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प्रतीकात्मकता अपनी सहज शैली में शाब्दिक हो रही थी कि अंतिम पंक्ति में दो नन्हों का आपस में झगड़ा करना प्रयास को ही कृत्रिम बना गया. आदरणीया जानकी जी, इन तथ्यों के निर्वहन के क्रम में तनिक भावुकता प्रस्तुति को सपाट बना देता है. आपकी लघुकथा अच्छी है किन्तु मैं व्यक्तिगत तौर पर कृत्रिमता को बहुत स्वीकार नहीं कर पाता.
बहरहाल हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ
आदरणीया जानकी जी प्रदत्त विषय को सार्थक करती इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
अपमान:एक संकल्प लक्ष्य की ओर
"अरे तू नीच जात!दो आखर पढ़कै मास्टर के बण ग्या अपणी औकात ही भूल ग्या?चौधरियाँ के बालकाँ न डाँटेगा?उनपै रोब दिखावेगा?"
चौधरी सूरत सिंह ने बीच कक्षा में उसका गला पकड़कर उसे ये शब्द कहे थे।
"हम पहुँच गए सर।"
ड्राईवर के इन शब्दों से उसकी तन्द्रा भंग हुई।
"हूँssss।"
ड्राईवर ने दरवाज़ा खटखटा कर चौधरी साहब को बाहर बुलाया। और वह मिठाई का डिब्बा लिए बाहर ही खड़ा था।
"राम-राम चाचा जी।"
"राम-राम भाई।अरे तू तो......मनै सुणा उसी दिन मास्टर की नौकरी छौड़ कै,गाम ते ही भाग गया था?"
चौधरी सूरत सिंह ने थोड़ा गर्व से फूलते हुए कहा।
"हाँ चाचा जी।चला तो गया था।लो, मिठाई लो आप।"
"मिठाई क्यूँ?" फिर थोड़ी अकड़ के साथ।
"आपका और बच्चों का मुँह मीठा करवाने के लिए लाया हूँ।"
"मुँह मीठा....,किस ख़ुशी मैं?"
"चाचा जी मैंने डी.सी. बनने वाली परीक्षा पास कर ली।अब मैं डी.सी.(जिला उपायुक्त) बन गया हूँ।लो आप सब मुँह मीठा करो।"
चौधरी साहब उसके हाथ से मिठाई ले,उनकी आवभगत में लग गए।
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मौलिक एवम् अप्रकाशित
आदरणीय सतवीर जी आप ने संकल्प को एक नए रूप में प्रस्तुत किया है.
भाई सतविंदर कुमार जी, प्रदत्त विषय को परिभाषित करने का सद्प्रयास हुआ है जिस हेतु बधाई प्रेषित है I किन्तु लघुकथा ज़रा बिखर सी गई, एक तो शुरू में कण्टीन्यूटी टूट रही है और दूसरा संकल्प उभर कर सामने नहीं आ पा रहा I उसके लिए पहली पंक्तियों को ज़रा यूं करके देखें :
//"अरे तू नीच जात!दो आखर पढ़कै मास्टर के बण ग्या अपणी औकात ही भूल ग्या?चौधरियाँ के बालकाँ न डाँटेगा?उनपै रोब दिखावेगा?"
चौधरी सूरत सिंह ने बीच कक्षा में उसका गला पकड़कर उसे ये शब्द कहे थे।//
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//"अरे तू नीच जात ! दो आखर पढ़कै मास्टर के बण ग्या अपणी औकात ही भूल ग्या? चौधरियाँ के बालकाँ न डाँटेगा? उनपै रोब दिखावेगा? साले डीसी है के तू ?"
गाड़ी जैसे ही गाँव के स्कूल के सामने से गुजरी, Iबरसों पहले चौधरी सूरत सिंह के वे हिकारत भरे शब्द उसके मस्तिष्क में कौंध गए I //
बढ़िया कथा आद सतविंदर जी
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