For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

1222---1222---1222---1222

 

करो मत फ़िक्र दुनिया की, जो होता है वो होने दो

जिन्हें कांटें चुभोना है, उन्हें कांटें चुभोने दो

 

हमारी तिश्नगी नादिम, अजी ये चाहती कितना

समंदर आँख में भर दो मगर आँसू अलोने दो

 

कभी अफ़सोस कर लेना हमारी बेनियाजी पर

हकीक़त से डरे सहमे, हमें सपने सलोने दो

 

बहुत दिन बाद देखें है सितारे, बादलों ठहरो

कि जी भर देख लेने दो, जरा दिल में समोने दो

 

नहीं विश्वास नदियों पर,  न पावन से रहे सरवर

करेंगे आचमन,...... जब आप ये लोचन अचोने दो

 

कदमबोसी, गुलामी की, गलीज आदत बदल  लो जी,

कि तुम इंसान हो,..... अपनी न ये पहचान खोने दो

 

सितारें शब की झोली में, सहेजे तीरगी बैठी 

सहर को देर है थोड़ी, जरा उनको पिरोने दो

 

“न वैसे लोग बाकी है, न वैसे दिन रहे अच्छे”

सँवारों आज तुम अपना उन्हें माज़ी पे रोने दो

 

सभी तो बहती गंगा में नहा कर चल दिए साहिब 

गुज़ारिश है इज़ाज़त की,  हमें भी हाथ धोने दो

 

कहा, जज़्बात के बाज़ार लगते देखकर, हमने

कि बेचो दास्ताँ उनकी, हमें आँखें भिगोने दो

 

हयात अपनी हमेशा से दिलासा यूं ही देती है

जमीं तैयार हसरत की, ख़ुशी के बीज बोने दो

 

हुई आमिल सियासतदां की जो सरगोशियाँ तो तय

मलाई काट लेंगे सब, जरा मक्खन बिलोने दो

 

ठहर कुछ देर तो ऐ आसमां अब आ रहा हूँ मैं  

मेरी परवाज़ को जुम्बिश, जुनूं, ताक़त सँजोने दो

 

चमन का देखकर आलम, किया तय हुक्मरानों ने

अभी अहले-वतन को बस मुकम्मल नींद सोने दो

 

कभी ‘मिथिलेश’ फुरसत से तुम्हारें गीत सुन लेंगे

अभी आज़ार जीवन का ये कायम बोझ ढोने दो

 

 

------------------------------------------------------
(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
----------------------------------------------------

Views: 914

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on June 25, 2015 at 4:24am

आदरणीय सौरभ सर,

विलम्ब से प्रत्युत्तर हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ...

ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति से ही ग़ज़ल का मान बढ़ जाता है तिस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल जाए बस मन झूम जाता है 

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार 

नमन 

आज बहुत दिनों बाद ओबीओ पर लौटा हूँ तो लग रहा है वापस घर आ गया हूँ सुबह के 4.30 बज रहे है पर लैपटॉप हाथ से नहीं छूट रहा है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 1:45am

आदरणीय मिथिलेश भाई,
कमाल हुआ है. इन शेरों पर तो बार-बार वाह वाह कह रहा हूँ.  
सभी तो बहती गंगा में नहा कर चल दिए साहिब
गुज़ारिश है इज़ाज़त की,  हमें भी हाथ धोने दो

कहा, जज़्बात के बाज़ार लगते देखकर, हमने
कि बेचो दास्ताँ उनकी, हमें आँखें भिगोने दो

चमन का देखकर आलम, किया तय हुक्मरानों ने
अभी अहले-वतन को बस मुकम्मल नींद सोने दो

आपकी संज़ीदा कोशिशें बस बनी रहें.
शुभेच्छाएँ.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 22, 2015 at 12:13am

आदरणीय कृष्ण भाई जी आपकी विस्तृत और आत्मीय प्रशंसा से बहुत आनंदित हो गया हूँ 

बहुत बहुत आभार 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 22, 2015 at 12:11am

आदरणीय दिनेश भाई जी आपकी दाद मिल जाती है झूम जाता हूँ बहुत बहुत आभार 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on May 21, 2015 at 11:34pm

सितारें शब की झोली में, सहेजे तीरगी बैठी 

सहर को देर है थोड़ी, जरा उनको पिरोने दो        क्या बात है सर! वाह वाह

“न वैसे लोग बाकी है, न वैसे दिन रहे अच्छे”

सँवारों आज तुम अपना उन्हें माज़ी पे रोने दो     वाह! क्या कहने

 

सभी तो बहती गंगा में नहा कर चल दिए साहिब 

गुज़ारिश है इज़ाज़त की,  हमें भी हाथ धोने दो        बेहतरीन! बेहतरीन

इस नये कलेवर की गज़ल पर हार्दिक बधाईयां आ० मिथलेश  सर,पूरी गज़ल बेहतरीन हुई है..ढेरों दाद व् मुबारकबाद.. जो शेर विशेष पसंद आये उन पर अलग से दाद हाजिर है!

Comment by दिनेश कुमार on May 21, 2015 at 10:22pm
Excellent...!! Waaah waaah

ढेरों दाद व मुबारकबाद आदरणीय मिथिलेश सर जी।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 21, 2015 at 7:50pm

आदरणीय सुशील सरना सर जी ग़ज़ल पर आत्मीय प्रशंसा और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार 

Comment by Sushil Sarna on May 21, 2015 at 7:41pm

हयात अपनी हमेशा से दिलासा यूं ही देती है
जमीं तैयार हसरत की, ख़ुशी के बीज बोने दो

………… वाह आदरणीय मिथिलेश जी वाह क्या जबरदस्त शे'रों से सजी ग़ज़ल पेश की है मजा आ गया … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 21, 2015 at 7:34pm

आदरणीय सुनील जी ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार. 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on May 21, 2015 at 7:33pm

आदरणीय वीनस भाई जी आपकी ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर आश्वस्त हुआ. आपके मार्गदर्शन अनुसार 15-20 दिन पूरा जोर आजमाइश के बाद ही ग़ज़ल प्रस्तुत की है. वो सब, जो आपसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हासिल हुआ है उसके लिए हार्दिक आभार .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
13 minutes ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
3 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
4 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
19 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
20 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"माता - पिता की छाँव में चिन्ता से दूर थेशैतानियों को गाँव में हम ही तो शूर थे।।*लेकिन सजग थे पीर न…"
22 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे सखा, रह रह आए याद। करते थे सब काम हम, ओबीओ के बाद।। रे भैया ओबीओ के बाद। वो भी…"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service