For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते

२२१ १२२२ २२१  १२२२ 

कितने ही यहाँ जिनके घर अपने नहीं होते 

क्या होता खुदा जग में गर अपने नहीं होते

 

 हर जुल्म सहा उसने लेकिन न कहा कुछ भी 

पाले हुए पंछी के पर अपने नहीं होते 

था जंगली वो हाथी देता ही कुचल हमको 

गर पास धनुष अपना शर अपने नहीं होते 

बिगड़े न अगर होते बेटे तो यकीनन ही 

रातों में भटकते क्यूँ घर अपने नहीं होते 

चोरी से कहाँ बचते चोरों से बचाते क्या 

मजबूत घरों के गर दर अपने नहीं होते 

इंसा को ठिठुरता यूं देखा तो चिडी बोली 

मर जाते कभी के गर फर अपने नहीं होते 

हाथों में तेरे प्याले आँखों में उदासी क्यूँ 

ऐसे में गले साकी तर अपने नहीं होते 

मौलिक व अप्रकाशित 

Views: 462

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ravi Shukla on November 2, 2015 at 3:29pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बढ़िया तरही ग़ज़ल हुई है मुशायरे में शिरकत नहीं हो पाई शायद नहीं तो और भी विस्‍तृत दाद मिलती सबसे

इंसा को ठिठुरता यूं देखा तो चिडी बोली 

मर जाते कभी के गर फर अपने नहीं होते  क्‍या बात है आने वाली ठंड का एहसास किस नये तरीके से आपने किया है नया बिंब है बधाई आपको इसके लिये

हाथों में तेरे प्याले आँखों में उदासी क्यूँ 

ऐसे में गले साकी तर अपने नहीं होते  आखिरी शेर तो बहुत ही खूब हुआ है क्‍या बात है आशुतोष जी ऐसे में किसके गले तर होंगे ।  दिली दाद कुबूल करें । इस बार मुशायरे में हाजिर जरूर होइयेगा ।

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 2, 2015 at 1:02pm

आदरणीय मिथिलेश जी..रचना पर आपकी प्रतिक्रिया से बड़ा हौसला मिलता है ..बस यूं ही सहयोग मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 2, 2015 at 1:01pm

आदरणीय शिज्जू जी ..आपकी प्रतिक्रिया से मनोबल बढ़ा है ..आपके साथ मैंने इस मंच पर ग़ज़ल का ये सफ़र शुरू किया था..बहुत मार्गदर्शन मिला आपसे ..इस सफ़र पर आपसे यूं ही हौसला मिलता रहे इसी कामना के साथ सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 2, 2015 at 12:58pm

आदरणीय मनोज जी रचना पर आपकी उत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए ह्रदय से धन्यवाद सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on November 1, 2015 at 9:53pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बढ़िया तरही ग़ज़ल हुई है दाद हाज़िर है 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on November 1, 2015 at 8:03pm
बहुत बढ़िया आदरणीय डॉ आशुतोषजी बधाई स्वीकार करें
Comment by मनोज अहसास on October 30, 2015 at 8:26pm
आदरणीय
बहुत खूब ग़ज़ल हुई है
बधाई
सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
1 hour ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
16 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service