For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जिये जा जिये जा (एक बहुत छोटी बह्र पर ग़ज़ल 'राज')

१२२ १२२

भलाई किये जा

बुराई लिये  जा

 

उन्हें बाँट अमृत

जहर खुद पिये जा

 

तेरे पास जो है

दिये जा दिये जा

 

उन्हें तू उठा दे 

मगर खुद निये जा  

 

जवानी लुटा दे

बुढ़ापा सिये जा

 

जमाना ख़रा है

भरोसा किये जा

 

यही जिन्दगी है

जिये जा जिये जा

-------(मौलिक एवं अप्रकाशित )

Views: 771

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2015 at 10:18pm

आ० गणेश जी ,आपकी तारीफ पाकर ग़ज़ल मुकम्मल हुई ,दिल से बहुत बहुत आभार आपका ....उस शेर के विषय में नीचे लिखा है |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2015 at 10:16pm

प्रिय निधि जी ,आपको ग़ज़ल पसंद आई मेरा लिखना सार्थक हुआ दिल से आभार आपका |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 15, 2015 at 10:15pm

हाहाहा  आ० सौरभ जी,सही समझा फुलकी  की बात मुझे भी याद है आप नहीं समझाते तो यहाँ भी वही हाल होता  ...यह शब्द मैंने गाँव में सुना है किन्तु इस पर सभी का संशय बना रहेगा इस लिए इस शेर को ही निकाल दूँगी  क्यूंकि दूसरा काफिया मिलना असंभव सा लग रहा है ...आपकी नजर में यहाँ कोई और शब्द फिट होता है तो बता दीजियेगा .आपका बहुत- बहुत आभार 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 14, 2015 at 5:55pm

छोटी बहर में अच्छी ग़ज़ल हुई है, इसके लिए बहुत बहुत बधाई.

//आप्नी आमार ऐक्टु गोप्प ’निये’ जाउ, आदरणीया, जे एइ खाने प्रोजुक्तो ’निये’ टा खूब भालो शब्दो होबे ना..

:-))//
सौरभ भईया से सहमत हूँ .....दो बातें हो सकती हैं......(एक फिल्मी गाने से) 

Comment by Nidhi Agrawal on April 14, 2015 at 3:21pm

ज़बरदस्त ग़ज़ल .. सुन्दर शब्दावली और सुन्दर भाव 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 14, 2015 at 11:20am

हा हा हा..

मुझे अच्छी तरह से भान है, आदरणीया राजेश कुमारी जी, कि आप किसी कहे का अर्थ यदि खूब स्पष्ट न हो तो उसके कैसे-कैसे इन्नोवेटिव अर्थ निकाल लिया करती हैं .. :-))

इस टिप्पणी के माध्यम से मैं सभी के साथ साझा कर रहा हूँ, कि, फुलकी (गोलगप्पे) के ऊपर लिखे मेरे सवैया छन्द को आप बहुत दिनों तक किसी नवयुवती पर लिखी रचना समझती रही थीं.. ...  हा हा हा..

अब मेरी टिप्पणी पर -

आदरणीय गिरिराज भाईजी के प्रश्न में मेरे कहे का भी आशय निहित है. उसके प्रत्युत्तर में आपने जो कुछ कहा है उसे मैं देख रहा हूँ. वस्तुतः झुकने को आंचलिक भाषाओं में नँवना या नमना कहते हैं. नियना जिससे निये  आपने निकाला है,  वह उचित प्रतीत नहीं होता. अगर ऐसा है भी तो ऐसा कोई शब्द इतना अधिक क्षेत्रीय होगा या है, कि उसका प्रयोग अत्यंत विशिष्ट अवसरों या कारणों पर ही किया जा सकता है. ऐसे कई उदाहरण साहित्य में हैं भी. लेकिन सामान्यतया किसी अति विशिष्ट आंचलिक शब्द के सामान्य प्रयोग से बचना चाहिये.

सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2015 at 8:47am

आ० गिरिराज जी ,ग़ज़ल को आपका आशीष मिला ग़ज़ल मुकम्मल हुई ,निय शब्द हमारे यहाँ झुकने के अर्थ में बहुत प्रचलित है जैसे कितना झुकेगा तो उसे कितना नियेगा कहते हैं बहुत बार गाँव में सुना है लिखते हुए वही याद आ गया |बहुत बहुत आभार आपका 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 14, 2015 at 8:43am

मिथिलेश भैया ,आपको ये ग़ज़ल पसंद आई दिल से आभारी हूँ लिखना सार्थक हुआ |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2015 at 8:34am

आदरणीया राजेश जी , छोटी बह्र मे खूब सूरत ग़ज़ल हुई है , तहे दिल से मुबारकबाद कुबूल करें ॥

निये जा  -- को समझ नहीं पाया , शायद क्षेत्रिय भाषा का कोई शब्द है , शब्दकोष मे भी नहीं मिला  ?

 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:23am
आदरणीया राजेश दीदी छोटी बह्र की मुकम्मल ग़ज़ल हुई सभी अशआर क्या खूब निकाले है। दाद दिल से।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
2 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
15 hours ago
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"आ. भाई आजी तमाम जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। उत्तम गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on AMAN SINHA's blog post काश कहीं ऐसा हो जाता
"आदरणीय अमन सिन्हा जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें। सादर। ना तू मेरे बीन रह पाता…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service