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बहुत सुंदर कथा मिथिलेश जी . भिखारी की प्रतिक्रिया बिलकुल अंगूर खट्टे हैं वाली है . वाह
आदरणीया रीता जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
क्या खूब लिखी आपने ..दो बार पढ़ी हमने
आदरणीया सविता जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
बहुत गहरी बात सहज ही कह दी ! लेखन शैली मारक ! बहुत सुंदर !
आदरणीया पूनम जी लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
बहुत बेहतर लिखा, आदरणीय मिथिलेश जी. विषय को कुछ अलग ही ढंग से परिभाषित करती लघुकथा ,बहुत अच्छी लगी. बहुत-बहुत बधाई आपको
आदरणीय जितेन्द्र जी आप जैसे सशक्त लघुकथाकार से प्रशंसा पाकर आश्वस्त हुआ. लघुकथा के प्रयास पर सराहना और सकारात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभार.
गंभीर कटाक्ष करती आपकी इस सशक्त व प्रभावशाली रचना हेतु आपको ह्दय तल से शुभकामनाएं । आपकी यह पहली कथा है जिससे मैं बहुत ही प्रभावित हुआ हूं । /'हे भगवान । इसने मेरा धर्म भ्रष्ट कर दिया।/ जाति व्यवस्था पर गंभीर चोट करती इस पंक्ित ने मुझे अंदर तक झंझोड़ दिया । एक भिखारी भी अपनी जाति के बारे में इतना सजग । कमाल कर दिया आपने आदरणीय मिथिलेश भाई । आकार के बारे में तो गुणीजन विस्त़ृत विवेचना कर ही चुके हैं । मेरी शुभकामनाएं स्वीकार कर कृतार्थ करें ।
"मेरे बुढ़ापे का सहारा, मेरा इकलौता जवान बेटा जा चुका है। अब तो भाई मैं कहीं का भी नहीं।"
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