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असुरक्षित गर्भ (लघुकथा)

वृक्ष ने बादलों से पूछा, "हर साल की तरह इस बार कोयल को साथ क्यों नहीं लाये, उसकी कूक के बिना बरसात अच्छी नहीं लगेगी?"

"तुम्हारी जिस डाली पर वो बैठती थी, उसके ऊपर के पत्ते झड़ गये हैं, वो भीग कर मर जाये, इससे अच्छा आये ही नहीं|"

पास ही घर में एक गर्भवती पलंग पर अधलेटी नम आँखों से अपने गर्भ परिक्षण के परिणाम का इंतजार कर रही थी|

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by Dr. Chandresh Kumar Chhatlani on July 26, 2015 at 2:33pm

आप सभी सुधीजनों को रचना को सराहने  के लिये हृदय से आभारी हूँ, कृपया ऐसे ही स्नेह बनाएं रखें !!

Comment by Archana Tripathi on July 16, 2015 at 1:53am
प्रतिको का इस्तेमाल कर बहुत ही मार्मिक लघुकथा लिखी अप्पने चन्द्रेश जी हार्दिक बधाई आपको ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 1:19am

आदरणीय चंद्रेश जी, बहुत मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने, रचना अपने मर्म को अभिव्यक्त करने में सफल है. बहुत बहुत बधाई इस प्रस्तुति पर.

Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 10:04pm
बहुत मार्मिक कथा जो हृदय को वेधति चली गई।हार्दिक बधाई आ.चन्द्रेश जी।
Comment by neha agarwal on July 15, 2015 at 8:18pm
उफ क्या कहूँ भाई।

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