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"अनपढ़-गंवार" - [लघु कथा -14]

अपनी सास और जेठ-जिठानी से पिंड छुड़ाने के बाद, खुद को नये ज़माने की कहने वाली मात्र बारहवीं पास छोटी बहू काजल अब काफी संतुष्ट थी। बेटे को दूध पिलाने के लिए पति को राजी कर एक बकरी भी अब उसने पाल ली थी। गांव की एक लड़की से हर रोज़ की तरह घर की साफ-सफाई और लीपा-पोती करवाने के बाद आज काजल भोजन पकाने की तैयारी कर ही रही थी कि पति की ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ सुनाई दी। आज फिर पड़ोसी से झगड़ा हो गया था। बेटे को वहीं रसोई में छोड़ फुर्ती से वह बाहर की ओर भागी। जैसे-तैसे झगड़ा शांत कराकर जब वापस रसोई में लौटी तो नज़ारा देखकर चौंक गयी। सफाई पसंद उसकी बकरी रसोई में ही अपने मेमने को दूध पिला रही थी, और गोबर-मिट्टी से हाथ सान कर बेटा औंधा सा लेटकर स्तनपान करते मेमने को बड़े कौतूहल से निहार रहा था। यह दृश्य उसे पुनः कुछ सोचने को विवश कर रहा था कि तभी पड़ोसन घर में घुसते हुये बोली- " क्यों री काजल, आज फिर तूने मेरे आदमी को उल्टा-सीधा कहा ! "

"हम नहीं लड़ाते जुबान गंवारों से, तेरा पति ही उनसे उलझ रहा था।"

"देख काजल, मैं बांझ हूँ तो क्या, तेरी हिम्मत कैसे हुई उन्हें निकम्मा- गंवार और ऐसा-वैसा बोलने की ? अपनी जुबान पर लगाम लगा ! अरे, पढ़ी-लिखी कहती है अपने को, लड़-झगड़ के, अनपढ़-गंवार के ताने मार-मार के सब को तो भगा दिया घर से ! किस की मीत हुई तू ? तू तो अपनी सन्तान तक की मीत नहीं, जो जानबूझकर अपना दूध ही नहीं पिलाती उसे ! अरी, तू ही है असल अनपढ़-गंवार !!!"

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by Sheikh Shahzad Usmani on April 7, 2017 at 11:11pm
मेरी इस ब्लोग-पोस्ट पर समय देकर प्रोत्साहित करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहब।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on October 14, 2015 at 3:28pm

आदरणीय उस्मानी जी बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई. सादर 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 13, 2015 at 12:24am
मेरी रचना पर उपस्थित हो कर टिप्पणी द्वारा मेरे लेखन अभ्यास को प्रोत्साहित करने के लिए तहे दिल बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय /Kanta Roy जी, आदरणीय सतविंदर कुमार जी व आदरणीय Shyam Narain Verma जी।
Comment by kanta roy on October 12, 2015 at 10:37pm

अनपढ़ गवाँर कौन सही मायने में , एक सार्थक प्रश्न को साकार करती लघुकथा में बेहतर प्रयास हुआ है आपका।  बधाई। 

Comment by Shyam Narain Verma on October 10, 2015 at 3:43pm
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति आदरणीय
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 9, 2015 at 3:59pm
बिल्कुल सच ऐसे ड्रामेबाज़ ही सही मायने में गवार होते है।बधाई आदरणीय जी

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