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लघुकथा अच्छी है आ० सीमा सिंह जी, लेकिन इस विषय पर मिलती जुलती बहुत सी कहानियां लिखी जा चुकी हैं I बहरहाल प्रतिभागिता हेतु हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें I
जोर का झटका लगा...स्वाभिमान को ठेस लगती है तो ऐसे ही हालात बनते है .. सफल लघुकथा ........... हार्दिक बधाई आदरणीया सीमाजी
आदरणीय सीमा जी, विषय को सार्थक करती इस सारगर्भित प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक शुभकामनाएं ।
ग़रीब की हाय और पीड़ित की आह की तासीर बहुत ही मारक हुआ करती है. चाचा-चाची का परिवार सही कर रहा है या नहीं इस पर तो चर्चा क्या करना क्यों कि ऐसी कई कहानियाँ सामने आ चुकी हैं. लेकिन किसी मनस के दमन की पराकाष्ठा हो जाती है तो उस मनस का जो स्वरूप सामने आता है वह सर्वसमाही नहीं होता.
लेकिन यह भी उतना ही सही है कि सामान्य परिस्थितियों में आकर, अर्थात समय के बदलते ही पीड़ित का व्यवहार भी परपीड़क हो जाता देखा गया है. ऐसा मैं इस लघुकथा के मात्र क्षेपक के तौर पर् कह रहा हूँ.
शुभेच्छाएँ
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