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यह रचना लघुकथा की परिधि में नहीं आती भाई सचिन देव जी। क्योंकि लघुकथा एक एकांगी इकहरी विधा है, जिसमे किसी एक विशेष क्षण को मेग्नीफाई कर के उभारा जाता है। एक से अधिक दृश्यों का समावेश सिर्फ कहानी में हो सकता है। , लघुकथा में यह वर्जित है।
आ. योगराज जी, लघुकथा के बारे मैं इस अति महत्त्वपूर्ण तथ्य की जानकारी के लिए आपका हार्दिक आभार !
आ. नीता जी प्रोत्साहन के लिए हार्दिक धन्यवाद आपका !
अच्छी बात की ओर इशारा किया आपने इस रचना के माध्यम से। यह लघुकथा की श्रेणी में निश्चित ही नहीं आती किन्तु कैसे घर में ही बातों को तोड़ मरोड़ कर झूठ बोलने की ट्रेनिंग दी जाती है, इसका जीता जागता उदाहरण है यह रचना। बधाई आ.सचिन देव जी।
आ. डॉ. नीरज शर्मा जी, उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका !
आ. कांता जी, कथा भाव आपको अच्छा लगा उसके लिए आपका ह्रदय से आभार ! आपने सही कहा इस आयोजन मैं जो आज हमने सीखा उससे भविष्य मैं रचनाकर्म करते हुए, निश्चित ही तकनीकी खामियों को दूर करने मैं मदद मिलेगी आपका दिल से आभार आदरणीया !
बहुत अच्छा प्रयास हुआ है आदरणीय सचिन जी। बाकी योगराज जी बता ही चुके हैं। प्रयास के लिए दाद कुबूल कीजिए।
आदरणीय सचिन भाई जी, इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
बहुत ही बढ़िया सन्देश दिया है आदरणीय सचिन देव जी! माँ ही प्रथम गुरु होती है.... सादर बधाई!
rachana bahut achchhi hai. bas jyada lambi ho gai
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