For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नैतिकता की गिनती होती है सामानों में- ग़ज़ल

22 22 22 22 22 22 2
नैतिकता की गिनती होती है सामानों में
व्यापार बना है अब रिश्ता हम इंसानों में

सिमट गई सारी दुनिया मोबाइल में लेकिन
बढ़ गई दूरी घर के बैठक औ’ दालानों में

छो़ड़ धरा उड़नेवालों याद रहे तुमको ये
शाख नहीं होती सुस्ताने को अस्मानों में

आकांक्षायें भूल गईं हैं रिश्तों को अब तो
स्वार्थ छुपा दिखता है लोगों की मुस्कानों में

मादा जिस्मों को तकती आवारा नज़रों को
धर्मों के रक्षक रक्खेंगे किन पैमानों में

अपनी ओछी नज़रों को ढांके पहले तो वो
जो दोष निकाले है नारी के परिधानों में

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 516

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 19, 2015 at 4:00pm

आदरणीय शिज्जु भाई , सभी अश आर जीवन की कुछ सच्चाइयाँ बयान कर रहे हैं , बहुत सुन्दर गज़ल हुई है , दिली बधाइयाँ आपको ।
आकांक्षायें भूल गईं हैं रिश्तों को अब तो
स्वार्थ छुपा दिखता है लोगों की मुस्कानों में --  ये शे र बहुत अच्छा लगा ! आपको पुनः बधाई ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 17, 2015 at 10:16pm
आदरणीय अहसास जी आप सही पढ़ रहे हैं। इस बह्र में 22 को छूट के अनुसार 121 211 112 भी किया जा सकता है। बशर्ते कोई शब्द जिसका वज्न 21 या 12 है उसके बाद वाले शब्द का वज्न भी 12 या21 हो।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 17, 2015 at 10:10pm
ग़ज़ल की सराहना के लिये आप सभी का हार्दिक आभार
Comment by मनोज अहसास on September 17, 2015 at 9:38pm
सिमट गई सारी दुनिया मोबाइल में लेकिन
बढ़ गई दूरी घर के बैठक औ’ दालानों में

सर
मुझे इस शेर की मात्रा गणना में समस्या लग रही है
जैसे सिमट को मैं 12 पढ़ रहा हूँ
गई को 12
कृपिया निर्देशित कर दें
सादर
Comment by मनोज अहसास on September 17, 2015 at 8:41pm
इस खूबसूरत हसीन ग़ज़ल के लिए दिल से दाद सर
सादर

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on September 17, 2015 at 5:08pm

आदरणीय शिज्जु भाई जी बढ़िया ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं 

Comment by जयनित कुमार मेहता on September 17, 2015 at 3:58pm

यथार्थ से जुडी रचना, बधाई स्वीकारें..!

Comment by Ravi Shukla on September 17, 2015 at 2:07pm
आदरणीय शिज्जु शकूर जी आदाब शानदार ग़ज़ल के लिए दाद हाज़िर है । सोशल मीडिया के दुष्परिणामो को रेखांकित करता है आपका ये शेर
सिमट गई है सारी दुनिया मोबाईल में लेकिन
बढ़ गई है दूरी घर के बैठक औ दालानों में
दिली दाद क़ुबूल करें ।
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 17, 2015 at 1:32pm

आ० शिज्जू जी

आपकी कलम से एक और  अच्छी एवं मुबारक गजल

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी सादर, प्रदत्त चित्रानुसार अच्छी घनाक्षरी रची है. गेयता के लिए अभी और…"
17 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव साहब सादर, प्रदत्त चित्र को परिभाषित करती सुन्दर प्रस्तुतियाँ हैं…"
17 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी   दिखती  न  थाह  कहीं, राह  कहीं  और  कोई,…"
18 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  रचना की प्रशंसा  के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद आभार|"
18 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभाजी,  घनाक्षरी के विधान  एवं चित्र के अनुरूप हैं चारों पंक्तियाँ| …"
18 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश जी //नदियों का भिन्न रंग, बहने का भिन्न ढंग, एक शांत एक तेज, दोनों में खो…"
20 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मैं प्रथम तू बाद में,वाद और विवाद में,क्या धरा कुछ  सोचिए,मीन मेख भाव में धार जल की शांत है,या…"
21 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"चित्रोक्त भाव सहित मनहरण घनाक्षरी छंद प्रिय की मनुहार थी, धरा ने श्रृंगार किया, उतरा मधुमास जो,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"मनहरण घनाक्षरी छंद ++++++++++++++++++ कुंभ उनको जाना है, पुन्य जिनको पाना है, लाखों पहुँचे प्रयाग,…"
yesterday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मंच संचालक , पोस्ट कुछ देर बाद  स्वतः  डिलीट क्यों हो रहा है |"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . जीत - हार

दोहा सप्तक. . . जीत -हार माना जीवन को नहीं, अच्छी लगती हार । संग जीत के हार से, जीवन का शृंगार…See More
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 164 in the group चित्र से काव्य तक
"आयोजन में आपका हार्दिक स्वागत है "
Friday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service