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ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा १८-सभी प्रविष्टियाँ एक साथ

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आदरणीय राणा प्रताप सिंह जी!  क्या करीने से आपने इस दीवान को सजाया है ! साथ-साथ बाबह्र व बेबह्र मिसरों को अगल अलग छांटना व अलग अलग रंग से इंगित करना अत्यंत कठिन व श्रमसाध्य कार्य है ! आपकी इस लगन, प्रतिभा व मेहनत को हमारा सलाम ! इस दुरूह कार्य सो सफलता पूर्वक संपादित करने के लिए कोटिशः बधाई मित्र ! जय ओ बी ओ ! :-)))))) 

वाह नए अंदाज़ में संकलन 

तभी दुनिया है ठेंगे पे ......वाला शेर जबरदस्त .............

:-)

ऐसे शेर भी तब एक अंदाज़ हुआ करते थे.

देखिये सीखने के फेर में क्या-क्या हुआ करता था.. :-))

सीखने के लिए सब करना पड़ता है सर ... सीखने सिखाने की परम्परा को मुशायरे के बहाने देख रहा हूँ ....तो लग रहा है काश मैं पहले मंच से जुड़ गया होता.

सादर 

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