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"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-1 (विषय: दीवार)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,
सादर वन्दे।
 
काफी समय से मंच के लघुकथाकारों की तरफ से लगातार अनुरोध प्राप्त हो रहे थे कि पहले से चल रहे तीन लाइव आयोजनो की तर्ज़ पर ही एक लाइव आयोजन लघुकथा विधा पर भी प्रारम्भ किया जाए। मुझे यह बताते हुए अपार हर्ष हो रहा है कि ओबीओ प्रबंधन दल ने इस अनुरोध को स्वीकार करते हुए "ओबीओ लाइव महा उत्सव", "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" तथा "ओबीओ लाइव तरही मुशायरा" के बाद अपने चौथे लाइव आयोजन "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" को इसी सत्र से प्रारम्भ करने का निर्णय किया है ।  

इस आयोजन के अंतर्गत हर माह रचनाकारों को एक विषय, उद्धरण अथवा चित्र प्रदान किया जायेगा जिस पर लघुकथा कहनी होगी । प्रत्येक रचना के गुण एवं दोषो पर विस्तार से चर्चा की जाएगी । इस आयोजन में लेखकगण अपनी 'मौलिक एवं अप्रकाशित' लघुकथा स्वयं लाइव पोस्ट कर सकते हैं, साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं । बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो इस समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए । तो साथियो, हिंदी साहित्य जगत की सर्वप्रथम लाइव लघुकथा गोष्ठी के पहले आयोजन पर प्रस्तुत है :


"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-1
विषय : "दीवार"

अवधि : 29-04-2015 से 30-04-2015

(आयोजन की अवधि दो दिन अर्थात 29 अप्रैल 2015 दिन बुधवार से 30 अप्रैल 2015 दिन गुरूवार की समाप्ति तक)

अति आवश्यक सूचना :-
१. सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अपनी दो सर्वश्रेष्ठ लघुकथाएँ पोस्ट कर सकते हैं। किन्तु स्मरण रहे कि एक दिन में केवल एक ही लघुकथा पोस्ट की जाए ।
२. रचनाकारों से निवेदन है कि अपनी रचना केवल देवनागरी फॉण्ट में टाइप कर, लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें।
३. रचना पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी लगाने की आवश्यकता नहीं है।
४. प्रविष्टि के अंत में मंच के नियमानुसार "मौलिक व अप्रकाशित" अवश्य लिखें।
५. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है। यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.
६. सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर केवल एक बार ही संशोधन हेतु अनुरोध करें।

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है, किन्तु बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है। इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं। रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें। अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाए।    

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 29 अप्रैल 2015, दिन बुधवार लगते ही खोल दिया जायेगा)

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मंच संचालक
योगराज प्रभाकर
(प्रधान संपादक)
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वाह प्रेरणादायी ,कथा , बधाई स्वीकारें 

आपका बहुत धन्यवाद  पंकज जोशी जी सर 

संस्कार की मिटटी से जुडी हुई दीवारें थी वो 

कच्ची थी तो क्या हुआ ? 

बधाई स्वीकारें चन्द्रेश भाई 

यही मिट्टी तो पक्की होती है भाई सुधीर जी, बहुत धन्यवाद आपका

आदरणीय चंद्रेश जी एक सुन्दर लघुकथा पर बधाई. 

एक विचार आया तो साझा कर रहा हूँ 

आपने लिखा है-"रामदीन आज भी देर रात आंगन में बैठा सामने की हवेली से ईर्ष्या"

इस पंक्ति के बाद पंच लाइन में  - "यह देख रामदीन हल्का सा चौंका"

आज भी यानी इससे पहले भी अधिकांश हवेली देखता था तो फिर क्या ये घटना पहले नहीं हुई होगी. 

अच्छी लघुकथा है किन्तु मुझे पहली पंक्ति में ही लघुकथा का अंत समझ आ गया कोई चौकानें या झटका देने वाला अंत नहीं लगा जो प्रभाव छोड़े. यद्यपि मैं लघुकथा के शिल्प के विषय में नहीं जानता किन्तु एक पाठक की हैसियत से अपने विचार साझा कर रहा हूँ. सादर 

आदरणीय मिथिलेश जी, जब मैं लघुकथा लिख रहा था तो मन में यही बात कौंध रही थी, जिसका विचार आपको भी आया| आपने तो मेरा विचार ही पढ़ लिया, नमन आपको सर !!

इसका उत्तर मुझे यह सूझा था कि पहले इस तरह घटना हुई होगी, लेकिन उसके सम्मुख नहीं हुई होगी, क्योंकि जिस तरह के संस्कार उसके घर में थे, उसके अनुसार बहुत अधिक रात्रि को जागना सही नहीं होना चाहिये, और लेट-नाईट पार्टीज रात को 1-2 बजे के आसपास खत्म होकर फिर घर जाने का सिलसिला प्रारंभ होता है|

जी लेकिन यह मेरा अपना विचार है जो मुझे मेरे प्रश्न के उत्तर में मिला था, आप कृपया बताएं यह ठीक है या नहीं!!

बढ़िया कहा आपने . सुन्दर .

हृदय से आभार प्रेषित करता हूँ आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण जी सर !!

आहा ! आनंद आ गया, बहुत ही सुन्दर लघुकथा बुनी गयी है, मुझे कथ्य और शिल्प दोनों पर लघुकथा कसी हुई प्रतीत हुई, बहुत बहुत बधाई आदरणीय चंद्रेश कुमार जी.

आदरणीय गणेश जी बागी सर, आपके इन शब्दों ने बहुत उत्साहवर्धन किया, आप जैसे वरिष्ठजन के शब्द सर-आँखों पर !!

ऊची दीवारों के पीछे का सच  !! अच्छा प्रयास 

हृदय  से  आभार अमन कुमार  जी 

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