For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

12112 12112 12112 12112
पलट के फिर आयेंगी वो महक सबा वो सहर कभी न कभी
उदास न हो कि होगा हर इक दुआ का असर कभी न कभी

ये राह बहुत तवील सही, तू तन्हा ओ बेक़रार सही
मगर तुझे याद आयेगी ये घड़ी ये सफ़र कभी न कभी

यूँ हाथ के आबलों पे न जा, ज़बीं से टपकती बूंदें न देख
दिखेगा ज़रूर दुनिया को भी, तेरा ये हुनर कभी न कभी

पिघलने लगेंगे संगे-महक, तेरे तबो-ताब से किसी दिन
निकाल के लायेंगे यही पत्थरों से नहर कभी न कभी

फ़लक़ ये ज़मीन आबो हवा, किसी की ये मिल्कियत तो नहीं
यक़ीं है मुझे कि आयेगा सच सभी को नज़र कभी न कभी

(संगे महक= कसौटी का पत्थर)

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 774

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 6:30am
आदरणीय डॉ गोपाल नारायण श्रीवास्तव सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 6:29am
आदरणीय मिथिलेश जी आपने सही कहा ये इस बह्र में मेरी दूसरी ग़ज़ल है पिछली ग़ज़ल से पहले मैंने इस ग़ज़ल को शुरू किया था पर ये मुकम्मल बाद में हुआ। मैं सिर्फ़ बह्र निभाने की कोशिश करता हूँ यहाँ भी मैंने यही किया है।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 24, 2015 at 6:24am
आदरणीय कृष्ण मिश्रा जी आपका हार्दिक आभार।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 23, 2015 at 8:22pm

आ० शिज्जू जी  वाह  इस कठिन बह्र को कितना  अच्छा निभाया -- बिलकुल उस्तादों जैसी शायरी . मैं  तो कायल हो गया हूँ . सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 10:10pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी इस बह्र में शायद ये दूसरी ग़ज़ल है आपकी. इसकी लय पकड़ आई हो या कोई ग़ज़ल किसी ने गाई हो तो जुरूर बताइयेगा. सादर 

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on September 22, 2015 at 10:01pm
लाजव़ाब लाजव़ाब! क्या कहने आ० शिज्जू सर जिंदाबाद गज़ल हुयी है..हर शेर मुक़म्मल..उस्ताद स्तर का!तहेदिल से दाद ही दाद पेश है! सादर!

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 22, 2015 at 9:33pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय मिथिलेशजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 22, 2015 at 3:32pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी, बह्र-ए-वाफिर में बढ़िया ग़ज़ल हुई है. शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं. 

इस बह्र की लय नहीं पकड़ पाया हूँ इसलिए मैंने भी आदरणीय रवि जी जैसे इसके कथ्‍य का लुत्‍फ उठाया है. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 22, 2015 at 3:26pm
आदरणीय रवि शुक्लाजी हार्दिक आभार, ये सात मूल बह्रों में से एक बह्रे वाफ़िर है

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 22, 2015 at 3:24pm
आदरणीय मनोजजी आपका बहुत बहुत शुक्रिया

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
2 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
2 hours ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
2 hours ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
3 hours ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
4 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
4 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
4 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय सुशिल भाई , अच्छी दोहा वली की रचना की है , हार्दिक बधाई "
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरनीय आजी भाई , अच्छी ग़ज़ल कही है हार्दिक बधाई ग़ज़ल के लिए "
8 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service