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आ० सौरभ जी
सादर अभिनंदन .
वाह वाह लघु कथा के अंत ने वाह वाही लूट ली आ० भाई जी बहुत बढ़िया प्रेरणा दायी लघु कथा दिल से बहुत बहुत बधाई आपको |
आ 0 दीदी
अनुगृहीत हूँ सादर . .
हा हा हा
बढ़िया घटनाक्रम .... चलिए अंततः पहचाना तो सही
बहुत अच्छी लघुकथा हुई है
आदरणीय गोपाल सर इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई
आ० मिथिलेश जी
आपका आभार .
‘ओह, तो मैं तुम्हें आज पहचान पायी !’- लडकी ने चप्पल हाथ में लेते हुए कहा I इस पंक्ति ने इस लघुकथा को एक अलग पहचान दी है आदरणीय डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी . आप कमाल का लिखते है .
बधाई आप को
आ० ओम प्रकाश जी
आपका अभिनन्दन .
लडकी ने आख़िरकार चप्पल हाथ में ले ही लिया, भावनाओं में बहा कर शोषण करना तो आज जैसे हवा में घुलता जा रहा है, जिस पर रोक बहुत आवश्यक है| इस सार्थक लघुकथा हेतु कृपया मेरी बधाई स्वीकारें आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण जी सर !!
आ0 चंद्रेश जी
आपका आभार सादर .
आ. गोपाल भाईजी
पहले कम पढ़ी लिखी लड़कियाँभी सतर्क रहती थीं। लड़कों को पहचानने में आजकल की फेस बुक लड़कियाँ इतनी देर कर देती हैं कि अँधेर हो जाती है। चप्पल ने तो नहीं पर सख्त कानून ने उसे ज़्ररूर बचा लिया वर्ना वेलेंटाइनी छोरे चप्पल खाकर भी छोड़ते कहाँ है।
हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर।
आ० अखिलेश जी
आपकी टीप का सादर आभार .
गज़ब गज़ब गज़ब ! लघुकथा स्पष्ट सन्देश छोड़ती है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी.
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