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तहे दिल से आभार आदरणीय जानकी वाही जी
प्रत्युत्तर - ( लघुकथा )
दूल्हे के बाप ने कन्या के पिता से फ़ेरे से दस मिनिट पहले नयी कार की मांग कर दी! कार दो या कीमत दो तभी फ़ेरे पडेंगे!माहौल तनावपूर्ण हो गया!कन्यापक्ष वर पक्ष को समझाने में लग गया!
मजे की बात यह थी कि यह शादी लडका और लडकी के प्यार के कारण हो रही थी!इसलिये लडकी बार बार घूंघट से लडके की तरफ़ झांक रही थी कि वह कुछ बोले!पर लडका तो बुत बना बैठा था!
आखिरकार लडकी को घूंघट हटाना पडा और दुल्हे से बोली,"राजीव,तुम चुप क्यों हो, अपने पिता को समझाओ"!
"नहीं रजनी, मैं इस मामले में पिता को कुछ नहीं कह सकता क्योंकि उन्होंने मुझे पहले ही कहा था कि शादी तुम्हारी पसंद की लडकी से ही होगी पर बाकी शर्तें हमारी होंगी और फ़िर यह सब तो तुम्हारी ही सुख सुविधा के लिये मांगा है "!
"ओह यह बात है, यदि मुझे अपने पिता की दी हुई चीजों मे ही सुख भोगना है तो मै पिताजी के घर ही खुश हूं तुम इसी वक्त अपने लालची बाप की उंगली पकडो और मेरे घर से निकल जाओ, मुझे नहीं चाहिये तुम्हारे जैसा दब्बू दूल्हा"!
मौलिक व अप्रकाशित
वाह ,पिता की दी हुई चीज़ों से ही सुख भोगना है तो पिता के घर में ही क्यों न रहा जाए , लालचियों पे कटाक्ष करती सार्थक लघु कथा बधाई आपको आदरणीय
हार्दिक आभार आदरणीय प्रतिभा जी!
सशक्त नारी का सार्थक कदम. सार्थक लघुकथा सर.
हार्दिक आभार आदरणीय श्रद्धा जी!
वाह्ह सही प्रतिउत्तर --यदि मुझे अपने पिता की दी हुई चीजों मे ही सुख भोगना है तो मै पिताजी के घर ही खुश हूं तुम--ये पंक्ति लघु कथा को बहुत ऊँचाई पर ले जाती है बहुत- बहुत बधाई आ० तेजवीर सिंह जी.
हार्दिक आभार आदरणीय राजेश कुमारी जी!
हार्दिक आभार आदरणीय ओमप्रकाश जी !
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