पर्वत में, खलाओं में 

Behatareen Ashaar............ Giriraj Ji... Aur bahut sateek bhi... Badhai... :)

आदरणीय हरजीत भाई , हौसला अफज़ाई के लिये आपका शुक्रिया ।

आदरणीय गिरिराज भाई साहब, कठिन उर्दू शब्दावली का अर्थ अगर नीचे दे दिया जाता तो मुझ जैसे गैर उर्दू भाषी को भी ग़ज़ल समझने में आसानी होती, कुछ शेर जो समझ सका उस आधार पर ग़ज़ल अच्छी लगी, बधाई स्वीकार करें .

आदरणीय बागी भाई , सराहना के लिये आपका दिल से शुक्रिया । आगे से शब्दों  के अर्थ देने का ध्यान रखूंगा ।

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय। शुरूआती तीन अशआर खास तौर से प्रभावी हैं।

खोजो उसे शिद्दत से पोशीदा तुम्हीं में है
बाहर नहीं मिलता है, पर्वत में, खलाओं में

मेरी राय में यहाँ 'है' के स्थान पर 'वो' ज्यादा प्रभावी हो सकता है।

इस उम्दा ग़ज़ल पर मेरी विनम्र बधाई स्वीकार करें।

आदरणीय गजेन्द्र भाई , सराहना के लिये आपका शुक्रिया । आपकी सलाह उचित है , ख़्याल रखूंगा , आभार आपका ।

वाह आदरणीय बड़ा ही आनंद आगया आपका कलाम पढ़कर....

दिल से दाद कबूल करें...

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