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आदरणीया राजेशजी
आपको कथा पसंद आई मेरा प्रयास सफल हुआ। कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
//भिखारी हूँ कोई चोर लुटेरा नहीं और बकता नहीं सच कहता हूँ, ईमानदारी की कमाई से इतना बड़ा मकान खड़ा नहीं होता//
क्या तेवर है साहब ! जैसे भिखारी होना कोई मेहनतकस और मान्य व्यवसाय हो और उसपर की बड़े मकान वालें सभी बेईमान ही होते हैं. मुझे तो लग रहा है वो भिखारी था ही नहीं, विजिलेंस का आदमी था भिखारी के रूप में :-)))
इस प्रस्तुति पर बधाई आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी.
आदरणीय गणेश भाई जी
आपकी प्रतिक्रिया अपनी जगह सही है। आजकल के बच्चे बड़ों जैसी बाते करते हैं। भिखारी पर भी समय का असर तो होना ही है।
भिखारी थोड़ा सजग रहे तो अपने शहर की अच्छी जानकारी रख सकता है कोई शक भी नहीं करता। टीवी अखबार के चलते काला धन और भ्रष्टाचार की बातें इतनी आम हो गई है हर कोई जान गया है कि मामला क्या है और कहाँ गड़्बड़ है। वैसे भी चोर शब्द सुनने के बाद भिखारी का पूरा हक बनता है कि वो जो चाहे कहे अपनी भड़ास निकाले। उसका कौन क्या बिगाड़ेगा ।
आपको कथा पसंद आई मेरा प्रयास सफल हुआ। कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
सादर
आदरणीय अखिलेश जी,
ज्यादातर घर जिसके बाहर दरवाजे पर ‘कुत्तों से सावधान’ लिखा देखा है उनके मालिकों को कुत्तों से भी ज्यादा खतरनाक देखा है.
लेकिन इस तपती दोपहर में आधी नींद से जगा कर कोई झगडा़ करे तो दिमाग गर्म होना स्वाभाविक है. फ़िर भी भिखारियों की दारुण स्थिति को दिखाती बहुत सुन्दर कथा.
सादर.
आदरणीय शुभ्रांशु भाई
आपको कथा पसंद आई मेरा प्रयास सफल हुआ। कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
वैसे समय सुबह का है । रईसज़ादे और ज़ादियों की सुबह 9 से 11 के बीच होती है। देर रात तक ऐश करना इनकी आदत बन गई है।
आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी, लघुकथा अच्छी हुई है। कथानक आपने बढ़िया चुना किन्तु भिखारी के मुँह से जो कहलवाया गया कई जगह अतिश्योक्ति लगा। यही बातें अगर भिखारी की जगह घर में काम करने वाले/आए किसी व्यक्ति के द्वारा कहीं जातीं तो स्वाभाविक भी लगतीं तथा उनका प्रभाव भी कई गुणा बढ़ जाता। वैसे लघुकथा के अंत में "कुत्तों से सावधान" ने दिल जीत लिया।
//. [ तेज आवाज से कुछ पड़ोसी भी बाहर आ गए ]।// लघुकथा में इस तरह ब्रेकेट में लिखा जाना अटपटा लगता है। वैसे इस की पंक्ति की कोई आवश्यकता भी नहीं है। बहरहाल, इस सद्प्रयास एवं आयोजन में प्रतिभागिता हेतु साधुवाद स्वीकारें।
आदरणीय योगराज भाईजी
आपका कहन सही है, पर यह भी सही है कि हर वर्ग में कुछ तेज तर्रार हाज़िर जवाब लोग होते हैं। आजकल के बच्चे भी बड़ी बड़ी बातें करने लगे हैं, मां बाप बहुत शैतान हो गया है कहकर चुप हो जाते हैं। शहर के भिखारी मोबाइल रखने लगे हैं । काले धन और भ्रष्टाचार की बातें आम हो गई हैं। चोर कहने से वह तिलमिला गया था। एक प्रकार से उसे खुली छूट मिल गई थी पलटकर जवाब देने की। उसे यह भी मालूम है एक भिखारी का कौन क्या बिगाड़ेगा ।
कोष्टक वाली बात इसलिए लिखी कि पड़ोसी भी देख सुन ले कि एक भिखारी की नज़र में उनकी क्या औकात है।
कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
सादर
आ० अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव सर लघुकथा का चित्रण बहुत शानदार हुआ है!पात्र आखों के सामने जीवित से हो गये,कई जगह अतिश्योक्ति के साथ हास्य का पुट भी विराजमान है!बस एक बात जो मुझे कमी लग रही है वह यह के लघुकथा का विषय ''पहचान'' दब सा गया है!शायद!सभी बडे मकान वाले लोग ऐसे हो जरूरी तो नही!फिर एक भिखारी के ऐसे तेवर जंच नही रहे!
आदरणीय कृष्णजी,
आदरणीय गणेश भाई जी और आदरणीय योगराज भाईजी की टिप्पणी पर मैंने विस्तार से भिखारी का पक्ष रखा है शायद इससे आपकी शंका का भी समाधान हो जाय।
कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
आ० अखिलेश जी
आपकी कथा रोजमर्रा की जिन्दगी से ली गयी है जिसे आपने शब्द चातुर्य से गढ़ा है. सादर.
आदरणीय गोपाल भाईजी,
कथा को समय देने और प्रशंसा के लिए हृदय से धन्यवाद आभार ।
आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव सर, बड़े बड़े बंगलों की सच्चाई और वास्तविकता को उजागर करती बढ़िया लघुकथा
हार्दिक बधाई
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