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लघुकथा की गहनता और महत्त्व को रेखांकित करते हुए सभी कि समझ को विकसित करती एक सार्थक प्रतिक्रिया हेतु आभार आपका
हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश भाई..
लघुकथा – बिसात
“ आप कंटिया बालाजी के आजीवन सदस्य है ,” एक ने कहा.
“ आप , मोडिया महादेव में सक्रियता से भाग लेते हैं ”, दूसरे ने तारीफ कीं.
“ जी. ”
“ कोई भी धार्मिक कार्यक्रम हो, आप बढ़चढ़ कर हिस्सा लेते हैं ” ,” तीसरे ने कहा तो चौथा बोला:
“आप की बहुत तारीफ सुनी है.”
पाचवां कब पीछे रहता,
“ हर धार्मिक कार्य को तनमनधन से पूरा करते हो. इसीलिए मैं ने महेश से शर्त लगा दी थी कि आप हमारे रामारसोड़े (धार्मिक स्थल पर पैदल जाने वाले यात्रियों को मुफ्त खाना खिलाने वाले पंडाल ) में भी 1000 रूपए दान में दोंगो. आखिर आप जैसा धार्मिक व्यक्ति हमारे यहाँ कोई दूसरा नहीं है.”
“ जी नहीं. आप शर्त हार गए. क्यों कि आप ने गलत इरादे से शतरंज की गलत चाल चल दी. समझो, आप को शाह और मात एकसाथ मिल गई,”कहते हुए वे चुपचाप चल दिए और उन तथाकथित धार्मिक व्यक्तियों की समस्त चालें नाकामयाब हो गई.
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(मौलिक व अप्रकाशित)
आदरनिय ओम प्रकाश जी, सुन्दर कथा, सब चाल बेकार एक तुरप कि चाल से
आदरणीय शेख उस्मानी जी आप को मेरी रचना पसंद आई. आप का हार्दिक आभार. कुछ कमी हो तो इंगित कीजिएगा.
आदरणीय पंकज जोशी जी यह एक सच्चाई है. मेरे मित्र के साथ घटी घटना को लघुकथा में ढाल कर प्रस्तुत किया हैं . आप को अच्छी लगी शुक्रिया आप का.
तारीफों के पुल बाँध कर मूर्ख बनाने की कला अब वास्तव में पुरानी हो गयी है, फिर भी कई बार कारगर हो जाती है| लेकिन आपकी इस लघुकथा को पढ़ते ही स्वतः सच्ची प्रशंसा निकल रही है आदरणीय ओमप्रकाश जी सर| इस चुस्त लघुकथा हेतु कृपया सादर बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय चंद्रेश जी आप का कहना बिलकुल सही है. तारीफों के पुल बंधना पुराना रिवाज है. यह आजकल भी प्रचालन में है. लोग इस का भरपूर इस्तेमाल करते हैं. उस के बावजूद आप को लघुकथा अच्छी लगी. शुक्रिया आप का.
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