For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पच्चईयाँ ( नाग पंचमी )

तीन दिन पहले से ही 

सच कहूँ तो एक हफ्ते पहले से ही 

पच्चईयाँ (नाग पंचमी) का 

इंतजार रहता था .... 

एक एक दिन किसी तरह 

से काटते हुये 

आखिर, पच्चईयाँ आ ही जाती थी 

पच्चईयाँ वाले दिन 

सुबह ही सुबह 

अम्मा पूरा घर 

धोती थी, हम सब को कपड़े 

पहनाती थी 

सुबह सुबह ही 

गली मे 

छोटे गुरु का बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो 

कहते हुये बच्चे नाग बाबा 

की फोटो बेचते थे 

हम वो खरीदकर 

बड़े करिने से घर के हर दरवाजे पे

रसोई घर मे 

चिपकाते थे 

अम्मा फिर दूध और खिल से

नाग बाबा की पूजा करती थी .... 
बड़ा मजा था पच्चियाँ का 

दोपहर को अम्मा 

दाल भरी पूड़ी बनाती थी 

शाम होते होते हम 

निकल पड़ते थे 

आखाडा की तरफ कुश्ती का आनंद 

लेने के लिए 

कसा हुआ शरीर, 

तेल  से चमचमाता हुये 

पहलवानों को देखकर 

मन रोमांचित हो जाता था 

क्या कहने थे 

पच्चईयाँ के 

क्या बात थी उन दिनों की 

आज कब नाग पंचमी आती है 

और कब गुजर जाती है 

पता ही नहीं चलता 

साँप तो आज भी है 

और कई तो आस्तीन के साँप भी है 

अब कोई नहीं 

बेचता उनकी फोटो ये कहते हुये

बड़े गुरु का छोटे गुरु का नाग लो भाई नाग लो 

जीवन तो गुजर ही रहा है

साँपों के बीच मे .... 

नागों के बीच मे... 

(मौलिक व अप्रकाशित )

Views: 607

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 8, 2015 at 1:35pm

आदरणीय Saurabh Pandey जी  धन्यवाद आपके आशीर्वचन का .... आभार ... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 1:13pm

// आपने जो सवाल करा है उसका मर्म मे समझ सकता हूँ ..... //

किन्तु आगे जो कुछ उत्तर के रूप में आपने कहा है, आदरणीय, वह यही कह रहा है कि आपने इस प्रश्न को किसी तरह से नहीं समझा है. और, आप आत्महंता के हश्र को प्राप्त हो गये.  अब आप वस्तुतः अध्ययन और वाचन करें, आदरणीय. 

आनन्द केलिए रचनाकर्म का होना ही आवश्यक है. लेकिन रचनाकर्म के नाम पर संयत अभिव्यक्तियों की उतनी ही दरकार होती है. अन्यथा वह किसी पाठक केलिए कष्ट हो जाती है. या फिर, उसे अपनी डायरी तक बचा कर रखें. ऐसा करने से किसी को क्यों कोई मना करेगा ? यह सही है, आप इस बात को अभी नहीं समझ पायेंगे. अन्यथा मेरे प्रश्न को ही समझ चुके होते.

आपने देखा आदरणीय, क्यो आपकी रचना पर इतने दिन होने के बावज़ूद कोई सदस्य नहीं आया है ?! ऐसा दो ही कारणों से होता है. या, तो रचना अत्यंत क्लिष्ट होती है. या, रचना अत्यंत सामान्य हुआ करती है. कहाँ तक आप इन विन्दुओ पर विचार करते, अपनी रचनाओं के स्तर और उसकी गहनता की बात पर ध्यान-मनन करते. उसकी जगह आप किसी की ’विद्वता’ और ’लचरता’ का राग लेकर बैठ गये, सदस्यता को छोड़ने-छुड़ाने की बात करने लगे. ऐसा नहीं है, आदरणीय, यहाँ कोई ग्रुप बना है जो रचनाकारों के नाम से टिप्पणी देता है. ऐसा कत्तई मत सोचियेगा.

अगर सोचना है तो मेरे प्रश्न पर पुनः सोचियेगा.
सादर

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 8, 2015 at 7:28am

सर्वप्रथम आदरणीय Saurabh Pandey सर आभार कि आपने मेरी रचना पढ़ी और मुझसे उत्साहित करा... 

महोदय मैं कोई कवि नहीं हूँ न ही विद्वान हूँ ।  कोई मुझे क्यूँ पढ़ेगा हो सकता है कि मे इस काबिल ही न हूँ ... 
आप सभी का ये अहसान है कि मैं इस मंच पर हूँ .... उसके लिए भी आभार ....

आपने जो सवाल करा है उसका मर्म मे समझ सकता हूँ ..... 

मगर आपका प्रश्न मुझे ये कहने को मजबूर कर रहा है, कि मैं आज अपने मन के उद्गार को व्यक्त करूँ ... महोदय इससे पूर्व भी मुझे एक सम्मानित सदस्य ने ये टिप्पणी दी थी कि क्या मैंने किसी कि रचना पढ़ी है ? 

महोदय जी हाँ मैं आज जवाब देता हूँ जी जरूर पढ़ी है और जब भी समय मिलता है तो अवश्य पढ़ता हूँ ... मगर टिप्पणी नहीं करता उसका भी कारण है ... मैं पिछले कई वर्षों से आपका सदस्य हूँ .... और मैंने कई दोस्तों को अपनी तरफ से मित्रता प्रार्थना भेजी मगर आप सभी बहुत विद्वान जन है आप सभी मेरे जैसे जाहिल और मंदबुद्धि से मित्रता क्यूँ करें .... आप सभी सदजन को मेरा प्रणाम और नमन .... 

आप चाहे तो मुझे आज ही और अभी ही  मुझे हटा सकते हैं ... मुझे कोई आपत्ति नहीं है... 

ये बहुत ही अच्छा मंच है और इस मंच को मेरी तरफ से बहुत शुभकामनायें ....  और हाँ मैं बस लिख देता हूँ कुछ भी और बिना समझे इसकी चिंता बिलकुल नहीं करता कि कोई पढ़ेगा या नहीं टिप्पणी देगा कि नहीं... 

लिख कर मुझे आत्मशांती मिलती है और वो हमेशा करता रहूँगा यहाँ नहीं तो कहीं और ... दुनिया बहुत छोटी है आज नहीं तो कल कोई तो मिलेगा.... जो पढ़ेगा ... जो मित्रता स्वीकारेगा ... 

पुनः सादर प्रणाम 

Comment by Amod Kumar Srivastava on July 8, 2015 at 7:12am

आदरणीय Kanta Roy जी आपका हार्दिक आभार  टिप्पणी के लिए .... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 8, 2015 at 1:43am

सब तो ठीक है, मगर, आदरणीय, कोई आपकी रचना क्यों पढ़े ? इसकेलिए आपके पास क्या तर्क हैं ?
नागपंचमी पर प्रस्तुति हेतु शुभकामनाएँ

Comment by kanta roy on June 27, 2015 at 12:42pm
जीवन तो गुजर ही रहा है
साँपों के बीच मे .... 
नागों के बीच मे........... सच में बहुत बडी़ बात कही है यह आपने आदरणीय अमोद कुमार जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service