For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

सरकार - इनकी उनकी--- डॉo विजय शंकर

लोगों की , लोगों से , लोगों के लिए
सरकार होती है ,
हमने इनकी , उनकी ,
हर इनकी , हर उनकी ,
सरकार बना दी , लोगों से छीन कर ।
हालात ये हैं कि अब हर एक
ठगा सा लगता है,
दूसरे की हो सरकार तो
डरा डरा सा लगता है ॥
खुद अपनी हो सरकार तो
ज्यादा ही अड़ा अड़ा सा लगता है ॥
अपनी स्वतंत्रता , अपना राज , अपनी सरकार ,
सब कुछ अपना अपना है , दूजे सब बेकार ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित
डॉo विजय शंकर

Views: 661

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 3, 2015 at 10:52am
आदरणीय खुर्शीद खैरादी जी , आपको रचना पसंद आई , आपका आभार , आपकी सद्भावनाओं के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।
Comment by khursheed khairadi on February 3, 2015 at 9:50am

हालात ये हैं कि अब हर एक
ठगा सा लगता है,
दूसरे की हो सरकार तो
डरा डरा सा लगता है ॥

आदरणीय विजयशंकर सर सुन्दर प्रस्तुति है |हार्दिक अभिनन्दन |

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 1, 2015 at 12:30pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, रचना को स्वीकार करने के लिए आभार. सच्ची , कड़वी बातें , लोग कब से झेल रहे हैं इन्हें । आयातित शासन - स्वरुप मिला, विदेशी सोच पर अवलम्बित मिला , बदलने की क्या बात , जो है वह ही समझ के बाहर है. प्रशस्ति के लिए भी आभार। बधाइयों के लिए धन्यवाद , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on February 1, 2015 at 12:16pm

आदरणीय विजय भाई , वर्तमान की सच्ची , कड़वी बातें कहीं , बहुत सुन्दर !! बधाइयाँ ॥

Comment by Dr. Vijai Shanker on February 1, 2015 at 11:25am
आदरणीय राम शिरोमणि पाठक जी, रचना पसंद करने के लिए आभार. बधाई के लिए ह्रदय से धन्यवाद , सादर।
Comment by ram shiromani pathak on February 1, 2015 at 10:22am
सुन्दर भाव से पगी सुन्दर भावाभिव्यक्ति आदरणीय।।हार्दिक बधाई आपको
Comment by Dr. Vijai Shanker on February 1, 2015 at 10:00am
आदरणीय शिज्जु शकूर जी , रचना को स्वीकृति प्रदान करने के लिये बहुत बहुत आभार. आपकी प्रतिक्रिया भी बहुत सही है, आपकी बधाई के लिए ह्रदय से बहुत बहुत धन्यवाद। सादर .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on February 1, 2015 at 9:22am

आदरणीय डॉ विजय शंकर सर आपने सच्ची बात कर दी है आज की तारीख में लोकतंत्र सिर्फ समर्थकों का रह गया है बहुत बहुत बधाई आपको इस रचना के लिये

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 30, 2015 at 2:16am
प्रिय मिथिलेश वामनकर जी, कविता की स्वीकृति के लिए बहुत बहुत आभार , कविता की प्रशस्ति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।
Comment by Dr. Vijai Shanker on January 30, 2015 at 2:13am
आदरणीय इंजी ० गणेश जी, बागी जी, कविता की स्वीकृति के लिए आभार , आपकी बधाई के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, सादर।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
43 minutes ago
Sushil Sarna posted blog posts
Thursday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेम

दोहा सप्तक. . . सागर प्रेमजाने कितनी वेदना, बिखरी सागर तीर । पीते - पीते हो गया, खारा उसका नीर…See More
Oct 31
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदरणीय उस्मानी जी एक गंभीर विमर्श को रोचक बनाते हुए आपने लघुकथा का अच्छा ताना बाना बुना है।…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सौरभ सर, आपको मेरा प्रयास पसंद आया, जानकार मुग्ध हूँ. आपकी सराहना सदैव लेखन के लिए प्रेरित…"
Oct 31

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय  लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार. बहुत…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service