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आदरणीया कांताजी
अब नाव किनारे लग ही जाएगी। अपनी बडी इच्छा पूरी करने के लिए किसी की छोटी इच्छा पूरी करने में क्या बुराई है !1! वैसे महानगरों में मिसेज़ रागिनी जैसी सोच वाली स्त्रियों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह देश और समाज के लिए चिंता का विषय है।
कथा पर हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिए।
सुन्दर लघुकथा हुयी है!हार्दिक बधाई आ० कांता रॉय जी!
पह्चान तो उसने पहले किशोर से भी बनायी . फिर अयंगर से . पर इस अंध पथ का हश्र क्या है यह तथाकथित प्रगतिशील नारी को भी सोचना होगा. अच्छी कथा . सादर
आसानी से पहचान हासिल नहीं हुई बहुत कुछ कह दिया आपने कथा के माध्यम से
आदरणीया कांता जी
आपने बहुत ही सलीके से विषय को उठाया और प्रदत्त विषय पर सार्थक रचना की है
लगा ही था कि अब पहचान कायम होगी और
ये पंक्तियाँ पूरी कहानी कह रही है -
पहचान अब कायम हो चुकी थी ।
इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
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