फ़'इ'लात फ़ाइलातुन फ़'इ'लात फ़ाइलातुन (बह्र-ए-शिकस्ता) |
1121 - 2122 - 1121 - 2122 |
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मेरे नाम से न चाहे तू अगर तो मत सदा दे |
मुझे देख के मगर तू, कभी हाथ तो हिला दे |
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मैं यहाँ पढूँ वजीफा- कोई आशियाँ न उजड़े |
तू वहाँ किसी गली को कोई पुरअसर दुआ दे |
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कभी वसवसा रहा हूँ कभी मुब्तला रहा हूँ |
दे सुकून की दुशाला, मुझे चैन की कबा दे |
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यहाँ अपने आप से मैं रहा बेखबर हमेशा |
मैं मशीन हो गया हूँ मुझे आदमी बना दे |
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अभी लौट के जो देखा मेरा गाँव खो गया है |
न मिला कोई गले से, न कोई मुझे सदा दे |
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जो नसीब में है कासा तो गुमान क्यों ज़रा सा |
ये हुनर नहीं है मुझमें, मुझे माँगना सिखा दे |
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तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ुदा ही बन जा |
मुझे जिस्म मिल गया है मुझे रूह का पता दे |
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यहाँ रात ढल रही है, कोई तीन बज रहा है |
नया शेर हो सहर तक मुझे फलसफा नया दे |
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ये तबाह ज़ार आलम कई गिद्ध शादमां हैं |
कि हलाक देख दिल्ली, उसे कोई आसरा दे |
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Comment
बहुत ही खूबसूरत गज़ल।आनंद आ गया।
बहुत खूब आदरणीय . गुनीजन सब कुछ कह ही चुके हैं . सादर .
आदरणीय नरेंद्र सिंह जी सराहना हेतु हार्दिक आभार
तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ुदा ही बन जा
मुझे जिस्म मिल गया है मुझे रूह का पता दे
बहोत खूब सुन्दर
आदरणीय मिथिलेश जी ..इस कामयाब ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई ..हर शेर एक से बढ़कर एक है
आदरणीय मिथिलेशजी, आपकी ग़ज़ल की बहर और उसपर से इसकी कहन दोनों मुग्ध कर रही हैं. निम्नलिखित शेरों ने तो बस मोह लिया.
यहाँ अपने आप से मैं रहा बेखबर हमेशा
मैं मशीन हो गया हूँ मुझे आदमी बना दे
जो नसीब में है कासा तो गुमान क्यों ज़रा सा
ये हुनर नहीं है मुझमें, मुझे माँगना सिखा दे
तू अगर ख़ुदा नहीं तो मेरा नाख़ुदा ही बन जा
मुझे जिस्म मिल गया है मुझे रूह का पता दे
दिल से शुभकामनाएँ व बधाइयाँ
भाई, हम सलाह तो नहीं दे सकते, लेकिन तीन-वीन बजे तक न जगा करें. वैसे निशाचरी का एक अलग ही मज़ा है !
शुभ-शुभ
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