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सदा मुझे लेखन के प्रति सचेत कर मेरा हौसला बढाने के लिये तहेदिल से आपको आभार आदरणीय मदनलाल श्रीमाली जी ।
सुन्दरता से विषय को परिभाषित करती लघुकथा आ. कान्ता जी। दिली बधाई स्वीकार करें। कोई कितना ही बदनाम क्यों न हो यदि हमारे साथ उसका व्यवहार अच्छा है तो वह हमारे लिए अच्छा व्यक्ति है।
कुछ वाक्यों की ओर ध्यान दिलाना चाहूंगी।
कौन सा अस्पताल --- कौन से अस्पताल
उसके अपनेपन से भरे बोल ने उसकी लडखडाहट को जैसे सम्बल दे गये ---उसके अपनेपन से भरे बोल उसकी लडखडाहट को जैसे सम्बल दे गये ।
मन में होश - भरोस --- वाक्य प्रयोग उचित नहीं है, ऐसा कोई शब्द प्रयोग नहीं होता हिन्दी में। मन में भरोसा हो सकता है, पर मन के लिए होश ठीक नहीं है।
आप अनजान होकर मेरे पति की जान बचाये है --आपने अनजान होकर भी मेरे पति की जान बचाई है ।/ सादर
बहुत सुंदर कहानी कांता जी बहुत बहुत बधाई स्वीकारें ..बुराई का दाग एक बार लग जाय तो कभी छूटता नहीं..पुन: बधाई
सजायाफ्ता मुजरिम न जाने किन हालातों के कारण ये तमगा लगा उसके माथे पर ..व्यक्ति का व्यवहार उसका चरित्र वक़्त पड़ने पर सामने आता है इस दुनिया में लोग किसी विशेष व्यक्ति को किसी विशेष चश्मे से ही देखना शुरू कर देते हैं लघु कथा की घटना इसी बात पर बल देती है कि एक अपराधी भी संवेदन शील हो सकता है |बहुत अच्छी लघु कथा आ० कांता जी दिल से बधाई लीजिये |
बिलकुल सही कह रहे है आप आदरणीय वीर मेहता जी । कथा पर मार्गदर्शन युक्त प्रतिक्रया सदा मेरे लिये अनमोल हुआ करती है जिसके फलस्वरूप लेखन के निर्माणाधीनावस्था में मैं सचेत ह जाया करती हूँ । मै आभार व्यक्त करती हूँ इस हौसला वर्धन प्रतिक्रिया के लिये आप सभी स-लेखकों का । सादर
अच्छी लगी कहानी ...
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