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आभार आ nita kasar जी
आ मीना पाण्डेय जी बहुत ही जोरदार लघुकथा प्रस्तुत की है आप ने .
आभार आ ओम प्रकाश जी
आदरणीया मीना जी, शानदार लघुकथा हुई है. //यह सुनकर उसकी आँखे खुल गयी ,मन का सारा गुबार धुंआ हो उड़ने सा लगा I अचानक ही पुरानी दीवारोँ में संस्कारो की चमक के पार ,उसे अपने भविष्य की मजबूत नींव नजर आने लगी थी// इन पंक्तियों का प्रभाव इतना गहरा है कि पाठक उसमे डूब जाता है. संस्कारों का प्रतिफलन सकारात्मक रूप में सामने आता है तो विश्वास की बुनियाद और मज़बूत होती है. इस शानदार लघुकथा की प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई ...सादर
आभार आ मिथिलेश वामनकर जी
बड़ों से ही संस्कार बच्चों में आते हैं आपकी लघु कथा बखूबी दर्शा रही है बेहतरीन संस्कार एवं मजबूत बुनियाद को बहुत अच्छी लघु कथा हार्दिक बधाई आपको मीना जी
माँ-बाप का आचरण एक आईने की तरह होता है जिसमे बच्चों के भविष्य का प्रतिबिम्ब बनता है .बहुत खूब आदरणीय मीना जी .
बच्चों में उत्तम संस्कार केवल स्वयं के ही नहीं वरन देश और समाज के भविष्य की भी मज़बूत बुनियाद है| हार्दिक बधाई मीना जी इस सार्थक सकारात्मक रचना के लिये|
बच्चे अगर परिवार के संस्कारों को समझने लगे तो समझों बुनियाद पक्की हो रही है | अति सुंदर लघु कथा हुई है | बहुत बहुत बधाई
आभार आ लक्ष्मण रामानुज लडीवाला जी
(मौलिक और अप्रकाशित)
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