1222---1222---1222---1222 |
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करो मत फ़िक्र दुनिया की, जो होता है वो होने दो |
जिन्हें कांटें चुभोना है, उन्हें कांटें चुभोने दो |
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हमारी तिश्नगी नादिम, अजी ये चाहती कितना |
समंदर आँख में भर दो मगर आँसू अलोने दो |
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कभी अफ़सोस कर लेना हमारी बेनियाजी पर |
हकीक़त से डरे सहमे, हमें सपने सलोने दो |
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बहुत दिन बाद देखें है सितारे, बादलों ठहरो |
कि जी भर देख लेने दो, जरा दिल में समोने दो |
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नहीं विश्वास नदियों पर, न पावन से रहे सरवर |
करेंगे आचमन,...... जब आप ये लोचन अचोने दो |
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कदमबोसी, गुलामी की, गलीज आदत बदल लो जी, |
कि तुम इंसान हो,..... अपनी न ये पहचान खोने दो |
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सितारें शब की झोली में, सहेजे तीरगी बैठी |
सहर को देर है थोड़ी, जरा उनको पिरोने दो |
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“न वैसे लोग बाकी है, न वैसे दिन रहे अच्छे” |
सँवारों आज तुम अपना उन्हें माज़ी पे रोने दो |
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सभी तो बहती गंगा में नहा कर चल दिए साहिब |
गुज़ारिश है इज़ाज़त की, हमें भी हाथ धोने दो |
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कहा, जज़्बात के बाज़ार लगते देखकर, हमने |
कि बेचो दास्ताँ उनकी, हमें आँखें भिगोने दो |
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हयात अपनी हमेशा से दिलासा यूं ही देती है |
जमीं तैयार हसरत की, ख़ुशी के बीज बोने दो |
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हुई आमिल सियासतदां की जो सरगोशियाँ तो तय |
मलाई काट लेंगे सब, जरा मक्खन बिलोने दो |
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ठहर कुछ देर तो ऐ आसमां अब आ रहा हूँ मैं |
मेरी परवाज़ को जुम्बिश, जुनूं, ताक़त सँजोने दो |
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चमन का देखकर आलम, किया तय हुक्मरानों ने |
अभी अहले-वतन को बस मुकम्मल नींद सोने दो |
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कभी ‘मिथिलेश’ फुरसत से तुम्हारें गीत सुन लेंगे |
अभी आज़ार जीवन का ये कायम बोझ ढोने दो |
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Comment
आदरणीय सौरभ सर,
विलम्ब से प्रत्युत्तर हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ...
ग़ज़ल पर आपकी उपस्थिति से ही ग़ज़ल का मान बढ़ जाता है तिस पर सकारात्मक प्रतिक्रिया मिल जाए बस मन झूम जाता है
आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार
नमन
आज बहुत दिनों बाद ओबीओ पर लौटा हूँ तो लग रहा है वापस घर आ गया हूँ सुबह के 4.30 बज रहे है पर लैपटॉप हाथ से नहीं छूट रहा है.
आदरणीय मिथिलेश भाई,
कमाल हुआ है. इन शेरों पर तो बार-बार वाह वाह कह रहा हूँ.
सभी तो बहती गंगा में नहा कर चल दिए साहिब
गुज़ारिश है इज़ाज़त की, हमें भी हाथ धोने दो
कहा, जज़्बात के बाज़ार लगते देखकर, हमने
कि बेचो दास्ताँ उनकी, हमें आँखें भिगोने दो
चमन का देखकर आलम, किया तय हुक्मरानों ने
अभी अहले-वतन को बस मुकम्मल नींद सोने दो
आपकी संज़ीदा कोशिशें बस बनी रहें.
शुभेच्छाएँ.
आदरणीय कृष्ण भाई जी आपकी विस्तृत और आत्मीय प्रशंसा से बहुत आनंदित हो गया हूँ
बहुत बहुत आभार
आदरणीय दिनेश भाई जी आपकी दाद मिल जाती है झूम जाता हूँ बहुत बहुत आभार
सितारें शब की झोली में, सहेजे तीरगी बैठी
सहर को देर है थोड़ी, जरा उनको पिरोने दो क्या बात है सर! वाह वाह
“न वैसे लोग बाकी है, न वैसे दिन रहे अच्छे” |
सँवारों आज तुम अपना उन्हें माज़ी पे रोने दो वाह! क्या कहने |
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सभी तो बहती गंगा में नहा कर चल दिए साहिब |
गुज़ारिश है इज़ाज़त की, हमें भी हाथ धोने दो बेहतरीन! बेहतरीन इस नये कलेवर की गज़ल पर हार्दिक बधाईयां आ० मिथलेश सर,पूरी गज़ल बेहतरीन हुई है..ढेरों दाद व् मुबारकबाद.. जो शेर विशेष पसंद आये उन पर अलग से दाद हाजिर है! |
आदरणीय सुशील सरना सर जी ग़ज़ल पर आत्मीय प्रशंसा और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार
हयात अपनी हमेशा से दिलासा यूं ही देती है
जमीं तैयार हसरत की, ख़ुशी के बीज बोने दो
………… वाह आदरणीय मिथिलेश जी वाह क्या जबरदस्त शे'रों से सजी ग़ज़ल पेश की है मजा आ गया … हार्दिक बधाई कबूल फरमाएं सर।
आदरणीय सुनील जी ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार.
आदरणीय वीनस भाई जी आपकी ग़ज़ल की सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया पाकर आश्वस्त हुआ. आपके मार्गदर्शन अनुसार 15-20 दिन पूरा जोर आजमाइश के बाद ही ग़ज़ल प्रस्तुत की है. वो सब, जो आपसे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष हासिल हुआ है उसके लिए हार्दिक आभार .
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