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बहुत बढ़िया कथा ..बधाई आपको
//उधर ऊपर रोशनदान में गोल करके रखा हुआ पुराना कैलेंडर आने वाले महिनों की बातें सुन होंठ दबाकर हँस रहा था.//
गज़ब गज़ब गज़ब ! बहुत ही खुबसूरत लघुकथा की प्रस्तुति हुई है, कथा सन्देश देने में सफल है और अंतिम पक्ति का पंच के क्या कहने, बहुत बहुत बधाई आदरणीय सुनील वर्मा जी.
वाह्ह बहुत बढ़िया प्रतीकात्मक रूप देकर अपनी बात बहुत अच्छे से पंहुचाई है इस सुन्दर लघु कथा हेतु बहुत- बहुत बधाई सुनील जी|
सच मे बडी विडंबना है एक ओर अन्न की बर्बादी तो दुसरी और दाने-दाने को तरसते लोग.लेकिन हर संवाद पर शकुन की सपाट प्रतिक्रिया कही मन को खटक गयी
वाह !!!! ये अनुपम लघुकथा हुई है। एक ओर अन्न का निरादर और दूसरी तरफ भूख से बेहाल नौनिहाल। बहुत ही सार्थक संकल्प रोपित हुआ है यहां। ढेरो बधाई आपको इस सार्थक कथा के लिए आदरणीया ज्योत्सना जी।
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