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बस इतनी सी मेहर रखना/लक्ष्य “अंदाज़

    बस इतनी सी मेहर रखना

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      (लक्ष्य “अंदाज़”)

हम फकीरों से घर की उम्मीद न इधर करना !

ढल जाये शाम तो दरख्त तले भी बसर करना !!

राहे-उल्फत में तुम हवा के परों पर सवार हो ,

अहले-ज़मीं हैं हम ,बस सड़क पे सफ़र करना !!

फूल मुहब्बत के तारीखे-शुआओं से जल गए ,

कोंपलों की आस में अब भी क्यूँ शज़र रखना !!

तुम्हारी हर दुआ कुबूल है उस इलाही के दर ,

दुआओं में याद रखना बस इतनी मेहर रखना !!

रिसाले की दुनिया में यूँ तो जी लिए “अंदाज़”,

पर लाजिमी था आपकी बेरुखी का असर करना !!

कश्ती जब साहिलों से जा मिले  खबर करना !!

हमको तो अब आलमे-तन्हाई में गुजर करना !!

मौलिक एवं अप्रकाशित

……© Dr.L.K. SHARMA

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 16, 2015 at 5:36am

आदरणीय लक्ष्मी कांत भाई , आपने विधा का नाम नही दिया  है तो इसी विधा के लिहाज़ आपकी रचना पढ़ी नही जा सकती । भाव बहुत अच्छे हैं आपकी द्विपदियों के , गेयता और शब्द संयोजन मे कमी ज़रूर है । आपको दिल से बधाइयाँ रचना के लिये । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 3:48am

आदरणीय डॉ लक्ष्मीकांत जी, आपकी किसी पहली रचना से गुजर रहा हूँ. प्रत्येक पंक्ति सुन्दर भावों से सजी है. बहुत सुन्दर रचना हुई है. आदरणीया राजेश दीदी के सुझाव पर अवश्य ध्यान दीजियेगा. इस प्रस्तुति पर ढेर सारी बधाई और शुभकामनायें ,,,,सादर 

Comment by kanta roy on July 15, 2015 at 12:05pm
बहुत सुंदर अंदाज़ हुआ है आदरणीय डा. लक्ष्मीकांत शर्मा जी ..... बधाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on July 15, 2015 at 10:29am

सुन्दर प्रस्तुति है इसे ग़ज़ल में ढाल कर लिखेंगे  तो सोने पे सुहागा हो जाएगा बहरहाल दाद क़ुबूल कीजिये डॉ० लक्ष्मी कांत जी 

कृपया ध्यान दे...

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