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मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है

मजहब जिसने इंसानों को आपस में जोड़ा है 

आज उसी मजहब ने क्यूँ दिल इंसा का तोडा है 

कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर 

पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है 

जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें 

गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है 

राम नाम जिस पाहन पर वो सागर में उतराए 

डूब गया वो राम नाम के बिन जिसको छोड़ा है 

तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में 

जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है 

बड़े बड़े दिग्गजों शूरमा के तुम नाम गिनाते 

एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है 

मौलिक व अप्रकाशित 

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Comment by MAHIMA SHREE on July 12, 2015 at 5:17pm

कितनी सुंदर धरती है ये कितने सुंदर मंजर 

पर राहों में उल्फत की क्यूँ नफरत का रोड़ा है 

जिन की ख्वाइश धन दौलत दुनिया भर की हथिया लें 

गर समझें तो आज समझ लें ये जीवन थोडा है ...बेहद उम्दा...बहुत बधाई

Comment by विनय कुमार on July 8, 2015 at 6:35pm

// एक बता दो वक़्त की जिसने धारा को मोड़ा है // , वाह , वाह , बढ़िया ग़ज़ल हुई है , बधाई आदरणीय..

Comment by vijay nikore on July 8, 2015 at 6:20pm

अच्छी गज़ल के लिए बधाई।

Comment by shree suneel on July 8, 2015 at 6:16pm
तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में
जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है.. व्वाहह! ख़ूब!!
अच्छी प्रस्तुति आदरणीय अाशुतोष मिश्रा जी . बधाइयाँ आपको.
Comment by kanta roy on July 7, 2015 at 9:06am
तब तक चैन कहाँ पाया है इस इंसा ने जग में 
जब तक होकर बेलगाम दौड़ा मन का घोडा है........ मन की बेलगामी और चैन का बहुत ही सुंदर यह ताना बाना है । वक्त के धारों को मोडने वाले विरले ही सदियों में जन्म लेते है । वो हम जैसे नहीं , वो सारे मजहबों से परे होते है ॥ बधाई आपको शानदार शेरों से सजी इस बेहतरीन गजल के लिए आदरणीय डा. आशुतोष मिश्रा जी
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:40pm

आदरणीय मिथिलेश जी शंका के निवारण के लिए धन्यवाद ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 6, 2015 at 10:22pm
काफ़िया दुरुस्त है आशुतोष जी बस इस काफ़िया के लफ़्ज़ों की कमी के लिए टोटा प्रयुक्त किया था।
Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:15pm

आदरणीय जवाहर जी ..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया के लिए तहे दिल आभार सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:14pm

आदरणीय मिथिलेश जी ..रचना आपको पसंद आये मेरा प्रयास सार्थक हुआ ..काफिया का टोटा ..उर्दू  हिंदी में लिखने वाला मामला है या और कुछ ..हार्दिक धन्यवाद के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on July 6, 2015 at 10:10pm

आदरणीय पारी जी .रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से मैं उत्साहित महसूस कर रहा हूँ सादर 

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