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बुनियाद का पत्थर
'दादाजी ऐसा क्यों होता है की जिनपर हम सबसे ज़्यादा यक़ीन करते हैं वो ही हमारे जज़्बात से खेलता है.' रुंधे हुए गले से अशरफ ने कहा.
दादाजी ने पूछा , 'क्या हुआ अशरफ बेटा इतने मायूस क्यों हो?'
'मेरा दोस्ती से यक़ीन ख़त्म हो गया है.'
'बेटा हुआ क्या है, कुछ बताओगे?'
'अमजद और मैंने मिलकर उम्मीदे इंसानियत नाम की तंज़ीम बनायीं थी, आपको तो पता है न.'
'हाँ बनायीं तो थी और तुम अच्छा काम भी कर रहे हो. अरे हाँ कल तो तुम्हारा एक प्रोग्राम भी था सिटी सेंटर में. अब इतने परेशान क्यों हो.'
'दादाजी हम सबने मिलकर खूब मेहनत को थी, दिन रात कर दिया था इस प्रोग्राम के लिए. मगर आज के अखबार की खबर में कहीं मेरा नाम ही नहीं है. उस अमजद के बच्चे ने खुद को संयोजक लिखा है, कितने काम मैं करता हूँ. पिछले एक साल से मैंने करियर की तरफ भी ध्यान नहीं दिया और आज ....' कहते हुए अशरफ की आँखें नाम हो गयीं.
'हम्म....' दादाजी ने एक लम्बी साँस ली और बोले:
'अशरफ बेटा एक बात बताओ. तुम इस संस्था के संस्थापक सदस्य हो न?'
'जी दादा जी. इसलिए तो और गुस्सा आता है मुझे.'
समझाते हुए दादाजी ने आगे कहा:
'अशरफ बेटा संस्थापक सदस्य किसी संस्था की बुनियाद में लगे पत्थर की तरह होता है. तुम भी नींव के पत्थर बनकर रहो. तुमसे इमारत की मज़बूती रहेगी. तुम दिखाई देने की ख्वाहिश मत पालो.'
.....और अशरफ के तड़पते दिल को क़रार मिल ही गया.
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
आज के जो दिखता है वो बिकता है वाले दौर में नींव की इंट बनने की राय देने वाला कोई बहुत अधिक समझदार व्यक्ति ही हो सकता है क्योंकि भौतिकवाद में बुनियाद के पत्थर को केवल सपना सच होने के अलावा और कुछ नहीं मिलता, इससे संतुष्ट हो जाना भी बड़ी बात है| आदरणीय इमरान खान जी, इस विषय पर अपनी रचना कहने हेतु बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय इमरान जी बढ़िया लघुकथा, बढ़िया सीख. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई
कांता जी मैं आपका आभारी हूँ बुनियाद की बुनियाद आपको पसंद आई. शुक्रिया आपका
वाह आ० इमरान खान जी बहुत मज़बूत कहानी बधाई स्वीकार करें
अक्सर बहुत से लोग परदे के पीछे रहकर किसी आयोजन को सफल बनाते हैं व वही मजबूत रीढ़ होते हैं। सुन्दरता से उकेरा आपने इस भाव को । बहुत बहुत बधाई आ. इमरान खान साहब।
डॉ. नीरज साहिबा ख्याल के अनुमोदन के लिए आपका शुक्रिया.
बहुत ही आला दर्जे की लघुकथा ही भाई इमरान जी, ऐसे अनसंग हीरो ही एक मज़बूत बुनियाद की तामीर कर सकते हैं I लेकिन ज़ालिम इतिहास उन्हें सिवाय गुमनामी के और कुछ नहीं देता I लघुकथा ने अंदर तक प्रभावित किया है, मेरी दिली मुबारकबाद स्वीकारें I
//.....और अशरफ के तड़पते दिल को क़रार मिल ही गया.//
यह पंक्ति गैर ज़रूरी है I
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