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प्रदत्त विषय को सार्थक करती लघु कथा , हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आदरणीय शेख शहजाद जी
प्रदत्त विषय पर अच्छी कथा..और भी अच्छी हो सकती थी आ० उस्मानी जी ... बात को कम शब्दों मे सारगर्भित ढंग से कहने का प्रयास करें...लघुकथा संक्षेप में कहना मांगती है... प्रयास बहुत अच्छा बहुत शुभकामनाएँ.
हार्दिक बधाई आदरणीय शेख उस्मानी जी,आधुनिक समाज में नैतिकता के क्या मायने हैं, इस पर अच्छा प्रहार करती बेहतर लघुकथा!
वही तो आ० उस्मानी जी, लघुकथा के लिए भारी भारी साहित्यिक शब्द नहीं खोजे जाते... लघुकथा में सहज प्रवाह होता है। आम बोलचाल की भाषा में बात कहना ज्यादा अच्छा होता बजाय उसे क्लिष्ठ बनाने के। मंच पर आपने और कथाओं पर गुनी जन की टिप्पणियाँ देखी होगी। भाषा की सादगी लघुकथा का गुण है ।
सादर
// वास्तव में संवाद को कसने की कोशिश करता रहा लेकिन सही साहित्यिक शब्द/वाक्य चयन नहीं कर पाया //
इस पंक्ति से क्या तात्पर्य है आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानीजी ?
भाई शेख शहजाद उस्मानी जी, प्रदत्त विषय को अपनी इस लघुकथा के माध्यम से परिभाषित करने का सद्प्रयास हुआ है, जिस हेतु आपको हार्दिक बधाई देता हूँ ! जैसा कि पहले आ० सीमा सिंह जी ने इशारा भी किया है कि लघुकथा में अभी भी सम्पादन और परिमार्जन की गुंजायश है ! ज़रा देखें:
//नाराज़ त्रिपाठी जी क्रोध के आवेग में भूल गये कि उनके पैंतीस वर्षीय ज्येष्ठ पुत्र, विनोद के ससुराल पक्ष के कुछ मेहमान भी वहां बैठे हुए हैं और लगे हमेशा की तरह उसे डांटने फटकारने- "//
यहाँ ज्येष्ठ पुत्र कहने से ही बात बन रही थी, उम्र 35 की थी कि 38 की इसका ज़िक्र ज़रूरी नहीं था I इसी तरह ही घटना के वक़्त उसके ससुराल वालों की मौजूदगी बताने की भी कोई तुक मेरी समझ में नहीं आई !
बहरहाल, यदि यह कथा ये नाचीज़ लिखता तो अंतिम पंक्तियाँ (बदल कर) या तो विनोद की माँ से बुलवाता या फिर उसकी पत्नी से ! ताकि उन महिलायों के अन्दर का गुबार भी उभर कर सामने आता ! क्योंकि विनोद की बेरोज़गारी से दोनों महिलाएं भी तो परेशान होंगी न ?
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