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बहुत ही सुंदर प्रयास माला झा जी| आदरणीय सौरभ पांडे जी सर की प्रतिक्रिया ने आपकी लघुकथा को विशिष्ट बना दिया है, बधाई आपको|
आदरणीया मालाजी
शिक्षा ने समझदार बना दिया। कथ्य और कथा के उद्देश्य में दम है और सौरभ भाईजी के सुझावों में भी।
हार्दिक बधाई स्वीकार करें
क्या बात है आदरणीया माला झा जी, अच्छी लघुकथा आकार ली है, बहुत बहुत बधाई प्रेषित करता हूँ. आदरणीय सौरभ भईया की टिप प्रशंसनीय है.
‘बाबा’, सरकार जब हमारे लिए पुनर्वास और टाउनशिप की बात कर रही है तो ‘पनुन’ उसकी मुखालफ़त क्यों कर रही है? २५ साल हो गये आखिर क्या हासिल हुआ?आखिर कबतक हम यूँ ही बेघर-बार अपने पहचान के लिए भटकेंगे??
‘हम्म’, लगता है तू पनुन के मायने भूल गया है,पनुन का मतलब है ‘हमारे खुद का कश्मीर’ हम कश्मीरी पंडितो का अपना कश्मीर!
‘पुनर्वास’ ‘’टाउनशिप’’ आsssss थूउउउ!!
सरकारें जब हमारे बसे-बसाये घर को नही बचा सकीं,तो वो हमें छत क्या देंगी??
हमें अपना घर चाहिए! जहाँ अपना फैसला हम खुद कर सके और अपनी हिफ़ाजत के लिए हम किसी दुसरे के मोहताज न हों!जहाँ कोई दूसरा हमें फर्फान न सुनाएं!
‘‘शरणार्थी नही है हम’’ कश्मीर हमारे खून से सींची जमीन है,भीख में मिली ‘पहचान’ नही चाहिए हमें!!
‘मौलिक व् अप्रकाशित’
बहुत सुन्दर लघु कथा ..एक और क़ानून प्रशासन के दांवपेंचों पर कटाक्ष दूसरी और स्वाभिमान की लड़ाई अपनी खुद की पहचान को पुनर्जीवित करने की लड़ाई बहुत खूब ...हार्दिक बधाई कृष्णा भैया
आदरनीया rajesh kumari ज़ी रचना पर आपकी उपस्थिति सदैव प्रेरणास्पद होती है..लघुकथा पर आपकी सकारात्मक टिप्पणी पाकर रचनाकर्म सार्थक हो गया! हार्दिक आभार आदरनीया!सादर!
इस लघुकथा में सब कुछ है। अच्छा कथानक, सार्थक सन्देश और लगभग चुस्त शिल्प, किन्तु बात अगर इशारों में की जाती तो लघुकथा का असर कई गुणा बढ़ जाता। एक विशेष घटना अथवा वर्ग की बात करने का अर्थ होता है लघुकथा को एक संकीर्ण दायरे में बाांधना। जो कहा है, सार्थक है अत: बधाई प्रेषित है भाई कृष्णा मिश्रा जी।
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