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गुस्से से उबल रहे थे चौहान जी , प्रदेश के कई भागों से दंगे की खबरे आ रहीं थी | उनको लग रहा था कि काश उनको मौका मिले तो वो उन सब को सबक सिखा दें | अचानक उनको याद आया और पूछा " रामलीला की सारी तैयारी हो गयी , रावण का पुतला बन गया कि नहीं ?
" हाँ , पुतला बन के आ गया है | वो पैसे लेने आया है , दे दीजिये "|
" ठीक है , भेज दो उसको अंदर "|
" कितना हुआ रहीम ?
" अरे जितना देना हो , दे दीजिये | इस काम के पैसे का भी मोल भाव करूँगा "|
रहीम की बात सुनकर उनको कुछ तो हुआ और यकबयक उनके हाथों ने रहीम की हथेली को कस कर पकड़ लिया |
मौलिक एवम अप्रकाशित

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Comment by विनय कुमार on July 23, 2015 at 12:39pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया डॉ प्राची सिंह जी , आपको लघुकथा ने प्रभावित किया , सादर धन्यवाद आपका .

Comment by विनय कुमार on July 23, 2015 at 12:38pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय जवाहर लाल सिंह जी.

Comment by विनय कुमार on July 23, 2015 at 12:38pm

दरअसल ये गंगा जमुनी तहज़ीब की जड़ें इतनी गहरी हैं कि छोटी मोटी घटनाएँ इसको हिला नहीं सकतीं | आपने बिलकुल सही समझा आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी..


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Comment by Dr.Prachi Singh on July 23, 2015 at 7:19am

पूर्वाग्रह ग्रस्त हो कर मन में समाज के किसी भी समुदाय के प्रति कटुका की भावना रखना सर्वथा अनुचित है.

आपसी समन्वय और भाईचारा राष्ट्र-चेतना में अन्तर्प्रवाहित है जिसे स्वीकार करने के लिए कहानी के पात्र चौहान साहब का ह्रदय खुला तो सही..:))

सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on July 22, 2015 at 10:39pm

बहुत ही सुन्दर पेशकश ...धर्म के नाम पर दंगा फैलानेवालों के लिए सुन्दर सन्देश!

Comment by maharshi tripathi on July 22, 2015 at 7:40pm

आ. vinaya kumar singh जी ,छ्माप्रार्थी हूँ पर आखिरी लाइन समझ नही पा रहा हूँ ,कृपया अर्थ समझाये ?क्या उन्हों ने रहीम से हाथ्  मिलाकर एकता का सन्देश दिया ?

Comment by विनय कुमार on July 21, 2015 at 5:35pm

बहुत बहुत आभार आदरणीया नीता कसार जी ..

Comment by Nita Kasar on July 21, 2015 at 5:21pm
भगवान से डरना ज़रूरी है धर्मभीरू मन यही आकर इंसानियत का झंडा बुलंद करता है ।बधाई स्वीकार करें आद०विनय कुमार सिंह जी ।
Comment by TEJ VEER SINGH on July 21, 2015 at 3:44pm

आदरणीय  विनय जी,बहुत ही उमदा लघुकथा!धर्म कर्म के मामले में कैसी सौदेबाज़ी!!हार्दिक बधाई!

Comment by विनय कुमार on July 21, 2015 at 12:35pm

बहुत बहुत आभार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार सिंह जी.. 

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