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आदरणीय मदनलाल जी आपने प्रदत विषय को बड़ी ही सजीवता और संजीदगी से चित्रित किया है। आज कहावत उल्टी हो गयी है ''झूठे का बोलबाला सच्चे का मुंह काला '' . हार्दिक बधाई स्वीकार करें इस कसी हुई लघुकथा के लिए।
प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत बेहतरीन लघु कथा हुई आज कल कौन किसके लिए कैसी बिसात बिछाता है इंसान को फूँक फूँक कर कदम रखने पड़ते हैं कोई रिश्वत न भी ले तो फंसाने के लिए इस तरह के दांव पेंच आजमाते हैं फिर कितनी भी दलीलें देते फिरें नाम तो गया .हार्दिक बधाई आ० मदनलाल जी इस शानदार प्रस्तुति पर |
आदरणीय मदन लाल जी, मुझे लगता है कि यह कथानक लंबी कहानी के लिए ज्यादा उपयुक्त रहता । लघुकथा की प्रकृति केवल समस्या की ओर इशारा मात्र करना होती है। फिर भी प्रयास अच्छा है। सादर
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