For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

दिलॊं कॆ हौसले देखें घटाओं से ज़रा कह दॊ ।।
जलाये हैं चरागों को हवाओं से ज़रा कह दॊ ।।  (1)

तुम्हॆं मॆरी इबादत की कसम है ऐ मिरे क़ातिल,

अभी टूटा नहीं हूं मैं ज़फ़ाओं से ज़रा कह दॊ।। (2)

घनी ज़ुल्फ़ॆं मुझॆ बांधॆं इरादा तॊड़ दॆं मॆरा,

नहीं पालॆं भरम क़ातिल अदाऒं सॆ ज़रा कह दॊ !! (3)


मिलूँगा मैं गरीबों की दुआ में रोज तुमको अब,
बुला लेंगी मुझे अपनीं वफाओं से ज़रा कह दॊ ।। (4)

शहर सारे हुये पत्थर दिलों में रंज है भारी,
इमारत मत बनें तुम आज गाँवों से ज़रा कह दॊ ।। (5)

अगर ये पैर की जूती बगावत पे उतर आई,
कभी सिर पे चढ़ेगी 'राज़' पावों से ज़रा कह दॊ ।।(6)


"राज़ बुन्देली"
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 479

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on March 25, 2015 at 11:18pm

लाजव़ाब! लाजव़ाब! लाजव़ाब!

दिल बाग़ बाग़ हो गया ये गजल पढके!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 17, 2015 at 10:27am

आदरणीय राज बुन्देली जी बेहतरीन और उम्दा ग़ज़ल हुई है हार्दिक बधाई 

इन मिसरों पर पुनर्विचार निवेदित है -

तुम्हॆं मॆरी इबादत की कसम है मिरे क़ातिल, (2 मात्रा कम है )

शहर सारे हुये पत्थर दिलों में रंज है भारी, (शह्र वज्न 21 है)

अगर ये पैर की जूती बगावत पे उतर आई तो, (तो अधिक हो रहा है)

Comment by Nazeel on March 16, 2015 at 8:01pm

आदरणीय कवि  राज बुंदेली जी  बहुत  सुन्दर प्रस्तुति के लिए  हार्दिक बधाई। 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on March 16, 2015 at 7:49pm

आ०  राज बुन्देली जी

दुसरे और तीसरे शेर की अंतिम पंक्ति  हू-ब- हू एक जैसी  . कोई टाइप त्रुटि है क्या  ! कृपया देख लें  . सादर .

Comment by Hari Prakash Dubey on March 16, 2015 at 7:32pm

आदरणीय राज़ बुन्देली जी ,सुन्दर ग़ज़ल है...

शहर सारे हुये पत्थर दिलों में रंज है भारी,

इमारत मत बनें तुम आज गाँवों से ज़रा कह दॊ....वाह , हार्दिक बधाई आपको ! सादर 

Comment by Anurag Singh "rishi" on March 16, 2015 at 5:39pm
वाह सर क्या खूबसूरत ग़ज़ल हुई है बेहतरीन

अगर ये पैर की जूती बगावत पे उतर आई तो ,
कभी सिर पे चढ़ेगी ' राज़' पावों से.......वाह उम्दा

दूसरे शेर की बह्र एक बार देख लें
सादर
Comment by Shyam Mathpal on March 16, 2015 at 11:26am

Aadarniya Raj Bundeli Ji,

Har Sher... Lajawab.....Kya Khub...Bahut -- Bahut Badhai.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
3 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
9 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion रोला छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"आदरणीय सौरभ सर, रोला छंद विधान से एक बार फिर साक्षात्कार कर रहा हूं। पढ़कर रिवीजन हो गया। दोहा…"
10 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
yesterday
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service